" भारतीय अध्यात्म के अनुसार वटवृक्ष की जड़ में ब्रह्मा, तने में विष्णु और पत्तों पर शिव का वास होता है "
पर्यावरण संरक्षण की सीख देता वट सावित्री का व्रत जिसे हम बड़ मावस भी कहते हैं यों तो महिलाओं के अखंड सौभाग्य और पति की लंबी उम्र की कहानी से जुड़ा है, लेकिन इसमें पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी निहित है। ऐसा माना जाता है कि बहुत पहले सावित्री ने अपने पति सत्यवान की प्राण रक्षा के लिए यह व्रत रखा था और अपने पति को मृत्यु के मुंह से खींचकर बाहर लाई थी। बड़ मावस के दिन महिलाएं वट वृक्ष की पूजा कर अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं। व्रती महिलाएं वट वृक्ष को जल अर्पित करती हैं। साथ ही हल्दी लगे कच्चे सूत से लपेटते हुए वृक्ष की परिक्रमा करती हैं। भारतीय अध्यात्म में माना जाता है कि वटवृक्ष की जड़ में ब्रह्मा, तने में विष्णु और पत्तों पर शिव का वास होता है। इसलिए लोक मान्यता के अनुसार वट वृक्ष की पूजा से हर तरह से कल्याण होता है। वट वृक्ष का आदर करते हैं भारतीय समाज वट वृक्ष का आदर करता है। इसके पीछे भले ही धार्मिक मान्यताएं हों, लेकिन उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण का ही जान पड़ता है। वट वृक्ष आकार में बेहद विशाल होते हैं। ये पेड़ पूरे साल राहगीरों को छाया प्रदान करने में सक्षम होते हैं। पुराने समय में अधिकतर सड़कों के किनारे पीपल और बरगद जैसे पेड़ जरूर होते थे। धार्मिक मान्यता वाले लोग इन वृक्षों की पत्तियों तक को नुकसान पहुंचाने से परहेज करते हैं। वट वृक्ष का महत्व इसलिए भी है कि वट वृक्ष की औसत उम्र 150 साल से भी अधिक मानी जाती है। यह पेड़ न सिर्फ राहगीरों को छाया, बल्कि बहुत बड़े पैमाने पर पक्षियों और जंतुओं को आश्रय प्रदान करता है। वट वृक्ष के आसपास प्रदूषण का स्तर स्वत: कम हो जाता है। भारतीय संस्कृति में प्रकृति को ईश्वर और ईश्वर को प्रकृति के तौर पर चित्रित किया गया है। यही वजह है कि ईश्वर की पूजा की बात आती है तो प्रकृति इनसे अलग नहीं रह जाती है। खासकर हिदू उपासना पद्धति में सूर्य, चंद्र, धरती, नौ ग्रह, नदी, पर्वत के साथ ही वायु, अग्नि, जल की भी पूजा होती है। इसी तरह पीपल, बरगद, बेल, आम, नीम, आंवला, अशोक, लाल चंदन, केला, शमी और तुलसी जैसे पेड़-पौधों की भी उपासना हिदू करते रहे हैं। कुल मिलाकर ऐसे लोकाचारों के जरिए विद्वानों ने पर्यावरण संरक्षण का एक दीर्घकालिक और प्रभावी प्रबंध कर दिया है।भारतीय ऋषियों ने भी वृक्षों का महत्व बताया है। कहा गया है कि 'वृक्षाद् वर्षति पर्जन्य: पर्जन्यादन्न संभव:', अर्थात् वृक्ष जल है, जल अन्न है, अन्न जीवन है। मत्स्य पुराण में लिखा है - 'दशकूप समावापी: दशवापी समोहृद:। दशहृद: सम:पुत्रो दशपत्र समोद्रुम:।।' इस श्लोक में एक वृक्ष की तुलना मनुष्य के 10 पुत्रों से की गई है। गंगा निर्मलीकरण पर्यावरण संरक्षण हेतु गंगा सेवा में जुटे गंगा सेवक राजेश शुक्ला ने आवाह्न किया है कि भारतीय संस्कृति के त्योहारों द्वारा दिए गए पर्यावरण संरक्षण के संदेश को हमें भी अपनी दैनिक जिंदगी में अमल में लाकर सुखद भविष्य का संकल्प लेना चाहिए ।
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