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सूरज अपने अगले मुकाम की ओर बढ़ चला था...,सुरम्य वातावरण...मेंडोटा झील की शाम सुरमई हो चुकी थी। हाथों में हाथ डाले,गले में हाथ डाले, कमर में हाथ डाले लोगों का झुंड स्ट्रीट से निकल कर झील की ओर बढ़ चला था। इसमें हर आयु वर्ग के लोग शामिल थे पर किनारे पर बैठे लोगों में युवक-युवतियों की बहुतायत थी। हाथों में बीयर का जग थामें गपशप में तल्लीन। ना दुनिया से ना दुनियादारी से उन्हें कोई मतलब। हर कोई मस्त।
कुछ झील किनारे बैठे सूर्यास्त का नजारा देख रहे थे। तो कुछ दूर मोटरबोट में पानी में मस्ती कर रहे लोगों को टकटकी लगाए देख रहे थे। कुछ देर पहले हम सभी कि फोटो क्लिक करने वाली गोरी मैम साइकिलिंग करने वाले साथी के साथ झील की सीढ़ियों पर बैठे मिले। शायद ये पति-पत्नी थे। हम यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन के परिसर में फोटो ले रहे थे। साइकिल सवार ये जोड़ा हमारे पास पहुंचा था। शायद बग्घी में सवार अवयुक्त को लेकर। साथ चल रहे पुरुष ने हैलो किया साथ में प्राची को फैमिली फोटो क्लिक करने में मदद करने को कहा ताकि हम सभी एक साथ फोटो में आ जाएं। सार्थक-प्राची ने सहर्ष स्वीकार कर लिया तो साथ में पीछे खड़ी मैडम को आगे बढ़ कर हम सभी का फोटो करने के लिए कहा। अब तक साइकिल से उतर चुकी गोरी मैडम ने साइकिल को स्टैंड से टिकाया और प्राची के हाथ से मोबाइल ले लिया। दोनों ने एक साथ पूछा कि बैकग्राउंड में कैपिटल बिल्डिंग चाहिए? हमारे सिर हिलाकर स्वीकारोक्ति पर उन्होने वैसा ही फोटो क्लिक किया। जाते जाते एक खुशी साझा कर गए-हम भी जल्दी ही ग्रांड पेरेंट्स बनने वाले है। अवयुक्त के देख कर उन्होने पूछा था शायद हमारे बारे में।
मेंडोटा झील के किनारे पहुंचने के थोड़ी देर बाद यह जोड़ा जा चुका था। इस बीच सार्थक-प्राची भी आइसक्रीम लेकर आ चुके थे। दिन ढलने के साथ ही युवक-युवतियों का रेला कैफे के बाहर झील के किनारे पड़ी कुर्सियों पर जम चुका था। जिन्हें कुर्सियां नहीं मिली वे झील के किनारे सीढ़ियों पर जम कर बैठ गए।इनमें तमाम गैर अमेरिकी लड़के-लड़कियां थे। कुछ हिंदुस्तानी बच्चे भी दिखाई दिए। दरअसल यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कॉन्सिन,शिक्षा का एक बड़ा केंद्र है। देश-दुनिया के लोग यहां पढ़ाई के लिए आते है। युवाओं में अधिकांश इसी यूनिवर्सिटी के छात्र-छात्राएं थे। पापा ये जो यूथ है ये झील किनारे के रेस्ट्रा में पार्ट टाइम कर करके पॉकेट मनी अर्न करते हैं-आइसक्रीम हाथ में थमाते हुए सार्थक ने जानकारी दी। अमेरिका में यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले वाले बच्चे परिवार से खर्च नहीं लेते। पढ़ाई के साथ साथ वो कुछ अर्न करते हैं और अपना खर्च खुद वहन करते हैं-सार्थक ने आगे बताया।
झील में तैर रहे पक्षी की आवाज से हमारा ध्यान झील के पानी की तरफ गया। प्राची ने सावधान किया-पापा मम्मी इनसे बच कर रहना ये हमला भी कर देती है। प्राची ने अवयुक्त को संभाला। हमारी नजरें चिड़िया की तरफ जम गई। हमारे पास से होती हुई चिड़िया जा चुकी थी तो मैने झील के बारे में सवाल किया।
मेंडोटा झील हमारे हिंदुस्तान की डल झील के बराबर तो होगी? कुछ कह नहीं सकते पापा-सार्थक ने जवाब दिया। मेंडोटा एक मीठे पानी की झील है जो मैडिसन, विस्कॉन्सिन में चार झीलों में सबसे उत्तरी और सबसे बड़ी है। झील उत्तर, पूर्व और दक्षिण में मैडिसन, पश्चिम में मिडलटन, दक्षिण-पश्चिम में शोरवुड हिल्स, उत्तर-पूर्व में मेपल ब्लफ और उत्तर-पश्चिम में वेस्टपोर्ट की सीमा बनाती है। इसका क्षेत्रफ़ल15.21 वर्ग मील है। तटरेखा: 21.6 मील है। झील में याहरा नदी से पानी आता है। झील की निर्मलता देखना लायक थी। हमारी डल झील की निर्मलता के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए गए। गंगा समेत तमाम नदियों की सफाई के लिए सरकार को काम करना पड़ रहा है। योजनाएं ऐसी है कि उनके निर्मल होने पर संदेह है।
पापा यहां सीवरेज का पानी किसी भी प्राकृतिक जल स्त्रोत में नहीं छोड़ा जाता-सार्थक ने बताया। सीवेज का पानी ट्रीट करके सिंचाई तथा औद्योगिक जरूरतों को पूरा करता है। झील के किनारे मजाल क्या कोई गंदगी करे। बर्गर-पिज्जा खाकर कोई उसका डब्बा झील में नहीं फेंका जाता न ही बीयर के कंटेनर किनारे छोड़ देता है। झील के किनारे बड़े बड़े कूड़ेदान में लोग डालते हैं।आदत में शुमार है ये सब। ये सुनते सुनते मेरी आंखों के सामने बनारस के घाट की तस्वीर घूम गई। गंगा निर्मलीकरण के नाम पर सरकार अभियान तो चला रही है पर वो फलीभूत नहीं हो रही। हो भी कैसे जब शहर के गंदे नाले का पानी सीधे पवित्र गंगा मैया के भरोसे छोड़ दिया जाएगा तो यही होगा। असि-वरुणा,दोनों नदियां मृत हो चुकी हैं। गंगा घाट के किनारे कितनी गंदगी छोड़ आते हैं हम सब। काश ये सबक सीख सकते कि प्राकृतिक जल स्रोतों को जिंदा रखने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की नहीं हमारी भी है। पेड़ हमें अच्छी हवा देते हैं। नदियां-झील व जलाशयों के बिना जीवन की कल्पना करना बेमानी होगा। काश हम कुछ सीख पाते।
(अमर उजाला के कई संस्करणों के संपादक रह चुके वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र त्रिपाठी की कलम से)
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