...#देव_नगरी_काशी में #काशी_कथा_व्यास एवं #अंतर_राष्ट्रीय_काशी_घाट_वाक_विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में असि से वरुणा बीच बसी काशी की प्रथम....
#तीर्थायन_यात्रा दिनांक 9/4/ 2023 दिन रविवार को पूर्ण हुई इस पुनीत यात्रा के भागी काशीजन ने मां गंगा नदी के तट पर भद्र वन के भदैनी मौहल्ले के मकान नंबर 2 / 17 में विराजित लोलार्क कुंड के निकट अर्क विनायक गणेश जी के दर्शन का लाभ प्राप्त किए...........#काशीखंड_के_छप्पन_विनायक अंतर्गत #अर्क_विनायक ........................काशीमहात्म में कहा गया है रविवार दिन अर्क विनायक गणेश जी का भक्ति भाव से दर्शन पूजन करने से मनुष्य के समस्त तापो की शांति होती है ।
#ताप_मुख्यतः तीन प्रकार के है --
1. दैहिक - इस शरीर को स्वतः अपने ही कारणों से जो कष्ट होता है उसे दैहिक ताप कहा जाता है।
2. दैविक - जो कष्ट दैवीय कारणों से उत्पन्न होता है उसे दैविक ताप कहा जाता है। अत्यधिक गर्मी, सूखा, भूकम्प, अतिवृष्टि आदि अनेक कारणों से होने वाले कष्ट को इस श्रेणी में रखा जाता है।
3. भौतिक - जो कष्ट भौतिक जगत के बाह्य कारणों से होता है उसे भौतिक ताप कहा जाता है। शत्रु आदि स्वयं से परे वस्तुओं या जीवों के कारण ऐसा कष्ट उपस्थित होता है।
इन समस्त तापो से अर्क विनायक शांति दिलाते है । इसीलिए इनका दर्शन बड़े ही प्रयत्न से करना चाहिए ।
अर्क विनायक काशी में अभक्तो (नास्तिकों) का उच्चाटन (काशी से हटाना) करते है और भक्तों (आस्तिकों) को सिद्धि प्रदान करते है । #ॐ_श्री_अर्कविनयकाय_नमः
इस पुनीत यात्रा के भागी काशीजन ने मां गंगा के तट पर भद्र वन के भदैनी मौहल्ले में #लोलार्क_कुंड तीर्थ एवं #श्री_लोलार्क_आदित्य #श्री_लोलार्केश्वर_महादेव के दर्शन पूजन का लाभ प्राप्त किए..त्वमर्कस्त्वं सोमस्त्वमसि पवनस्त्वं हुतवह:परिच्छिन्नामेवं त्वयि परिणता बिभ्रति गिरंहे शिव !!!आप ही सूर्य,चन्द्र,धरती,आकाश,अग्नि जल एवं वायु हैं। आप ही आत्मा भी है। हे देव! मुझे ऐसा कुछ भी ज्ञात नहीं जो आप न हों #ॐ_लोलार्केश्वराय_नमः #काशी_में_महादेव के नेत्र स्वरूप सूर्यदेव राजा दिवोदास के धर्माथ कार्यों का अवलोकन करने के लिए पधारे थे और द्वादश आदित्य स्वरूपों में यहीं विराजमान हो गये, इन लोलार्क आदित्य की किरणों से सन्तप्त तथा असि की धारा से बहुत ही खण्डित होने से बड़े-बड़े पाप काशी में दक्षिण ओर से कभी प्रवेश नहीं कर सकते। लोलार्क षष्ठी के दिन लोलार्क कुंड में स्नान करने से पुत्र की प्राप्ति का फल प्राप्त होने साथ कुंड के जल से चर्म रोगों का भी निवारण होता है। तस्यार्कस्य मनो लोलं यदासोत्काशिदर्शने । अतो लोलार्क इत्याख्या काश्यां जाता विवस्वतः ।। लोलार्कस्त्वसिसम्भेदे दक्षिणस्यां दिशि स्थितः । योगक्षेमं सदा कुर्यात्काशीवासिजनस्य च।। मार्गशीर्षस्य सप्तम्यां षष्ठ्यां वा रविवासरे । विधाय वार्षिकीं यात्रां नरः पापैः प्रमुच्यते ।।#अर्थात् आदित्य भगवान् का मन काशी के दर्शन में अत्यन्त लोल हो गया था । इसी से वहां पर सूर्य का नाम लोलार्क पड़ गया काशी के दक्षिण दिशा में असि-संगम के समीप ही लोलार्क विराजमान है,जिनके द्वारा काशीवासियों का सदा योग क्षेम होता रहता है, अगहन मास के किसी आदित्यवार को सप्तमी अथवा षष्ठी तिथि को लोलार्क की वार्षिकी यात्रा करके मनुष्य समस्त पापों से छुट्टी पा जाता है.....नरः कृतानि यानि पापानि नरैः संवत्सरावधि । नश्यन्ति क्षणतस्तानि षष्ठ्यर्के लोलदर्शनात् ।। स्नात्वासिसम्भेदे सन्तर्प्य पितृदेवताः । श्राद्धं विधाय विधिना पित्रानृण्यमवाप्नुयात् ।। लोलार्कसङ्गमे स्नात्वा दानं' होमं सुरार्चनम् । यत्किञ्चित्क्रियते कर्म तदानन्त्याय कल्पते ।। #अर्थात् मनुष्य के एक वर्ष भर के संचित समस्त पाप इस भानुषष्ठी पर्व में लोलार्क के दर्शन करने से ही क्षण मात्र में विध्वंस हो जाते हैं, जो मनुष्य असि-संगम पर स्नान कर पितर और देवताओं का तर्पण तथा श्राद्ध करता है, वह पितृ ऋण से छूट जाता है, लोलार्क कुण्ड के समीप -असि-संगम पर स्नान, दान, होम और देवता पूजन इत्यादि जो कुछ कर्म किया जावे, वह सब अनन्त फल दायक होता है....…न सूर्योपरागे लोलार्के स्नानदानादिकाः क्रियाः । कुरुक्षेत्राद्दशगुणा भवन्तीह संशयः ॥ लोलार्के रथसप्तम्यां स्नात्वा गङ्गातिसंगमे । सप्तजन्मकृतैः पापैर्मुक्तो भवति तत्क्षणात् ।। प्रत्यर्कवारं लोलाकं यः पश्यति शुचिव्रतः । न तस्य दुःखं लोकेऽस्मिन् कदाचित्सम्भविष्यति ॥#अर्थात् सूर्यग्रहण के समय लोलाकं कुण्ड पर स्नान दानादिक क्रियाओं के करने से कुरुक्षेत्र का दशगुना फल निःसन्देह प्राप्त होता है ,माघ मास की शुक्ला सप्तमी के दिन गङ्गा और असि के संगम पर लोलार्क कुण्ड में स्नान करने से मनुष्य अपने सात जन्म के सञ्चित पापों से तुरन्त मुक्त हो जाता है,जो कोई पवित्र व्रत धारण कर प्रति रविवार को लोलार्क का दर्शन करता है, उसे इस लोक में कभी कोई दुःख नहीं भोगना पड़ता.....यः न तस्य दुःखं नोपामा न ददुर्न विचचिका । लोलार्क मर्के पश्येत्तत्पादोदकसेवकः ।। वाराणस्यामुषित्वाऽपि यो लोलाकं न सेवते । सेवन्ते तं नरं नूनं क्लेशाः क्षुद्व्याधिसंभवाः ।। सर्वेषां काशितीर्थानां लोलार्कः प्रथमं शिरः । ततोऽङ्गान्यन्यतीर्थानि तज्जलप्लावितानि हि ।।#अर्थात् प्रति रविवार को लोलार्क का दर्शन कर उनका पादोदक सेवन करने वाले को दाद और खुजली इत्यादि रोग तथा दुःख नहीं होते ,जो कोई काशी में रहकर भी लोलार्क का सेवन नहीं करता, उसे क्षुधा और व्याधियों से उत्पन्न अनेक क्लेश अवश्य ही भोगने पड़ते हैं ,लोलार्कं काशी के समस्त तीर्थों में प्रथम शिरोदेश भाग है और दूसरे तीर्थ अन्य अङ्गों के समान हैं; क्योंकि सभी तीर्थ असि के जल से धोये गये है.......तोर्थान्तराणि सर्वाणि भूमोवलयगान्यपि ।असिसम्भेदतीर्थस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ।। सर्वेषामेव तोर्थानां स्नानाद्यल्लभ्यते फलम् । तत्फलं सम्यगाप्येत नरैर्गङ्गासिसंगमे ।। #अर्थात् भूमण्डल के जितने ही दूसरे तीर्थ हैं, वे सब के सब इस असिसङ्गम तीर्थं के सोलह भाग में एक भाग के भी समान होने योग्य नहीं हैं,समग्र तीर्थों के स्नान करने से जो फल पाया जाता है, इस गंगा और असि के संगम स्थल में नहाने से वही फल पूर्ण रूप से मनुष्यों को प्राप्त होता है ,यह न तो अर्थवाद है, और न स्तुतिवाद है,यह सत्य ही यथार्थवाद है अतएव साधुजनों को सादर श्रद्धा करनी चाहिए।
इस पुनीत यात्रा के भागी काशीजन ने मां गंगा के तट पर भद्र वन के भदैनी मौहल्ले में #लोलार्क_कुंड तीर्थ एवं
#श्री_लोलार्क_आदित्य #श्री_लोलार्केश्वर_महादेव के दर्शन पूजन का लाभ प्राप्त किए..
त्वमर्कस्त्वं सोमस्त्वमसि पवनस्त्वं हुतवह:
परिच्छिन्नामेवं त्वयि परिणता बिभ्रति गिरं
हे शिव !!!आप ही सूर्य,चन्द्र,धरती,आकाश,अग्नि जल एवं वायु हैं। आप ही आत्मा भी है। हे देव! मुझे ऐसा कुछ भी ज्ञात नहीं जो आप न हों #ॐ_लोलार्केश्वराय_नमः
#काशी_में_महादेव के नेत्र स्वरूप सूर्यदेव राजा दिवोदास के धर्माथ कार्यों का अवलोकन करने के लिए पधारे थे और द्वादश आदित्य स्वरूपों में यहीं विराजमान हो गये, इन
लोलार्क आदित्य की किरणों से सन्तप्त तथा असि की धारा से बहुत ही खण्डित होने से बड़े-बड़े पाप काशी में दक्षिण ओर से कभी प्रवेश नहीं कर सकते।
लोलार्क षष्ठी के दिन लोलार्क कुंड में स्नान करने से पुत्र की प्राप्ति का फल प्राप्त होने साथ कुंड के जल से चर्म रोगों का भी निवारण होता है।
तस्यार्कस्य मनो लोलं यदासोत्काशिदर्शने ।
अतो लोलार्क इत्याख्या काश्यां जाता विवस्वतः ।।
लोलार्कस्त्वसिसम्भेदे दक्षिणस्यां दिशि स्थितः ।
योगक्षेमं सदा कुर्यात्काशीवासिजनस्य च।।
मार्गशीर्षस्य सप्तम्यां षष्ठ्यां वा रविवासरे ।
विधाय वार्षिकीं यात्रां नरः पापैः प्रमुच्यते ।।
#अर्थात् आदित्य भगवान् का मन काशी के दर्शन में अत्यन्त लोल हो गया था । इसी से वहां पर सूर्य का नाम लोलार्क पड़ गया काशी के दक्षिण दिशा में असि-संगम के समीप ही लोलार्क विराजमान है,जिनके द्वारा काशीवासियों का सदा योग क्षेम होता रहता है, अगहन मास के किसी आदित्यवार को सप्तमी अथवा षष्ठी तिथि को लोलार्क की वार्षिकी यात्रा करके मनुष्य समस्त पापों से छुट्टी पा जाता है.....
नरः कृतानि यानि पापानि नरैः संवत्सरावधि ।
नश्यन्ति क्षणतस्तानि षष्ठ्यर्के लोलदर्शनात् ।।
स्नात्वासिसम्भेदे सन्तर्प्य पितृदेवताः ।
श्राद्धं विधाय विधिना पित्रानृण्यमवाप्नुयात् ।।
लोलार्कसङ्गमे स्नात्वा दानं' होमं सुरार्चनम् ।
यत्किञ्चित्क्रियते कर्म तदानन्त्याय कल्पते ।।
#अर्थात् मनुष्य के एक वर्ष भर के संचित समस्त पाप इस भानुषष्ठी पर्व में लोलार्क के दर्शन करने से ही क्षण मात्र में विध्वंस हो जाते हैं, जो मनुष्य असि-संगम पर स्नान कर पितर और देवताओं का तर्पण तथा श्राद्ध करता है, वह पितृ ऋण से छूट जाता है, लोलार्क कुण्ड के समीप -असि-संगम पर स्नान, दान, होम और देवता पूजन इत्यादि जो कुछ कर्म किया जावे, वह सब अनन्त फल दायक होता है....…
न सूर्योपरागे लोलार्के स्नानदानादिकाः क्रियाः । कुरुक्षेत्राद्दशगुणा भवन्तीह संशयः ॥
लोलार्के रथसप्तम्यां स्नात्वा गङ्गातिसंगमे ।
सप्तजन्मकृतैः पापैर्मुक्तो भवति तत्क्षणात् ।।
प्रत्यर्कवारं लोलाकं यः पश्यति शुचिव्रतः ।
न तस्य दुःखं लोकेऽस्मिन् कदाचित्सम्भविष्यति ॥
#अर्थात् सूर्यग्रहण के समय लोलाकं कुण्ड पर स्नान दानादिक क्रियाओं के करने से कुरुक्षेत्र का दशगुना फल निःसन्देह प्राप्त होता है ,माघ मास की शुक्ला सप्तमी के दिन गङ्गा और असि के संगम पर लोलार्क कुण्ड में स्नान करने से मनुष्य अपने सात जन्म के सञ्चित पापों से तुरन्त मुक्त हो जाता है,जो कोई पवित्र व्रत धारण कर प्रति रविवार को लोलार्क का दर्शन करता है, उसे इस लोक में कभी कोई दुःख नहीं भोगना पड़ता.....
यः न तस्य दुःखं नोपामा न ददुर्न विचचिका ।
लोलार्क मर्के पश्येत्तत्पादोदकसेवकः ।। वाराणस्यामुषित्वाऽपि यो लोलाकं न सेवते ।
सेवन्ते तं नरं नूनं क्लेशाः क्षुद्व्याधिसंभवाः ।।
सर्वेषां काशितीर्थानां लोलार्कः प्रथमं शिरः । ततोऽङ्गान्यन्यतीर्थानि तज्जलप्लावितानि हि ।।
#अर्थात् प्रति रविवार को लोलार्क का दर्शन कर उनका पादोदक सेवन करने वाले को दाद और खुजली इत्यादि रोग तथा दुःख नहीं होते ,जो कोई काशी में रहकर भी लोलार्क का सेवन नहीं करता, उसे क्षुधा और व्याधियों से उत्पन्न अनेक क्लेश अवश्य ही भोगने पड़ते हैं ,लोलार्कं काशी के समस्त तीर्थों में प्रथम शिरोदेश भाग है और दूसरे तीर्थ अन्य अङ्गों के समान हैं; क्योंकि सभी तीर्थ असि के जल से धोये गये है.......
तोर्थान्तराणि सर्वाणि भूमोवलयगान्यपि ।
असिसम्भेदतीर्थस्य कलां नार्हन्ति षोडशीम् ।।
सर्वेषामेव तोर्थानां स्नानाद्यल्लभ्यते फलम् ।
तत्फलं सम्यगाप्येत नरैर्गङ्गासिसंगमे ।।
#अर्थात् भूमण्डल के जितने ही दूसरे तीर्थ हैं, वे सब के सब इस असिसङ्गम तीर्थं के सोलह भाग में एक भाग के भी समान होने योग्य नहीं हैं,समग्र तीर्थों के स्नान करने से जो फल पाया जाता है, इस गंगा और असि के संगम स्थल में नहाने से वही फल पूर्ण रूप से मनुष्यों को प्राप्त होता है ,यह न तो अर्थवाद है, और न स्तुतिवाद है,यह सत्य ही यथार्थवाद है अतएव साधुजनों को सादर श्रद्धा करनी चाहिए।
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