अब से ठीक चालीस साल पहले उस टीम का कोई कोच नहीं था. न पैसा था न चमक थी. न टीवी पर प्रसारण होता था. टीम तो इंग्लैंड विश्व कप में केवल औपचारिकता पूरी करने गई थी. इस विश्व कप से पहले खेले गए दो विश्व कप में भारत ने केवल एक मैच जीता था वह भी ईस्ट अफ्रीका से. ईस्ट अफ्रीका किसी एक देश की टीम भी नहीं थी. मगर इस विश्व कप में भारत के पास कुछ खास था. भारत के पास एक जाट था. एक जीवट था. भारत के पास था कपिल देव निखंज था. सोचिये कि आज के जमाने में भी विश्व कप के मैच में जब टीम के 17 रन पर 5 विकेट गिर जाएं और कोई खिलाड़ी 175 रन बना जाए तो क्या आप उसको विश्वसनीय मानेंगे. ऐसा 1983 में हुआ था जब भारतीय टीम वनडे मैच भी टेस्ट की तरह खेला करती थी. उस एक जीत ने भारत को उस मुकाम पर पहुंचाया. जहां से भारत में लगभग अजय कही जाने वाली वेस्टइंडीज की टीम को पराजित कर दिया था. 25 जून 1983 का वह दिन ना केवल क्रिकेट के इतिहास में बल्कि आधुनिक भारत के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है. जब भारतीय यह सोचने के लिए मजबूर हो गए थे कि उनके अंदर अपार क्षमता है और वह दुनिया में कुछ भी कर सकते हैं. हमारे सामने आज जो भारत है पूरी दुनिया उसको कमतर नहीं आंकती है. वरना विश्व कप 1983 में भारतीय मैनेजर को लार्ड्स का पास तक नहीं दिया जा रहा था. एक ब्रिटिश पत्रकार ने लिखा था कि अगर भारत ने विश्व कप जीता तो वह अपना आर्टिकल वाइन पीते हुए खा जाएगा... आखिरकार उसको यह काम करना पड़ा था. उस जीत का मुकाबला किसी भारतीय जीत से नहीं किया जा सकता है... आप बस इतना मान लीजिये कि आज की तारीख में अगर हालैंड या ओमान जैसी टीम विश्व कप जीत लें तो उसकी बराबरी भारत की 1983 की जीत से की जा सकती है. सौभाग्यशाली हैं जो उस जीत के गवाह थे.. मैं तो चार साल का था औऱ कुछ भी याद नहीं... इतना सुनता हूँ कि भारत कि जीत पर उस रात होली दीवाली दोनों मनाई गई थी
(लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार व ईटीवी से जुड़े ऋषि मिश्र की कलम से)
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