कुछ बरस पहले की बात है कि मैंने अपनी बेटी के साथ दक्षिण भारत घूमने का प्रोग्राम बनाया। मद्रास के बाद बैंगलोर और बाद में मैसूर गए। मैं पहले भी मैसूर घूम चुका था और मैसूर का वृंदावन गार्डन धरती पर स्वर्ग है इसकी बात मैं बिटिया को बताया करता था। जिंदा जी स्वर्ग में घूमने का भी अपना ही आनंद है। मैसूर में बाकी सब जगह घूमने के बाद हम लोग वृंदावन गार्डन पहुंचे। वहां की सुंदरता देख बेटी तो वहां के नजारे देखने में व्यस्त हो गई। उसका मन था कि पूरे का पूरा गार्डन अच्छी तरह से देखा जाए। इसलिए वह मेरे से थोड़ा आगे भाग कर दोनों तरफ देख रही थी।
काफी घूमने के बाद
मैं थक कर रास्ते के किनारे बने एक बेंच पर बैठ गया और दो क्षण के लिए
अपनी आंखें बंद की ताकि वहां के दृश्यों को आंखों में कैद कर लूं। अभी
आंखें बंद की ही थी की कानों में एक प्यारी सी आवाज सुनाई दी ।पापा! पानी।
बंद आंखों में यह तो पता चल ही गया था की यह आवाज मेरी बेटी की नहीं है।
मैंने झट से आंखें खोलीं । क्या देखता हूं एक बहुत सुंदर एक प्यारी सी
बच्ची पानी की बोतल मेरी और बढ़ा रही थी। वह फिर कह रही थी पापा! आप थक गए
हो ना। पानी पी लो। वैसे तो बचपन में हमेशा शिक्षा दी जाती रही है हम
लोगों को कि कभी किसी के हाथ का बिना जाने कुछ नहीं खाना पीना चाहिए। उसके
मनमोहक व्यक्तित्व और छल रहित प्यार के वशीभूत होकर मैंने हाथ आगे बढ़ाया,
बोतल पकड़ी और थोड़ा सा पानी पीया।
पानी पीने के बाद मैंने बेटी से
पूछा कि आप कहां से आई हो। उसने बताया कि वह अरुणाचल प्रदेश की है। उसने यह
भी बताया कि वह और उसके साथी स्टडी टूर पर निकले हैं। उनके साथ उनके भूगोल
के प्रोफेसर साहब भी हैं। उसने फिर भोलेपन से कहा कि पापा मैं आपको अपने
सर से मिला देती हूं। मैं एकदम से उठा और देखा कि उसके सर और साथ के बच्चे
उसके आने का ही इंतजार कर रहे थे। सभी बच्चे भोले भाले प्यारे प्यारे लग
रहे थे। मैंने उनके सर को अपना संक्षिप्त परिचय दिया और उनका परिचय पूछा।
बस फिर क्या था पूरे बच्चे हम दोनों अभिभावकों के साथ घूमते रहे। आपस में
फोटोग्राफी भी की। एक अनजान व्यक्ति को इतने प्यार से पापा कहना, उनका
ध्यान रखना यह बता रहा था कि हमारे पूर्वोत्तर के लोग कितने अच्छे हैं। वह
बात दूसरी है कि हमारे राजतंत्र ने इन सातों बहनों की ओर ध्यान नहीं दिया।
यह सातों राज्यों के विकास पर भी काफी समय तक ध्यान नहीं दिया गया। उस ममता
की मूर्ति उस प्यारी बेटी उसके सहपाठी तथा उनके सर को मैं आजतक भुला नहीं
पाया। कभी कभी निकाल कर फ़ोटो देख उन प्यारे बच्चों को याद कर लेता हूं।
उसकी भोली सी मुख मुद्रा को तो भुलाना संभव ही नहीं। कितने प्यार से कहा था
पापा! पानी। उसके शब्द आज भी कई बार कानों में गूंजने लगते हैं।
(बालकृष्ण गुप्ता, लखनऊ के सीनियर सिटीजन )
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