कानपुर । जिंदगी में मंजिल की ओर बढ़ने पर तमाम कठिनाइयां और कांटे मिलते हैं। ऐसे में कई लोग अक्सर डगमगा जाते हैं। लेकिन उस पल जब कोई मार्गदर्शक पथ प्रदर्शक बन जाता है, तो मंजिल आसान हो जाती है। लेकिन इन विषम परिस्थितियों में इंसान को सही मार्गदर्शक मिल जाए, ये भी उसकी किस्मत से अलग नहीं है। देश के राष्ट्रपति रह चुके रामनाथ कोविंद के जीवन में उनके बड़े भाई स्व शिवबालक राम ऐसे ही मार्गदर्शक बनकर रहे। जिनका स्मरण आज भी उन्हें भावविभोर कर जाता है। कोविंद की भाभी विधावती बताती हैं कि ये उस समय की बात है जब रामनाथ 1991 में लोकसभा का चुनाव घाटमपुर से लड़े थे और हार गए । तब वे बहुत मायूस हो गये थे। उस वक्त बड़े भाई शिवबालक राम ने उन्हें सम्भालते हुए कहा था कि जीत हार तो जीवन के दो पहलू हैं । अगर हारेंगे नहीं तो जीतने का प्रयास कैसे करेंगे। शायद भविष्य कुछ और इशारा कर रहा हो, ऐसा कहकर उन्होंने रामनाथ कोविंद को धर्य बंधाया। असफलता के बाद हार मान लेने से लक्ष्य कोसों पीछे रह जाता है। इसके बाद रामनाथ ने हार को मुड़कर नहीं देखा। उनकी लगन और दृढ़ता के बाद 1994 में उन्हे राज्यसभा सांसद बनाया गया। दोबारा 2000 में भी वह राज्यसभा सांसद चुने गए और 2015 में बिहार के राज्यपाल बन गए और उसके बाद राष्ट्रपति भी। उनकी भतीजी हेमलता ने बताया कि उनके पिता शिवबालक राम कहा करते थे कि रामनाथ ‘र’ शब्द तुम्हारी सफलता की कुंजी है, जो आज उनके न होने पर सार्थक हो रहा है। क्षेत्र की समस्याओं के लिये विमल को बनाया निजी सचिवरामनाथ सरल स्वभाव के होने के चलते किसी की भी समस्या को लेकर गम्भीर हो जाते हैं। उन्हें अपने गांव क्षेत्र से बहुत लगाव है। राज्यपाल बनने के दौरान गांव परौंख व झींझक की समस्याओं की जानकारी के लिये उन्होंने झींझक के विमल अग्निहोत्री को अपना निजी सचिव बनाया था। बताया गया कि रास्ते से निकलने की समस्या को लेकर झींझक के ओमनगर में उन्होने कई सीसी रोड का निर्माण कराया। हालांकि इस दौरान लोगो ने विरोध भी किया था, तो उन्होंने सरलता से मामले को निपटा लिया था। साथ ही परौंख में भी विकास की गंगा बहाई। रामनाथ के ‘र’ से राष्ट्रपति के ‘र’ का क्या है राजदेश का राष्ट्रपति बनने के बाद रामनाथ कोविंद के परिवार में खुशियों की बौछार आई है। उनके जीवन में ‘र’ अक्षर का विशेष महत्व रहा है। जन्म के समय रामनाथ के ‘र’ से उनकी सफलता का खेल शुरू हुआ। जिसमें पहले वे 1994 में राज्यसभा सांसद, फिर 2000 में दोबारा बने। इसके बाद 2015 में बिहार के राज्यपाल बने और अब राष्ट्रपति बनने के प्रबल दावेदार हैं। भतीजी हेमलता कहती हैं कि राजनीति के सफर में ‘र’ अक्षर से शुरू होने वाले पद चाचा के लिये अब तक शुभ रहे हैं।
कानपुर । जिंदगी में मंजिल की ओर बढ़ने पर तमाम कठिनाइयां और कांटे मिलते हैं। ऐसे में कई लोग अक्सर डगमगा जाते हैं। लेकिन उस पल जब कोई मार्गदर्शक पथ प्रदर्शक बन जाता है, तो मंजिल आसान हो जाती है। लेकिन इन विषम परिस्थितियों में इंसान को सही मार्गदर्शक मिल जाए, ये भी उसकी किस्मत से अलग नहीं है। देश के राष्ट्रपति रह चुके रामनाथ कोविंद के जीवन में उनके बड़े भाई स्व शिवबालक राम ऐसे ही मार्गदर्शक बनकर रहे। जिनका स्मरण आज भी उन्हें भावविभोर कर जाता है। कोविंद की भाभी विधावती बताती हैं कि ये उस समय की बात है जब रामनाथ 1991 में लोकसभा का चुनाव घाटमपुर से लड़े थे और हार गए । तब वे बहुत मायूस हो गये थे। उस वक्त बड़े भाई शिवबालक राम ने उन्हें सम्भालते हुए कहा था कि जीत हार तो जीवन के दो पहलू हैं । अगर हारेंगे नहीं तो जीतने का प्रयास कैसे करेंगे। शायद भविष्य कुछ और इशारा कर रहा हो, ऐसा कहकर उन्होंने रामनाथ कोविंद को धर्य बंधाया। असफलता के बाद हार मान लेने से लक्ष्य कोसों पीछे रह जाता है। इसके बाद रामनाथ ने हार को मुड़कर नहीं देखा। उनकी लगन और दृढ़ता के बाद 1994 में उन्हे राज्यसभा सांसद बनाया गया। दोबारा 2000 में भी वह राज्यसभा सांसद चुने गए और 2015 में बिहार के राज्यपाल बन गए और उसके बाद राष्ट्रपति भी। उनकी भतीजी हेमलता ने बताया कि उनके पिता शिवबालक राम कहा करते थे कि रामनाथ ‘र’ शब्द तुम्हारी सफलता की कुंजी है, जो आज उनके न होने पर सार्थक हो रहा है।
क्षेत्र की समस्याओं के लिये विमल को बनाया निजी सचिव
रामनाथ सरल स्वभाव के होने के चलते किसी की भी समस्या को लेकर गम्भीर हो जाते हैं। उन्हें अपने गांव क्षेत्र से बहुत लगाव है। राज्यपाल बनने के दौरान गांव परौंख व झींझक की समस्याओं की जानकारी के लिये उन्होंने झींझक के विमल अग्निहोत्री को अपना निजी सचिव बनाया था। बताया गया कि रास्ते से निकलने की समस्या को लेकर झींझक के ओमनगर में उन्होने कई सीसी रोड का निर्माण कराया। हालांकि इस दौरान लोगो ने विरोध भी किया था, तो उन्होंने सरलता से मामले को निपटा लिया था। साथ ही परौंख में भी विकास की गंगा बहाई।
रामनाथ के ‘र’ से राष्ट्रपति के ‘र’ का क्या है राज
देश का राष्ट्रपति बनने के बाद रामनाथ कोविंद के परिवार में खुशियों की बौछार आई है। उनके जीवन में ‘र’ अक्षर का विशेष महत्व रहा है। जन्म के समय रामनाथ के ‘र’ से उनकी सफलता का खेल शुरू हुआ। जिसमें पहले वे 1994 में राज्यसभा सांसद, फिर 2000 में दोबारा बने। इसके बाद 2015 में बिहार के राज्यपाल बने और अब राष्ट्रपति बनने के प्रबल दावेदार हैं। भतीजी हेमलता कहती हैं कि राजनीति के सफर में ‘र’ अक्षर से शुरू होने वाले पद चाचा के लिये अब तक शुभ रहे हैं।
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