क़बीर के साथ एक दिन....
आज कई वर्षों के अंतराल पर महात्मा कबीर की निर्वाण स्थली मगहर, संत कबीर नगर जाना हुआ l कबीर के समय मोक्ष प्राप्त करने के लिए लोग काशी ही जाते थे... इसके विपरीत वर्तमान 'मगहर' को उस समय "मार्ग- हर" रास्ते में लूट लिए जाने वाले स्थान दर्ज़ा प्राप्त था l कर्मकांड के कट्टर विरोधी कबीर दास अपने अंत समय में मोक्ष नगरी काशी त्याग कर यह कहते हुए मगहर चले आए थे -
क्या काशी क्या ऊसर मगहर,
राम हृदय बस मोरा रे l
जो काशी तन तजे कबीरा,
रामै कौन निहोरा रे l
इसमें कोई अहंकार नहीं बल्कि एक भक्त का प्रभु के प्रति भक्ति भरा आत्मविश्वास था काशी में तो कोई भी मोक्ष प्राप्त कर सकता है वहां मुक्ति मिली तो राम का क्या एहसान है ? अगर भगवान मेरे ऊपर कृपालु हैं तो मगहर में आकर मुझको मुक्ति दें l
कबीर के साथ एक और विलक्षण किंवदंति जुड़ी है हिंदू और मुसलमान दोनों समान रूप से उनके अनुयाई थे इसलिए जब उनकी मृत्यु हुई तो उनको शरीर को दफनाने और जलाने के लिए विवाद होने लगा l कहते हैं उनका शरीर चादर से ढका रहा रात भर और सुबह जब चादर हटाई गई तो वहां कुछ फूल पड़े थे l वह फूल हिंदू मुसलमानों ने आपस में बांट लिए और मुसलमानों ने उनकी समाधि/मस्ज़िद बना दी और हिंदुओं ने मंदिर बना दिया l इस नाते मगहर गंगा जमुनी तहज़ीब या सांप्रदायिक एकता और सौहार्द का भी एक तीर्थ है l
कुछ वर्षों पूर्व तक जहां केवल मंदिर मस्जिद के अलावा उजाड़ स्थान था... वहीं आज 2 वर्ष पूर्व असमय दिवंगत सांसद शरद त्रिपाठी के प्रयासों से अत्यंत भव्य पर्यटन स्थल निर्मित हो चुका है l
आज मैं एक आमंत्रण पर जब वहाँ गया.... तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह वही मगहर हैI
वास्तव में दृढ़ इच्छाशक्ति और शुभ संकल्प किसी भी स्थान का कायाकल्प कर सकते हैं l
शायद कबीर ने यह स्वप्न सैकड़ों साल पहले देख लिया था l (लेखक राजेश राज का मगहर में बीता एक दिन)
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