कड़वी याद : 25 जून के दिन श्रीमती गांधी ने लोकतंत्र का गला घोटते हुए आपातकाल घोषित किया था
मधुर स्मृति : विश्व कप जीत के बाद उस रात शहर बनारस सड़कों पर था, लगा ही नहीं रात है
ऐतिहासिक रहा है 25 जून का दिन देश के लिए दो खट्टी मीठी यादों के साथ . पहले बात कड़वी यादों की. इसी दिन तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय की ओर से भ्रष्ट करारा दिए जाने के 13 दिन बाद अपनी कुर्सी बचाने के लिए लोकतंत्र का गला घोंटते हुए देश में इमर्जेंसी घोषित की थी. उन्होंने हमारे मौलिक अधिकार छीन लिए थे. वह 21 महीनों का दौर भारत में अंधा युग था. वह वर्ष 1975 का था. बाद में स्व गांधी और उनकी पार्टी कांग्रेस को आम चुनाव में आजादी के बाद पहली बार सत्ता से हाथ धोकर उसका खामियाजा भी भुगतना पड़ा था.
48 साल पहले कांग्रेस पार्टी की ओर से लिखे गये भयावह काले अध्याय के बारे में आज की पीढ़ी उस दर्द और वेदना को महसूस नहीं कर सकती जो हम जैसे झेलने पर विवश हुए थे. सोनिया और राहुल गांधी की कांग्रेस के साथ विपक्षी दल वर्तमान सरकार पर जब लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगाते हैं तो हास्यजनित तरस के साथ क्षोभ भी होता है. जिस युवा शक्ति पर देश के भविष्य निर्माण की जिम्मेदारी है, उसे सोशल मीडिया पर मौजूद इमर्जेंसी की उपलब्ध प्रचुर सामग्री खंगालनी चाहिए.
आठ बरस बाद देश को क्रिकेट में मिली असाधारण सफलता, वह मीठी याद है जो सदियों तक गर्व के साथ क्रिकेट प्रेमियों को गुदगुदाती रहेगी. जी हां, इसी दिन कपिल के रणबांकुरों ने जबरदस्त उलटफेर करते हुए दो बार के लगातार चैंपियन महाबली वेस्टइंडीज को फाइनल में धूल चटा कर विश्व कप पर अधिकार किया था. एक टीम जो पिछले दो विश्व कप मुकाबलों में मात्र एक मैच पिद्दी सी पूर्वी अफ्रीका ( केनिया ) से जीत सकी हो वह प्रुडेंशियल कप अपने नाम कर लेगी, यह भारत के बड़े से बडे समर्थक के लिए भी कल्पनातीत था. सच है कपिल की सेना ने जब अंग्रेजों की धरती पर कदम रखे तब उसकी जीत पर भाव बड़े से बड़े जैकपाट को भी पीछे छोड़ने वाला था. 'एक लगाओ पांच सौ पाओ' को आप और क्या कहेंगे !! यही नहीं टीम के तत्कालीन मैनेजर पी आर मानसिंह ने भी मान लिया था कि तकदीर ने साथ दिया तभी शायद सेमीफाइनल खेलें. कैरियर में मेरी जो भविष्यवाणियां गलत साबित हुई हैं, उनमें विश्व कप की अटकल भी एक है.
यही कारण था कि जब भारत ने इंगलैंड को हरा कर फाइनल में प्रवेश किया, जागरण में सुर्खी लगी- "चमत्कारों का चमत्कार, भारत फाइनल में". देश दबाव मुक्त था, उसको तो पाना ही पाना था, खोने को कुछ भी नहीं. एक टीम जिसने पहले ही लीग मुकाबले में इन्ही कैरेबियाइयों को पस्त किया तब भी किसी ने तरजीह नहीं दी थी सिवाय आस्ट्रेलियाई कप्तान किम ह्यूज के जिन्होंने भारत को तब छुपा रुस्तम करार दिया था. उस दौर में फार्मेंट ऐसा था कि निर्धारित 60 ओवरों वाले इस तृतीय विश्व मे हर टीम से दो दो बार खेलना होता था लीग मुकाबलों में. क्लाइव लायड की इंडीज ने हमें हराया भी था. लेकिन हरफनमौलाओं की भरमार वाली टीम, जिसमें शतक लगा चुके विकेटकीपर किरमानी को दसवें नंबर पर बल्लेबाजी करनी पड़ती थी, अपना सफर जारी रखे हुए थी. बीच में एक बार हार की नौबत आयी जब जिम्बाबवे ने हालत खस्ता कर दी थी. लेकिन कपिल की 175 की लाइफ टाइम इनिंग ने अफ्रीकी टीम के जबड़े से जीत छीन ली.
इंगलैंड के लक्ष्य का पीछा आसानी से करते हुए भारत ने जब खिताबी लड़ंत में पिछले विजेताओं को सामने पाया तब भी शायद ही कोई आशान्वित रहा होगा कि क्रिकेट की काशी लार्ड्स की घसियाली तेज पिच पर कैरेबियाई पेस बैटरी से कपिल की टीम पार पा सकेगी. भारत जब 183 पर सीमित हुआ तब भी यही लगा कि दो बार के विजेताओं के लिए हैट्ट्रिक बस समय की बात है. क्यों न होती ऐसी सोच. जिस टीम के पास कालजयी विव रिचर्ड्स, गेंदबाजों को पानी पिलाने में बेजोड़ डेसमंड हेंज- गार्डन ग्रीनिज की ओपनिंग जोड़ी के अलावा स्वयं कप्तान लायड में कोई एक भी चलने पर लक्ष्य बौना बनना था मगर वह दिन भारतीय हरफनमौलाओं का था जिन्होंने बल्ले और गेंद में उपयोगी प्रदर्शन से महफिल लूटी. मोहिंदर अमरनाथ "मैन आफ द मैच" घोषित किये गये.
मेरी हालत यह कि हेंज, ग्रीनिज और रिचर्ड्स की विदाई के बाद मैं जीत के प्रति आश्वस्त हो चला था और वही हुआ जब कपिल ने कप हाथ में उठाया.
मैं आधी रात के बाद जब घर के लिए चला तब विश्वास मानिए कि पूरा बनारस शहर जाग रहा था. मैं तेजी से स्कूटर चलाते हुए जब घर पहुचा तो पाया कि लाहौरी टोला ( विश्वनाथ कारीडोर की भेंट चढ़ा श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर और ललिता घाट के बीच स्थित इस मोहल्ले का वजूद मिट चुका है और पूर्वजों का निर्मित अपना आशियाना भी उसी मे विलीन हो गया ) प्रशंसकों से भरा हुआ था. चौंतरे पर बैंड के साथ शहनाई की जुगलबंदी हो रही थी. पिताजी अस्वस्थ चल रहे थे और नीचे की बैठक में लेटे थे. जब लोगों ने बाजा बंद करने को कहा तब पिताजी नें, जिनका आठ दिन बाद ही तीन जुलाई को विम्बलडन फाइनल की शाम निधन हो गया था, खुशी से चहकते हुए कहा था कि सुबह तक बाजा बजते रहना चाहिए.
आज जिस क्रिकेट को देश का लोग सबसे लोकप्रिय खेल समझते हैं वे नहीं जानते कि लोकप्रियता का पैमाना क्या होता है ? हमने बाद में टी- 20, 2011 का विश्वकप और 2013 की चैंपियंस ट्राफी जीतीं पर सच कहता हूं कि वह 83 वाली अनुभूति कभी नहीं दिखी प्रचार माध्यमों के बाहुल्य के बावजूद.
हंसिएगा नहीं, सरस्वती फाटक के चौराहे पर कैलाश पान वाले ( वह दुकान और आसपास के भवन भी अब इतिहास बन चुके हैं) के यहां तीन हजार से ज्यादा रुपये बाजी के जमा थे. महीनों मोहल्ले के क्रिकेट प्रेमियों ने मिठाई का आनंद लिया था. शर्त यह भी थी जीतने वाला पैसा नहीं पाएगा, मिठाई आएगी..वही हुआ..
(देश के नामचीन खेल पत्रकार पदमपति शर्मा पदक की कलम से)
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