पहले मुझे उन लड़कियों पर बहुत गुस्सा आता था जो जन्नत के लालच में कन्वर्ट होकर ISIS जॉइन करने चली जाती थीं और फिर वहाँ का जहन्नुम भोगकर वापस भारत आना चाहती थीं। कुछ साल पहले ऐसी ही एक लड़की के परिवार वाले भारत सरकार को कोस रहे थे कि उसे उसकी बच्ची सहित वापस भारत क्यों नहीं आने दिया जा रहा है।
मुझे लगता था कि ऐसा भी क्या ब्रेन कि कोई भी उसे वॉश करके चला जाए। गलती ब्रेनवॉश्ड होने वाली लड़कियों की भी उतनी ही है जितनी कि ब्रेनवॉश करने वाले गिरोह की।
अगर आपको भी ऐसा ही लगता है तो #TheKeralaStory देखिए कि कैसे इन लड़कियों को धीरे-धीरे प्रेम और डर के एक चक्रव्यूह में फाँसकर उनके बाहर निकलने के सारे रास्ते बंद कर दिये जाते हैं।
शालिनी की माँ का ISIS छाप मौलवी के सामने गिड़गिड़ाने का सीन आपको गुस्से, दुख और हैरानी से भर देता है कि कैसे एक माँ अपनी बेटी को वापस पाने के लिए खुद धर्म परिवर्तन करने को तैयार है।
और ये सब देखा जाना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि इस फिल्म में दिखाई गई तीनों कहानियाँ तीन असल परिवारों का भोगा हुआ यथार्थ हैं। ये परिवार फिल्म के आखिर में खुद इस बात की पुष्टि करते हैं। और न सिर्फ़ इस परिवार की, बल्कि जाने कितने परिवारों की यही कहानी होगी।
इसलिए जो इस फिल्म को प्रोपगेंडा बताकर खारिज कर रहे हैं, उनका तो ऐसा है कि वो तो ये भी कहते हैं कि कश्मीरी पंडितों का नरसंहार हुआ ही नहीं, वो तो मज़े-मज़े में घाटी छोड़कर चले आए। और वो तो ये भी कहते हैं कि साल 2002 में गोधरा कांड में ट्रेन में जलाकर मार दिए गए कारसेवक दरअसल 1992 में अयोध्या से विवादित ढांचा गिराकर लौट रहे थे।
अभिव्यक्ति की आज़ादी के इन ढपलीपीटक पैरोकारों ने तो इस फिल्म को बैन करने की याचिका भी डाली थी जो कि खारिज हो गई। तो ये हर तरह से खारिज होने लायक जमात है, इसलिए इसे खारिज करते रहिए और आस-पास लगी हो तो फिल्म देख आइए।
(लखनऊ की वरिष्ठ पत्रकार तृप्ति शुक्ला के अंतरआत्मा की आवाज)
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