यूपी के बुंदेलखंड में मात्र 300 मीटर सड़क के लिए एक अनोखा आंदोलन चल रहा है। हाइवे का प्रदेश बन गए यूपी में पत्थर की सिलबट्टी, जांत, चकरी,टांक कर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाली दलित कुचबंधिया बस्ती की महिलाओं ने इस आंदोलन का नाम दिया है "डंडा आन्दोलन"। इनका कहना है कि हम सब पिछले एक दशक से बस्ती से लिंक रोड तक महज 300 मीटर सडक बनवाने के लिये डीएम, कमिश्नर, विधायक, सांसद, यहां तक कि सरकार के तमाम मंत्री-मिनिस्टरों से अपनी अरदास सुना चुकी हैं,लेकिन किसी ने उनकी इस छोटी सी मांग पर विचार नहीं किया। मजबूर होकर उन्हे सत्याग्रह का रास्ता अपनाना पडा है। अब वे अपने पैर पीछे नहीं खीचेंगी। सडक निर्माण से लेकर बस्ती की हर समस्या का निवारण न होने तक आंदोलन जारी रखेंगी। इन महिलाओं का समर्थन करते हुए महिलाओं के हक की लडाई लडने वाले चिंगारी संगठन ने भी चेतावनी दी है कि अगर इनकी मांगे जल्दी नहीं पूरी की गई तो 40 गांवों में एक साथ सत्याग्रह शुरू किया जायेगा।
डंडा आन्दोलन शुरु करने वाली यह दलित महिलायें बांदा जिले के महुआ ग्राम पंचायत के मजरा राजाराम के पुरवा से ताल्लुक रखती हैं। इस पुरवा के अंतिम छोर मे दलित,कुचबंधिया बिरादरी के कुल 49 परिवारों मे से आधे से ज्यादा परिवार घास-फूस की झोपडियों मे अपनी जिन्दगी के दिन काट रहे हैं। इनके नंगे-धडंगे बच्चे पूरा दिन या तो कंचा खेलते रहते हैं ! या फिर आपस मे लडते-झगडते रहते हैं। इस गांव तक पहुंचने के लिए फिलहाल कोई मार्ग नहीं है। यहां की महिलाओं और ग्रामीणों का कहना है कि हमें आज भी गांव से पगडंडियों या दूसरे लोगों की जमीन से निकल कर जाना पड़ता है। संपर्क मार्ग न होने के कारण गांव का एक भी बच्चा स्कूल नहीं जा पाता। स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मरीज को चारपाई में लिटा कर ले जाया जाता है। हम लंबे समय से संपर्क मार्ग की मांग कर रहे हैं।
डंडा आन्दोलन में शामिल बस्ती की
वंदना,श्यामकली,अर्चना,नीलम,सुनैना,सुमन,किरन,उषा,राजकुमारी,आदि ने कहा कि हम कुचबंधिया समुदाय के लोग हैं। हमारे साथ भेदभाव किया जा रहा है। गीता,प्रीती,मधु,तारा,फूला, और श्यामकली ने बताया कि इस! गांव में 49 परिवार हैं, जिनमें कुल 14 परिवारों के जॉब कार्ड बने हैं। पिछले 5 साल से किसी को काम नहीं मिला है। 44 परिवार भूमिहीन है। सभी मजदूरी करते हैं। 46 परिवार साहूकार के कर्जदार हैं। कर्ज की ब्याज लगातार बढ़ रही है। यहां मजबूरी में लोग 10 रुपये की दर से ब्याज का पैसा लेते हैं। कुल 25 लोगों के ही राशन कार्ड बने हैं। आवास के लिए सभी पात्र हैं, फिर भी कुल 13 परिवारों को ही आवास दिए गए हैं।
बच्चों के लिये नहीं है स्कूल
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दलित और कुचबंधिया बिरादरी के बच्चों के लिये यहां कोई स्कूल नहीं है। चार साल से लेकर करीब बारह साल के बच्चों की संख्या यहां 125 के आस-पास हैं। इनमे से करीब 8 बच्चे बस्ती से 10 किमी दूर महुआ ब्लाक के स्कूल मे पैदल पढने जाते हैं। लेकिन बरसात के महीनों मे जल भराव के कारण यह भी स्कूल नहीं पहुंच पाते।
कुचबंधिया महिलाओं के आन्दोलन में कूदे कई पडोसी गांव
दलित कुचबंधिया महिलाओं का डंडा आन्दोलन तीसरे दिन शुक्रवार को भी जारी रहा। पत्थर की सिलबट्टी,जांत, चकरी,टांक कर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाली कुचबंधिया महिलायें अपनी बस्ती की समस्याओं को लेकर "सत्याग्रह" की राह पर निकल पडी हैं। दो दिनो तक जब जिला प्रशासन के अधिकारी उनकी समस्या जानने नहीं पहुंचे तो चौथे दिन शनिवार को उनके आन्दोलन को धार देने के लिये पडोसी गांव बानबाबा का पुरवा,माडी पुरवा,खेरवा चौकी,और भर्ता पुरवा की महिलाये भी कुचबंधिया महिलाओं का साथ देने को उनके गांव राजाराम का पुरवा मे धमक पडी हैं। इन गांवों के आन्दोलन कारी महिलाओं और पुरुषों का कहना है कि अब हम दिहाडी,मजदूरी करने भी नहीं जायेंगे। कोई काम नहीं करेंगे। आन्दोलन स्थल पर भूखे-प्यासे मर जायेंगे,किन्तु सत्याग्रह जारी रखेंगे। अपनी आखिरी सांस तक लडाई लडेंगे।
कुचबंधिया महिलाओं के डंडा आन्दोलन की अगुवाई करने वाली श्यामकली,वंदना, और अर्चना ने बताया कि पिछले एक दशक से हम सब अपनी बस्ती से लिंक रोड तक महज 300 मीटर सडक बनवाने के लिये डीएम, कमिश्नर, विधायक, सांसद, यहां तक कि सरकार के तमाम मंत्री-मिनिस्टरों से अपनी अरदास लगा चुके हैं। लेकिन किसी ने उनकी इस छोटी सी मांग पर विचार नहीं किया। मजबूर होकर हमें बीते बुधवार यानी 21 जून से सत्याग्रह का रास्ता अख्तियार करना पडा है। अब हम अपने पैर पीछे नहीं खीचेंगे। सडक निर्माण से लेकर बस्ती की हर समस्या का निवारण न होने तक आंदोलन जारी रखेंगे।
जान दे देंगे,पर नही जायेंगे दिहाडी करने
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बस्ती की महिला श्यामकली ने बताया कि उनकी बस्ती के लोग रोज मजदूरी करने जाते हैं। मजदूरी मे मिले पैसों से ही उनके घरों का चूल्हा जलता है। आन्दोलन मे शामिल सभी महिलाओं,पुरुषों ने शुक्रवार को ऐलान कर दिया है कि अब हमारी बस्ती का कोई भी ब्यक्ति मजदूरी,दिहाडी, करने नहीं जायेगा। अपनी इस टेक को पूरा करने के लिये बस्ती के सारे पुरुष और महिलाओं ने अपनी गृहस्थी के बर्तन-भाडे, और मजदूरी मे प्रयुक्त होने वाला फावडा,कुदाल, तसला,हंसिया,कुल्हाडी आदि सत्याग्रह स्थल पर ही रख लिया है। कहते हैं- भूखे-प्यासे मरना मंजूर है। अनदेखी मंजूर नहीं है। बहुत हो गया ! दम तोड देंगे परन्तु पीछे नहीं हटेंगे।
चिंगारी और विद्याधाम समिति ने बढाया हाथ
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आन्दोलन कारियों के समर्थन मे महिलाओं के हक की लडाई लडने वाले चिंगारी संगठन की संयोजिका मुबीना,और विद्याधाम समिति के राजाभइया भी आगे आ गये हैं। कहते हैं- किसी आन्दोलनकारियों को भूखा मरने के लिये नहीं छोडा जायेगा। इन दोनो संगठनों ने शुक्रवार को सभी के भोजन का इंतजाम किया। सभी को खाना खिलाया। राजा भइया और मुबीना ने चेतावनी दी है कि अगर कुचबंधिया महिलाओं की मांगे जल्दी नहीं मानी गई तो जिले के 40 गांवों में एक साथ सत्याग्रह शुरू किया जायेगा। कुचबंधिया महिलाओं को आश्वस्त करते हुये विद्याधाम समिति के राजाभइया ने कहा कि हम सब उनके साथ हैं। जिला मुख्यालय से लेकर प्रदेश सरकार तक उनकी लडाई लडी जायेगी। गांव-गांव सत्याग्रह शुरू कराकर शासन और प्रशासन को मजबूर कर दिया जायेगा कि वह गरीबों की समस्याओं का समाधान करे।
घास-फूस की झोपडियों मे करती हैं गुजारा
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डंडा आन्दोलन शुरु करने वाली यह दलित महिलायें बांदा जिले के महुआ ग्राम पंचायत के मजरा राजाराम के पुरवा से ताल्लुक रखती हैं। इस पुरवा के अंतिम छोर मे दलित,कुचबंधिया बिरादरी के कुल 49 परिवारों मे से आधे से ज्यादा परिवार घास-फूस की झोपडियों मे अपनी जिन्दगी के दिन काट रहे हैं। इन्ही टूटी-फूटी झोपडियों मे इनकी जिन्दगी का राग सिमटा हुआ है। इनके नंगे-धडंगे बच्चे पूरा दिन या तो कंचा खेलते हैं ! या फिर आपस मे लडते-झगडते रहते हैं। इस गांव तक पहुंचने के लिए फिलहाल कोई मार्ग नहीं है। यहां की महिलाओं और ग्रामीणों का कहना है कि हमें आज भी गांव से पगडंडियों या दूसरे लोगों की जमीन से निकल कर जाना पड़ता है। संपर्क मार्ग न होने के कारण गांव का एक भी बच्चा स्कूल नहीं जा पाता। स्वास्थ्य सेवाओं के लिए मरीज को चारपाई में लिटा कर ले जाया जाता है।
सुविधाओं से वंचित कुचबंधिया बस्ती
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डंडा आन्दोलन में शामिल कुचबंधिया बस्ती की
वंदना,श्यामकली,अर्चना,नीलम,सुनैना,सुमन,किरन,उषा,राजकुमारी,आदि ने कहा कि हम कुचबंधिया समुदाय के लोग हैं। हमारे साथ भेदभाव किया जा रहा रहै। गीता,प्रीती,मधु,तारा,फूला, और श्यामकली ने बताया कि इस! गांव में 49 परिवार हैं, जिनमें कुल 14 परिवारों के जॉब कार्ड बने हैं। पिछले 5 साल से किसी को काम नहीं मिला है। 44 परिवार भूमिहीन है। सभी मजदूरी करते हैं। 46 परिवार साहूकार के कर्जदार हैं। कर्ज की ब्याज लगातार बढ़ रही है। यहां मजबूरी में लोग 10 रुपये की दर से ब्याज का पैसा लेते हैं। कुल 25 लोगों के ही राशन कार्ड बने हैं। आवास के लिए सभी पात्र हैं, फिर भी कुल 13 परिवारों को ही आवास दिए गए हैं।
बच्चों के लिये नहीं है स्कूल
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दलित और कुचबंधिया बिरादरी के बच्चों के लिये यहां कोई स्कूल नहीं है। चार साल से लेकर करीब बारह साल के बच्चों की संख्या यहां 125 के आस-पास हैं। इनमे से करीब 8 बच्चे बस्ती से 10 किमी दूर महुआ ब्लाक के स्कूल मे पैदल पढने जाते हैं। लेकिन बरसात के महीनों मे जल भराव के कारण यह भी स्कूल नहीं पहुंच पाते। पूरी बस्ती मे घुटनो तक पानी भरी रहता है।
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