माउंट एवरेस्ट को एवरेस्ट नहीं होना चाहिए था
************************************
मैं 2009 में नेपाल गया था एक वर्कशॉप के सिलसिले में। काठमांडू में कुछ दिन रुकना हुआ था। पोखरा भी गए। कुछ स्थानीय जर्नलिस्ट दोस्त बन गए। मैनें जिज्ञासावश माउंट एवरेस्ट के बारे में पूछा। लेकिन वो सागरमाथा (सगरमाथा) करते रहते। तब पता चला कि स्थानीय लोग इसे सागरमाथा ही कहते हैं। एवरेस्ट जरा भी नहीं। उन्होंने बताया कि कैसे आप हैलिकॉप्टर से बेस कैंप तक जा सकते हैं। तब वो बहुत महंगा काम था।
हां पहली बार मुझे पता चला कि एवरेस्ट नाम को लेकर विवाद है। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी नेपाल और तिब्बत की सीमा पर है। तिब्बत में इसे चोमोलुंगमा कहते हैं। काठमांडू में ही पता चला कि नाम का एक भारतीय कनेक्शन भी है। बात आई गई हो गई। इस बीच भारतीय कनेक्शन को लेकर कई प्लेटफॉर्म पर बातें उठीं हैं। खास तौर पर पिछले चार-पांच साल में।
आज एवरेस्ट डे है। आज ही के दिन (29 मई 1953) इंसान ने एवरेस्ट की चोटी पर कदम रखा था। नेपाल के तेंजिंग नोर्गे और न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी ने एवरेस्ट को फतह किया था। लिहाजा यह एक ऐतिहासिक दिन है। उसके बाद तो दुनिया भर के लोग एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचे हैं। सिलसिला जारी है।
इसी बहाने भारत की बात करते हैं। असल में अंग्रेजों 1800 के आसपास ग्रेट त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण (Great Trigonometrical Survey) शुरू किया। इनमें ऊंची चोटियों के बारे में सारी डिटेल को वैज्ञानिक तरीके से स्थापित करना आदि था। वर्ष 1830 से 1843 तक सर्वेयर जनरल थे जॉर्ज एवरेस्ट। उन्होंने तब अपनी टीम में कोलकाता के एक महान गणितज्ञ राधानाथ सिकदर को भी टीम में शामिल किया। सिकदर चोटियों आदि पर काम करने लगे। तब तक ऐसी मान्यता थी कि कंचनजंगा सबसे ऊंची चोटी है। खैर एवरेस्ट यहां से चले गए और उनकी जगह ली एंड्रयू वॉ ने। वे भी एवरेस्ट के साथ काम कर चुके थे। वर्ष 1852 में सिकदर ने साफ बता दिया कि नेपाल व तिब्बत की सीमा पर मौजूद चोटी दुनिया में सबसे ऊंची है। उन्होंने इसकी सही ऊंचाई भी बताई और इसे पीक-15 नाम से जाना गया। अंग्रेज अधिकारी ने इसकी जानकारी दुनिया को दी 1856 में।
नाम रखने को लेकर बात हुई तो वॉ ने अपने पहले बॉस एवरेस्ट के नाम पर ही इस चोटी का नाम रख दिया। मजे की बात यह है कि एवरेस्ट ने ये चोटी कभी देखी तक नहीं थी। कायदे से इस चोटी का नाम सिकदर के नाम पर रखा जाना चाहिए था। सदियों से इसे सगरमाथा कहा जा रहा था, वही नाम रख लेते। दोनों को जोड़ कर भी हो सकता था। अकेला एवरेस्ट तो नहीं होना चाहिए था।
अब कुछ सालों से यह मामला बराबर उठ रहा है। नाम बदलने की मांग हो रही है। भारत के कई मंचों से मांग की जा रही है कि सिकदर के नाम पर रखा जाना चाहिए। हालांकि ऐसा करना आसान नहीं है। कुछ भी बदलाव के लिए नेपाल और अब तिब्बत की जगह चीन की सहमति जरूरी है। तिस पर यूनेस्को तीसरी पार्टी हो गई है। नाम बदलने की चर्चा फिलहाल तो गैर सरकारी प्लेटफॉर्म पर ही हैं। हो सकता है कल को किसी सरकारी मंच से भी उठे। दुनिया में तमाम नाम बदलते रहे हैं। चोटियों के भी। एवरेस्ट का भी बदल जाए तो अनहोनी जैसा कुछ नहीं होगा। वैसे नाम में कुछ नहीं रखा होता लेकिन रखा भी होता है। तिस पर यदि किसी चोटी विशेष का नाम बेतुका हो तब तो बदलने में भी बुराई नहीं है। (लेखक देश के वरिष्ठ पत्रकार हेमंत है)
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/