कहते हैं कश्मीर जाना हो तो मई-जून चुनिए। सबसे बढ़िया मौसम रहता है तब। लेकिन मेरा मानना है कि यह सबसे उपयुक्त मौसम तभी होता है जब आपकी कुंडली के ग्रह-नक्षत्र भी अनुकूल हों। अब देखिए न। सबसे बढ़िया मौसम की उम्मीद में अपन आ तो गए मगर लगातार बारिश ने उम्मीद पर पानी फेर दिया। यूं समझिए कि सारा मजा किरकिरा कर दिया। पारा आज तड़के लुढ़कर 4 डिग्री पर लुढ़क गया और भरी दोपहरी में तमाम जोर लगाकर भी 9 डिग्री से ऊपर नहीं चढ़ पाया। रंग-बिरंगी कमीजें धरी रह गईं सूटकेस में। हर तरफ वही जैकेट डाले डोलना पड़ रहा है। इसलिए आप जब भी प्लान बनाएं, अपनी कुंडली और मौसम का मिजाज जरूर भांप लें।
वैसे पहलगाम से लेकर बेताब घाटी, चंदनवाड़ी और आरु वैली तक के स्थानीय निवासी भी मौसम के इस उलटफेर से अचरज में हैं। कहते हैं कि बारिश तो इस घाटी में किसी भी मौसम में, कभी भी हो जाती रही है। लेकिन इस बार मौसम का मिजाज कुछ अलग ही है, जो उनकी समझ से बिल्कुल परे है। स्थानीय किसान बताते हैं कि हफ्तेभर पहले इस पूरी घाटी में इतने बड़े-बड़े ओले पड़े कि सेब, आड़ू, अखरोट और मक्की की फसल बर्बाद हो गई। हालांकि वे इन सबके लिए ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार मानने की बजाय इसे कुदरत का कोप बताते हैं।
खैर, इस रीजन के किसानों के पूर्वज आमतौर पर चरवाहे रहे हैं। दरअसल पहलगाम का नाम 'पुहेअलगाम' हुआ करता था। कश्मीरी भाषा में पुहेअल का अर्थ होता है चरवाहा। और गाम का अर्थ तो आप जानते ही हैं- गांव। यानी पुहेअलगाम का मतलब हुआ चरवाहों का गांव। कालांतर में इसका सरल उच्चारण पहलगाम हो गया। वैसे नामोत्पत्ति को लेकर एक अन्य मान्यता भी है। इसके मुताबिक इस स्थान को "बैलगाम" कहा जाता था, क्योंकि यहां नन्दी है, जो समीप की अमरनाथ गुफा की ओर संकेत करता है। इसलिए इस घाटी के लोग कुछ ज्यादा ही धार्मिक स्वभाव के हैं। शायद यही वजह हो कि वे आज भी तमाम बदलावों को वैज्ञानिक दृष्टि से समझने के बजाय दैवीय कृपा-अकृपा की भाषा में स्वीकार करते हैं।
चार दिन से लगातार रिमझिम ने सिकोड़ कर रख दिया था। धूप का नामोनिशान नहीं। जून के महीने में ऐसी ठंड कि भरी दोपहरी में भी गर्म कपड़े लपेटे रहने की मजबूरी। बस इलेक्ट्रिक बेड ने रातों की नींद हराम होने से बचाए रखा। इसलिए आज सुबह जब दकसुम में छटांक भर धूप खिली तो मन भी खिल उठा। कितना अजीब है न कि दिल्ली की तपन से राहत की तलाश में कश्मीर की वादियों में पहुंचो और फिर वहां धूप के लिए ऊपरवाले से गुजारिश करो।
दकसुम को सिंथन टॉप का बेस कैम्प कहा जाता है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 2476 मीटर है। यानी श्रीनगर से लगभग हजार मीटर अधिक। लेकिन भौतिक सुख-सुविधाओं के मामले में दरिद्र होने की वजह से सैलानियों के बीच यह उतना चर्चित नहीं। श्रीनगर से सौ किलोमीटर दूर अनंतनाग-किश्तवाड़ मार्ग पर चीड़ और देवदार के घने जंगलों के बीच स्थित इस छोटे से कस्बे में आपको वह सब कुछ मिलेगा जिन्हें हम महानगरवासी सुकून का साधन मानते हैं। नीरव शांति में संगीत घोलता नदी और झरने का कलकल कलनाद, सन्नाटे से लड़ती चिड़ियों की चहचहाहट, ऊंचे पहाड़ों का विराट सरदल और शीतल बयार के आंचल में देवदार की भीनी-भीनी खुशबू। अगर आप गर्मी की छुट्टियों का उपयोग मानसिक तनाव से राहत के लिए करना चाहते हैं तो दकसुम आपके लिए भी मुफीद पड़ाव हो सकता है।
(देश के वरिष्ठ पत्रकार अनिल भास्कर आजकल कश्मीर की यात्रा पर है,उनके यात्रा वृतांत का लीजिए आनंद)
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