इंदौर से भोपाल सुबह साढ़े 6 बजे इंटरसिटी ट्रेन जाती है, चूंकि गांव शुजालपुर के पास है तो सबसे अधिक यात्राएं इसी ट्रेन से हुई है।
पिछले लगभग बारह वर्ष से, जबसे इस ट्रेन में बैठना शुरू किया है, तब से एक घटना सदैव घटती है, इंदौर स्टेशन से एक बाबा, जिनकी आयु 75 वर्ष या उससे अधिक है, वे एक 15-17 किलो वजन का झोला लेकर इंटरसिटी में चढ़ते हैं।
इस झोले में गीताप्रैस द्वारा प्रकाशित अनेक धार्मिक और संस्कारित करने वाली पुस्तक होती हैं। बाबा ट्रेन चलने के कुछ देर बाद, एक-एक डब्बे में जातें हैं, किसी सीट पर सभी पुस्तकें रख देतें हैं, जिस यात्री को जो पुस्तक देखना है, वह आराम से देखता है। फिर बाबा एक-एक पुस्तक का परिचय कराने लगते हैं, धर्म का सार बताने लगते हैं और जब देखतें हैं कि युवा यात्री तो उनकी बात सुनने और पुस्तकों को देखने के बजाय कान में इयरफोन डालकर मोबाइल चला रहे हैं तो वे अचानक "फर्राटेदार अंग्रेजी" में बोलने लगते हैं, मोबाइल के अधिक उपयोग के दुष्प्रभाव बताते हैं, वर्तमान की समस्याओं से अवगत करातें हैं और यह सब इतना सधा हुआ होता है कि सब उन्हें सुनने लगते हैं, पुस्तकें क्रय करने लगते हैं।
ऐसा नहीं है कि यह किताबें बेचना बाबा का व्यवसाय अथवा विवशता है। बाबा उच्च शिक्षित हैं। 1965 से भोपाल सचिवालय में नौकरी पर रहें, पूर्व श्रममंत्री वीरेंद्र सिंह के निजी सहायक रहें हैं। नईदुनिया जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्र में कार्यरत रहें हैं, सिंहस्थ जैसे आयोजनों की टोलियों में रहे हैं। बेटा भारतीय वायुसेना में है, आज घर पर वे सुख से रह सकतें हैं, फिर भी समाज में धर्म और इतिहास का ज्ञान हो, नई पीढ़ी में संस्कार पल्लवित हो, इसलिए 1994 से 2023 तक निर्बाध प्रतिदिन सुबह इंटरसिटी ट्रेन से इंदौर से शुजालपुर और फिर पंचवेली ट्रेन से शुजालपुर से इंदौर गीताप्रेस का साहित्य विक्रय करतें हैं, उनकी महानता की जानकारी देते हैं और इसके लिए वे गीताप्रेस से भी किसी तरह का धन नहीं लेते, पुस्तकों को भी मूल्य से अधिक में विक्रय नहीं करते।
गीताप्रेस इस वर्ष, अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे कर रहा है। उसे गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। शायद गीताप्रेस दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक प्रकाशन है, जिसने 14 भाषाओं में 40 करोड़ से भी अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिसमें 15 करोड़ से अधिक तो भगवत् गीता ही है। लेकिन यह प्रकाशन किसी तरह का विज्ञापन नहीं लेता, किसी जीवित की छवि नहीं लगाता हैं। जिसने अपने ब्रांड के प्रचार के लिए किसी बड़ी छवि को "हायर" नहीं किया है। क्योंकि दीपेश्वर जी जैसे अनेक भारतभक्त उनके ब्रांड एम्बेसडर हैं, जो भारत के सत्व "साहित्य" के प्रसार के लिए अनथक श्रम कर रहें हैं, दीपेश्वर जी कहते है कि वे अभी तक एक करोड़ रुपए से अधिक का साहित्य रेलगाड़ी से बेच चुके हैं। देश में 14 हजार से अधिक रेलगाड़ियां हैं, मेरी तरह सेवानिवृत्त बन्धु, यदि ठान लें, तो हम देश की आने वाली पीढ़ी तक भारत का साहित्य रूपी धन पहुंचा सकेंगे, उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित कर सकेंगे।
गीताप्रेस को गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित करने की घोषणा हुई है, सोचा आज आपसे इस अनथक साधक की साधना को साझा किया जाए। गीता प्रेस को पुरस्कृत किए जाने की घोषणा से न जाने क्यों कुछ लोगों के पेट में दर्द शुरू हो गया है। उन लोगों की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए वरिष्ठ पत्रकार बृजेश शुक्ला ने कहा है कि... #लुच्चो के कुछ कहने से न तो गीता प्रेस की महानता कम होगी और न ही उसकी हिमालई उपलब्धियां
( वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद शुक्ला की कलम से )
अति सुंदर👌
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