दस साल पहले पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी दैनिक जागरण के लिए काम कर रहा था तो हाथियों की ट्रेन से कटकर व घायल होने व मरने की खबर अक्सर सामने आती रहती थी। हाथियों के ट्रेन से कटकर मरने व घायल होने की खबर अक्सर बेचैन कर देती थी। कभी-कभी हाथी की मौत होने पर उसके शव के पास हाथियों का झुंड आकर जिस तरह चिघाड़ते उसे सुनकर उनकी पीड़ा का भी अहसात होता रहता था। हाथियों की मौत को रोकने के लिए भारतीय रेलवे तमाम योजनाएं बनाती थी लेकिन पटरियों से उनको महफूज करने में नाकाम ही दिखती थी। देश में 2010 से 2020 के दौरान 186 हाथियों की मौत हो गयी थी, 2023 तक यह आंकड़ा दो सौ पार कर गया है।
भारत में तेज़ गति से चलने वाली रेलगाड़ियाँ हाथियों की बढ़ती संख्या को मार रही हैं क्योंकि रेलगाड़ियाँ भारत के उत्तरी पश्चिम बंगाल में खंडित हाथियों के निवास स्थान से होकर गुजरती हैं। इंटरनैशनल एलीफेंट फाउंडेशन ने रेल मार्ग का सर्वेक्षण करते हुए उन रास्तों की पहचान की गई जिनका उपयोग हाथियों के झुंड पारंपरिक रूप से अपने निवास स्थान के भीतर प्रवास और आवाजाही के लिए करते हैं। इस सर्वेक्षण के परिणामों ने आवश्यक रेलवे परिचालन में बाधा डाले बिना हाथियों की मृत्यु को कम करने के विकल्पों को निर्धारित करने में मदद की और रेलवे लाइन के साथ विशिष्ट स्थानों की पहचान की जहां हाथियों की मृत्यु अक्सर और गंभीर होती है। भारत सरकार के तीन रेलवे जोन, रेल मंत्रालय, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने कई योजनाएं बनायी लेकिन अभी हाथियों की जान जाने का सिलसिला नहीं थमा है। आंकड़ों के मुताबिक कोरोना वायरस महामारी के दौरान रेलवे द्वारा सभी सेवाएं स्थगित किए जाने के बावजूद पटरियों पर हथियों की मौत नहीं रूकी। वर्ष 2020 के दौरान 16 हाथियों और 38 अन्य जानवरों की मौत पटरियों पर हुई जबकि वर्ष 2019 के दौरान 10 हाथियों की, वर्ष 2021 के दौरान 19 हाथियों की और इस साल फरवरी तक तीन हाथियों की मौत रेल पटरियों पर हो चुकी है। भारतीय रेलवे ने वर्ष 2017 में हाथियों को पटरियों से दूर रखने के लिए अनूठे उपाय को अपनाने की शुरुआत की थी जिसे ‘ प्लान बी’ कहा जाता है। इसमें मधुमक्खियों की आवाज को ध्वनि विस्तारक के जरिये बजाया जाता है। इन यंत्रों के जरिये हाथियों को मधुमक्खियों के भिनभिनाने जैसी आवाज पटरियों से करीब 600 मीटर दूरी तक सुनाई दे यह सुनिश्चित किया जाता है।
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