परीक्षा देने के बाद मैं अपने गुरुजी के आश्रम चला गया। वहां पर मैं आर्ट टीचर बन कर पढ़ाने लगा। हमेशा मन में आता था कि भारत तभी तरक्की कर सकता है जब भारत के गांवों की समस्याएं हल होंगी। भारत में गांव से शहर की ओर पलायन नहीं होगा। मेरे मन में गांव की समस्याओं को जानने की भी बड़ी जिज्ञासा थी । एक दिन मैं अपने आश्रम से 5 कोस दूर एक पहाड़ पर बसे गांव की ओर चल दिया। वहां जाकर वहां के सरपंच को मिला और गांव की समस्याओं के बारे में जानकारी ली।
सरपंच ने बताया की सबसे बड़ी समस्या यहां पीने के पानी की है । गांव के बीचों बीच एक तालाब है जिसमें कपड़े धोने का काम से लेकर पशुओं को नहलाने तक का काम होता है । पीने का पानी पहाड़ी से उतर कर आगे जंगल में 2 किलोमीटर अंदर पानी के एक चश्मे से लाना पड़ता है। गांव की औरतें इकट्ठे होकर अपने-अपने घड़े लेकर वहां से पानी भरने जाती हैं। कई बार जब कोई महिला अकेले गई तो उस पर जंगली जानवरों ने हमला कर दिया। मैंने उस कुदरती चश्मे को देखने की इच्छा प्रकट की तो सरपंच मेरे साथ स्वयं उस बरसाती नाले में आगे बढ़े। नाले के अंदर जाने पर पानी का बह स्रोत नजर आया। मैंने बड़े गौर से वह स्थान देखा। मैं सिविल इंजीनियर तो नहीं था परन्तु दिमाग में कुछ बात कौंध गई कि किस तरह इस पानी को हम गांव के नीचे तक ला सकते हैं।
मैंने सरपंच को बताया कि मैं किसी युक्ति से 2 किलोमीटर दूर बहते चश्मे के पानी को गांव तक ला सकता हूं। उसके लिए मुझे फावड़ा और गैनती के साथ जवान बच्चे चाहिए। मैंने सरपंच को कहा कि आप गांव में ढिंढोरा पिटवा दीजिए कि कल यहां पर मुफ्त में मैजिक शो दिखाया जाएगा। मैंने उन्हें कहा कि बस मुझे तैयारी के लिए एक स्थान चाहिए जहां पर यह मैजिक शो दिखाया जाना है। सरपंच महोदय मान गए मुझे स्थान दिखा दिया गया और मैंने अगले दिन आने की कह कर अपने निवास पर लौट आया।
अपनी शिष्या देव इच्छा द्वारा सिखाए गए सभी जादू के खेल जो स्टेज पर दिखाए जा सकते थे उनकी तैयारी की और अगले दिन ठीक टाइम पर मैं वहां पहुंच गया। पहली बार स्टेज पर जादू के खेल दिखा कर मुझे बहुत अच्छा लगा हर गेम पर खूब तालियां बजती । आखिर में मैंने कहा कि 2 मील दूर पानी को हम गांव के नीचे तक ला सकते हैं इसके लिए मुझे हर घर से एक जवान बच्चा यदि उसके पास फावड़ा हो या गैनती हो वह कल मुझे इसी स्थान पर मिलेगा। ग्रामीणों के उत्साह का मेरी लेखनी वर्णन नहीं कर सकती। अगले दिन जवानों का जत्था पहुंच गया और हम उस स्थान पर चले गए जहां पर चश्मा फूटता था।
मैंने देखा था की चश्मे का पानी धीरे-धीरे उस बरसाती नाले में आगे जाकर जमीन में चला जाता था। सबसे पहले मैंने उस पानी को वहां रोकने के लिए बड़े-बड़े पत्थर उस जगह पर जवानों से इकट्ठा करने शुरू किए ताकि पानी जो है वह किसी भी प्रकार आगे नाले में ना जाए। एक जत्थे को मैंने गांव के नीचे एक तालाब खोदने के लिए लगा दिया था । एक जत्थे को मैंने पहाड़ के साथ साथ 6 इंच बाई 6 इंच की नाली बनाने के लिए लगा दिया था। ज्योंहि नाली तथा तालाब बनकर तैयार हुए हमने बांध लगाकर रोका हुआ पानी छोड़ दिया मिनटों में ही तलाव पानी से भर गया गांव के लोगों ने बहुत जश्न मनाया मीठा दलिया बना सब को बांटा गया।
इस प्रकार मेरे अंदर के सिविल इंजीनियर ने बिना किसी लागत के गांव के नीचे तक पानी ला दिया। ना तो लाखों के बजट बने उसके बनाने में साल लगे। सरपंच महोदय खुश होकर मुझे कहा कि आप हमारे गांव में ही रह जाइए हम आपको फ्री जमीन मुहैया करा देंगे। बात बहुत अच्छी थी परंतु मेरे मन में जो एक विचार बचपन से ही पसंद आया है कि समाज को कुछ दो ।समाज से फ्री लेने की कोशिश मत करो। मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि मैं यदा-कदा यहां आता रहूंगा और भी कुछ काम होंगे उन्हें किया जाएगा मेरा पूर्ण सहयोग मिलेगा। वे दिन मेरे जीवन का सबसे बड़ा खुशी का दिन था। सर्वप्रथम तो है कि मैं स्टेज के ऊपर मैजिक शो दिखाने में सफल हो गया और दूसरा गांव के नीचे तक भी पानी आ गया। उस समय मुझे अपनी शिष्य देव इच्छा की कहीं बात याद आ गई कि आप कभी मुझे भूल नहीं पाएंगे।
(लखनऊ के रहने वाले पेशे से सिविल इंजीनियर बाल कृष्ण गुप्ता 'सागर' के संस्मरण)
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