बात करीब 5 साल पुरानी है। लखनऊ स्थित एक स्कूल के वार्षिक समारोह में मिल्खा सिंह बतौर मुख्य अतिथि शामिल होने के लिए आए थे। उस समय उनकी उम्र भले ही 88 साल के करीब थी लेकिन जोश 18 साल के लड़के जैसा ही था। खैर, नौ बजे सुबह ही मैं स्कूल पहुंच गया। स्कूल के अंदर बने ट्रैक को देखने के लिए जब वह जाने लगे तो अनंत सर और मुझे भी बुला लिया। अनंत सर से वह पहले से ही परिचित थे। वो इतना तेज चल रहे थे कि हर दस सेकेंड में हम लोग उनसे चार-छह कदम पीछे हो जाते थे। अचानक से उन्होंने देखा कि हम लोग पीछे हैं तो बोल उठे अभी जवानी में यह हाल है तो बुढ़ापे में क्या होगा इस पीढ़ी का। अपने समय के दमदार एथलीट रहे अनंत सर और मैं उसके बाद उनके साथ में आ गए। खैर इसके बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए हम लोग उनके साथ स्कूल के हॉल में पहुंच गए। अनंत सर ने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा पहला सवाल तुम्हीं पूछ लो। सवालों की लिस्ट लंबी थी लेकिन मैंने पहला सवाल यही पूछा कि मिल्खा जी आप इस उम्र में इतने फिट और एक्टिव कैसे रह लेते हैं। उनका जो उत्तर आया उसकी मैं उम्मीद नहीं कर रहा था। उन्होंने कहा रोम ओलंपिक के बाद मेरा दिल सुलग रहा है और छीना छलनी है। 58 साल पहले मिला दर्द आज भी मुझे रुकने नहीं दे रहा है। हर सुबह उसी दर्द की चिंगारी लिए मैं दर-दर इसलिए भटक रहा हूँ कि कोई ऐसा युवा एथलीट मुझे मिल जाए और मेरे सीने के दर्द को अपना दर्द बनाकर ओलंपिक में एथलेटिक्स में पदक ले आई। कोई तो मिले जो मेरी उस कहानी को पूरा कर दे जो 1960 में मैने अधूरी छोड़ी थी। मैं तभी मरूंगा जब एथलेटिक्स में दुनिया के सबसे बड़े प्लेटफॉर्म पर भारत को पदक मिलेगा। खैर इसके बाद सवालों और जवाबों का दौर करीब आधे घंटे चलता रहा। उन्होंने इसी दौरान मुझसे कहा भी की यार तुम ठीक से खाया पिया करो। इतना दुबलापन भी ठीक नहीं। आखिर में जब कॉन्फ्रेंस खत्म हुई तो उन्होंने मुझे तीन से चार मिनट का और अतिरिक्त समय दिया। जाते समय उन्होंने मुझे और हितेश को बिस्किट का एक पैकेट पकड़ाते हुए कहा कि बिस्किट की तरह तुम दोनों की जिंदगी में भी मिठास बनी रहे। अभी थोड़ी देर पहले उड़न सिख मिल्खा सिंह के मौत की सूचना मिली तो कलेजा बैठ गया। उस मुलाकात का हर मंजर आंखों में तैरने लगा। मिल्खा सिंह का दुनिया से जाना हजारों उम्मीद और करोड़ों सपने का चले जाना है। गांव की पगडंडियों से लेकर शहरों के एथलेटिक्स ट्रैक पर दौड़ते लाखों धावकों में मिल्खा लहू बनकर हमेशा बहते रहेंगे। सर उस बिस्किट की मिठास कैसी थी काश आप जिंदा होते और मैं आपको बता पाता। आज भी जब कोई बच्चा गति की गति को चुनौती देता है तो मिल्खा और शिद्दत से याद आते हैं। सर आज नहीं तो कल किसी धावक के सीने में आपके दिल में लगी आग पहुंच जाएगी और ओलंपिक में तिरंगा सबसे ऊपर होगा। आपसे निकली चिंगारी ही एथलेटिक्स में भारत को पदक दिलाएगी। आसान नहीं होता है किसी इंसान का मिल्खा सिंह बन जाना।
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(नोएडा में दैनिक जागरण के वरिष्ठ पत्रकार रवि सिंह रैकवार की कलम से)
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