प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इलाहाबाद संग्रहालय में रखा हुआ “सेंगोल” निकाल कर लोकसभा में स्थापित करने का निर्णय किया है। यह “सेंगोल” सनातन संस्कृति का चिन्ह है जो 800 वर्ष तक राज करने वाले “चोला राजवंश” की निशानी है और जो राज चलाने के लिए मार्गदर्शन करता था राजवंश के राजाओं का। देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इसे स्वीकार तो कर लिया परंतु क्योंकि यह सनातन की निशानी था, इसे लोकसभा में स्थापित न करके संग्रहालय में रखवा दिया।
इस राजदंड के निर्माण की भी दिलचस्प कहानी है। इसे बनाने वाली कंपनी के वंशजों ने दो साल पहले संग्रहालय प्रशासन से मिलकर उस पर अपना नाम अंकित कराने की गुहार लगाई थी। कहा जाता है कि सोने से निर्मित इस राजदंड को किंग जार्ज की तरफ से अंतिम वायसराय लार्ड माउंट बेटेन ने सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू को सौंपा था।
देश के नए संसद भवन में लोकसभाध्यक्ष के आसन के पास सुशोभित होने वाला सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक राजदंड इलाहाबाद संग्रहालय की 75 वर्षों तक थाती रहा है। इलाहाबाद संग्रहालय को प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू की ओर से प्रदान किया गया यह राजदंड लंबे समय तक गोल्डेन स्टिक के रूप में कला दीर्घा की शोभा बना रहा। राजदंड के रूप में इसकी पहचान होने के बाद इसे छह महीने पहले संस्कृति मंत्रालय की ओर से राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली में रखवा दिया गया था।
इस राजदंड को बनाने का दावा चेन्नई की आभूषण निर्माता कंपनी वीबीजे (वूम्मीदी बंगारू ज्वैलर्स) संग्रहालय प्रशासन के समक्ष कर चुकी है। कंपनी का दावा है कि 1947 में उसके वंशजों ने ही इस राजदंड को अंतिम वायसराय के आग्रह पर बनाया था। इस कंपनी के मार्केटिंग हेड अरुण कुमार तत्कालीन संग्रहालय निदेशक डॉ. सुनील गुप्ता से संपर्क कर इस राजदंड के निर्माण से संबंधित दस्तावेज भी प्रस्तुत कर चुके हैं। 1947 के बाद संग्रहालय के क्यूरेटर रहे एससी काला ने इस राजदंड को प्राप्त किया था। उस दौर में पं. नेहरू की कई निशानियों को आनंद भवन से संग्रहालय में संरक्षित करवाया गया था।यह राजदंड भी उन्हीं में से एक संग्रह के रूप में सोने की छड़ी के तौर पर लाया गया था। आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान कंपनी के वंशजों ने संग्रहालय का दौरा कर राजदंड पर नए सिरे से अपना ब्लॉक लगवाने का आग्रह किया था।
सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक है गोल्डन स्टिक
इस गोल्डेन स्टिक की पहचान सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक राजदंड के रूप में की थी। इसके बाद संस्कृति मंत्रालय की ओर से कराई गई पड़ताल में यह बात सच साबित हुई। इसके बाद संस्कृति मंत्रालय के आग्रह पर राजभवन की बैठक में इस राजदंड को राष्ट्रीय संग्रहालय दिल्ली को प्रदान करने का निर्णय लिया गया। छह महीने पूर्व संस्कृति मंत्रालय की टीम यहां से इस राजदंड को दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय ले जा चुकी है।
सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के तौर पर पहचान होने के बाद इलाहाबाद संग्रहालय से राजदंड को राष्ट्रीय संग्रहालय में रखवाया गया था। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छा पर इसे संसद भवन में सुशोभित कराया जाएगा। संस्कृति मंत्रालय की ओर से बृहस्पतिवार को इसका पॉवर प्रजेंटेशन दिया जाएगा। - सौरभ भाइक, सलाहकार-संस्कृति मंत्रालय।
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