फव्वारे, मकबरे और बिरियानी की हकीकत!!
"ऊँट को काटकर उसमें गाय भरो, गाय में बकरा भरो, बकरे में मुर्गा भरो और मुर्गे में अंडे भरो! फिर इसे 12 घण्टे पकाकर सीटी बजने पर टूट पड़ो।"
जब सबसे बड़ी पार्टी होती थी तब यही उनकी पसंद की डिश थी। यह एकमात्र ऐसा क्रिएटिव अविष्कार है जो उनके देशों में विकसित हुआ। इसके अलावा... जहाँ पानी का नामोनिशान नहीं था, एक जलस्रोत के लिए लाखों लोग कत्ल किये गए, जहाँ हरियाली की कमी को हरे रंग से पूरा किया गया, जहाँ स्नान और मुँह धोने तक को पानी नहीं था, उन्होंने फव्वारा बना दिया!!
न ग्रेविटी का ज्ञान न भूगोल न खगोल। पृथ्वी की गति को अब भी नकारते हैं और फव्वारा बना गये!!
जहाँ शौच जाने के बाद गुदा को रेत पर रगड़ा जाता था क्योंकि वहाँ पानी बहुत कीमती था। और, यदि रेत गर्म है तो मरे हुए ऊँट की घुटने वाली चिकनी हड्डी से पोंछने का विधान उनकी किताबों में है क्योंकि पत्थर वहाँ थे ही नहीं। पत्थर थे ही नहीं लेकिन उन्होंने विशाल भवनों के आर्किटेक्ट दिमाग में रखे, यह कैसे सम्भव है?
जहाँ चावल तो क्या, गेहूँ और मक्का तक नहीं होता था, खेती के नाम पर यहूदियों के बगीचों में कंटीले खजूर थे, उन्होंने 17 मसालों वाली बिरियानी खोज ली... है न जादू!!
जहाँ लिखने वालों की सर्वश्रेष्ठ कल्पना भी शहद, शराब और मानव देह तक उड़ कर शांत हो गई, उन्होंने मार्बल, बगीचे और विज्ञान की खोज की होगी।
जिन्हें कभी घोड़े और ऊँट से नीचे उतरने की फुर्सत भी नहीं मिली, उन्होंने 20-20 वर्ष में बनने वाले स्ट्रक्चर बनाये होंगे!!
जिनके घर का दूसरा तल्ला भी कभी नहीं बन सका उन्होंने कुतुबमीनार बनवा दी! जिनकी किताब में लूट, खसोट, धोखा देने के तरीके और नियमों की भरमार है, वे ज्यामिति या नैतिकता के सौंदर्य बोध को समझेंगे?
जिन्हें नशा, वासना और कामुकता का इतना ज्वार था कि स्त्री को मात्र भोग्या के, अन्य कोई उपाधि ही नहीं दे सके और स्त्रियों का इतना अकाल था कि उनकी कमी छोटे नर बालकों से पूरी की जाती थी।
मुगलिया स्ट्रक्चर और मुगल स्थापत्यकला विशुद्ध वामपंथी प्रोपेगेंडा था जो इन्होंने भारतीय इतिहास में आरोपित कर दिया।
आज आपको सच इसलिए लगता है क्योंकि आपने मास्टरी की परीक्षा देने से पहले वामपंथी चापलूसों द्वारा सुझाये गये, उन्हीं द्वारा स्थापित सामान्य ज्ञान (GK) में इसे बार बार पढ़ा है।
और आप क्लर्क से लेकर आईएएस भी तभी बन पाए, जब आपने इसे एकदम सच माना। चारों तरफ युद्ध के माहौल से घिरे एक गुलाम 1206 से 1210 तक चार साल शासन करने वाले कुतुबुद्दीन ऐबक ने 72.5 मीटर ऊँची मीनार बनवा दी!!
(जय जीके जय कोचिंग!)
अगर सच्चाई ही जाननी है तो उनके स्वयं के लिखे दस्तावेजों को ही खंगाल दीजिये जिनमें वे स्वयं यह स्वीकार करते हैं कि उनके नाम पर जो जो भी स्थापित है, या तो वह लूट का माल है अथवा जबरदस्ती का कब्ज़ा।
(वाराणसी के नामचीन टाइम्स आफ इंडिया के वरिष्ठ पत्रकार बिनय सिंह से साभार)
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