नानी चली गई। मेरी मां की मौसी थी। दूधिया गौरवर्ण। 85 साल से ऊपर की उम्र, लेकिन आवाज में ऐसी खनक कि क्या कहें। पिछले 10 जून को मेरे विवाह की वर्षगांठ थी। नानी ने फोन पर कई गाने सुनाए थे। कुछ फिल्मी तो कुछ पारंपरिक। हम पति-पत्नी को संगीतमय आशीर्वाद दिया था। ये पहला मौका नहीं था। कभी मेरे जन्मदिन पर वीडियो कॉल पर सुनाती थी- तुम्हें और क्या दूं मैं दिल के सिवा.. तुमको हमारी उमर लग जाए। विवाह की वर्षगांठ पर तो गाना पक्का ही था।
नानी बहुत अलबेली थी। बरसों पहले की बात है। इलाहाबाद में पढ़ता था। माघ मेले में गया था। रिश्तेदारी में ही एक एक मुंडन कार्यक्रम था। वहां पहुंचा था। नानी को मैं पहचानता नहीं था। अचानक ही उसने आवाज दी-हे विकेसवा, आउ गोड़ धरु, हम तोर नानी होईं। तोरे माई क मउसी।
इतने हक के साथ नानी ने पुकारा, मैं दौड़ पड़ा, पांव छुए, नानी ने ममता उड़ेली। नानी की खासियत ये थी कि उस पर चाहे जितनी विपत्ति पड़ी, जो भी चुनौतियां उसके सामने आईं, सबका हंसकर सामना किया। बहुत चुलबुली भी थी हमारी ये नानी। बात बात पर बात निकलती थी तो बात-बात पर गाना।
पीढ़ियों के अंतर के बाद नानी के घर से रिश्ते को नई परिभाषा मिली। हमारे पंक्तिपावन समाज में नजदीकी रिश्तों में शादियां होती रहती हैं। तो मेरे भानजे अनुराग का विवाह नानी की बेटी सुष्मिता से हुई है। सुष्मिता नानी की बिल्कुल प्रतिरूप है। उतनी ही चुलबुली और उतनी ही मस्त, बिंदास। भानजे के रिश्ते से बहू है, लेकिन कई बार मजाक में ये भी कहती है-भूलिएगा मत, मैं आपकी मौसी भी हूं। ये बात मुझसे ही नहीं, मेरी शुभा दीदी से भी कह देती है, जो उसकी सास है।
सुष्मिता अभी आई थी, मेरे घर। उसी ने नानी से बात करवाई थी। नानी के गीत सुनकर तब आभास नहीं हुआ कि आखिरी बार उसकी आवाज सुन रहा हूं, लेकिन यही सत्य है। नाना पहले ही चले गए थे, अब नानी भी चली गईं। ईश्वर नानी की आत्मा को शांति दें और परिवार को दुखों का ये भार उठाने की क्षमता भी दें। उनकी ढेर सारी यादें अब हमारी धरोहर हैं।
( टीवी चैनल न्यूज नेशन के वरिष्ठ पत्रकार विकास मिश्र की कलम से )
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