कभी कभी खुशी अचानक आती है और छोटी सी बात भी पूरे दिन को अच्छा कर लेती है। सांय कालीन वॉक के दौरान लुटियंस जोन में कभी यह भी नहीं सोचा था कि आज अपने प्रिय फल बड़हल के दर्शन हो जाएंगे और वह भी अचानक मंडी हाउस और शिवाजी मार्केट से होते हुए जब भारतीय वैश्विक परिषद जो मंडी हाउस के बिल्कुल बगल में है, के दफ्तर के पास से गुजरे तो वहां अचानक बड़हल महाराज के दर्शन हो गए ।थोड़ी देर निहारते रहे और तभी बिहार से जुड़े हुए वही काम कर रहे एक सज्जन दिखे और उन्होंने बड़हल की तारीफ में बहुत कुछ कहना शुरू कर दिया। दिखने में बैडोल सा यह फल खट्टा मीठा होता है और बारिश की कुछ बूंदे पड़ते ही जल्दी पक जाता है। आमतौर पर दिल्ली में यह फल दिखता नहीं है इसलिए इसकी तारीफ भी करने वाला कोई नहीं होता ।मेरी हां में हां मिलाने पर उन सज्जन ने दो-चार मिनट रुकने को कहा और बाद में 5-6 बड़हल के फल, जिसमें ज्यादातर कच्चे थे लाकर मुझे भेट कर दिए और साथ ही हिदायत दी कि एक -आध दिन अखबार में रख दीजिएगा ,खाने योग्य हो जाएंगे ।पर हमें कहां चिंता इंतजार था ।दफ्तर आते ही उनमें से एक को ,जो थोड़ा पका था ,धो -धा कर जिह्नवा को तृप्त किया ।आखिरी बार इस फल का सेवन गोरखपुर में कर पाया था जब भाई जगदीशलाल श्रीवास्तव ने लौटते समय हमें पेड़ से तुड़वा कर भेंट किया था। फिलहाल आभार जताने का वक्त @indiancouncilforworldaffair यानी भारतीय वैश्विक परिषद के कर्ताधर्ताओं का है जिन्होंने इस वृक्ष पर आधुनिकता की आंधी नहीं आने दी और उसे बचा कर रखा है।
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