आम का मौसम आ गया है। आम आदमी का आम से रिश्ता बहुत गहरा होता है। अपना भी आम से रिश्ता बहुत खास रहा। यूपी के संतकबीनगर नगर जिले के बेलहरकला गांव में आम के बाग से लेकर देश के कई राज्यों में तरह-तरह के आम खाने का मौका मिला। आम से अपन का कितना पुराना याराना है,इसे याद करने पर सबसे पहले जेहन में बचपन की याद आती है। जब गर्मी की छुटिटयों में पूरा हम भाई-बहन के साथ गांव पहुंचते थेे तो लखनऊ से रेलवे में काम करने वाले चाचा भी बच्चों संग पहुंचते थे। गोरखपुर से चचेरे बाबा भी बच्चों संग पहुंचते थे। अयोध्या के चाचा भी संस्कृत विद्यालय बंद होने के बाद गांव पर पहुंचते थे। गांव में आम के कई पेड़ थे। लगड़ा,मिश्री,दशहरी आम के पेड़ों के छोटे-छोटे फल जिसे टिकोरा कहते थे तो उसको आंधी-पानी आने पर घर से भागकर बाग में जाकर बीनने का अलग सुख था। बीनने के बाद कुछ कच्चे आम नमक के साथ चटखारे लेकर खाने का सुख था तो कुछ को भूनकर खाने का अलग आनंद था। आम के बाग में किसी आम को तोड़ने के लिए अघोषित निशानेबाजी प्रतियोगिता भी बाग में होती रहती है। जिंदगी का चार दशक पहले जो लुत्फ था वह अब जेहन में कैद है लेकिन उसकी मिठास में कोई कमी नहीं है। पढ़ाई-लिखाई के लिए बस्ती से लखनऊ यूनिवर्सिटी जाने के बाद पत्रकारिता की पिच पर उतरने के बाद काशी से कश्मीर से लेकर दिल्ली से दार्जिलिंग तक तरह-तरह के आम का स्वाद चखने का मौका मिला। आम की मिठास के साथ उससे जुड़ी ढेरों यादें आप संग इस ब्लाग में शेयर करूंगा लेकिन बात काशी की। दो दशक पहले जब काशी हिंंदुुस्तान तबादला होकर पहुंचा तो वहां से अखबार छपता नहीं था। सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के सामने ब्यूरो आफिस था। एके लारी ब्यूरो चीफ थे उनके सहयोगी के रूप में पहुंचने के बाद काशी के गलियों से लेकर किस्म के किस्म के जायके का स्वाद चखने का मिला। मौसम आम का है तो लगड़ा आम की याद आना स्वाभाविक है। काशी में कहावत मशहूर है- काशी कबहुँ न छोड़िए, विश्वनाथ का धाम मरने पर गंगा मिले, जियते लंगड़ा आम। बाबा विश्वनाथ की कृपा से काशी में एक कुटी हो गयी है। काशी में नौकरी करने के कारण मां-बाप भी अंतिम समय में यहीं आकर प्राण त्यागे। अंतिम समय में माता-पिता की सेवा से गंगातट पर अंतिम संस्कार भी किया। मां-बाप दुनिया में नहीं रहें लेकिन आम को लेकर बचपन में बस्ती जिले में दक्ष्रिणदरवाजा के मार्केट से पापा जिस तरह हम भाई-बहन के लिए आम खरीदकर लाते थे उसकी मिठास आज भी दिल,दिमाग में हैं। देश के कई राज्यों में घूमने के साथ आम का स्वाद चखने से लेकर इसके गणित से भी परिचित होने का सौभाग्य मिला। आम का गणित कोई आम गणित नहीं बल्कि खास गणित है। आम का खास गणित मित्र दीपक आचार्य ने जो बताया वह काफी रोचक है। आप भी पढ़िए
कच्चे और पके आम का ख़ास गणित
कच्चे हरे आम के छिलके फेंकना नहीं है। कच्चे आमों को साफ धो लीजिये, सूखे कपड़े से पोछ लीजिये, छिलके उतारकर इसके पल्प का आमचूर, अचार, मुरब्बा बगैरह बना सकते हैं, रही बात इसके छिलकों की, तो इसके छिलकों को फेंकने की गलती ना कीजिएगा। छिलकों को धूप में 3-4 दिन उलतपुलटकर सुखा दीजिये और इन्हें ग्राइंड करके पाउडर बना लें। इस पाउडर की आधी चम्मच मात्रा हर दिन एक गिलास पानी के साथ पीना सेहत के हिसाब से बेहतरीन है। कच्चे आम के छिलको में एंटीऑक्सीडेंट कंपाउंड मैंजीफेरीन पाया जाता है, छिलकों का 70-80% हिस्सा फाइबर्स होता है और तो और इनमें पॉलीफिनॉल्स, कैरेटेनॉइड्स, विटामिन C, विटामिन E और कई अन्य महत्वपूर्ण प्लांट कंपाउंड्स पाए जाते हैं। हार्ट की समस्याओं के लिए इन नेचरल कंपाउंड्स की जरूरतों को लेकर ढेर भर रिसर्च पेपर्स पढ़े जा सकते हैं। आपके बालों, स्किन और आंखों के लिए भी ये कंपाउंड्स बड़े काम के हैं। इसके अलावा कच्चे आम के छिलकों में ट्रायटर्पिन और ट्रायटर्पिनॉएड्स पाए जाते हैं जो कि एंटीकैंसर और एन्टीडायबेटिक कंपाउंड्स हैं। इतना सब कुछ है इन छिलकों में फिर भी इन्हें डस्टबीन/ दुष्टबीन का रास्ता दिखा देना मूर्खता है, फेंकिये मत, कंज्यूम कीजिये बाबा।
अब बात करते हैं पके आमों की
आपको पता है ना मेरे मित्र दीपक आचार्य स्वघोषित आम राजा हैं ...राज गद्दी पर बैठकर टोकरीभर देसी आम पेट में उड़ेल देते हैं राजा बाबू...खैर...मुझे यकीन है कि आपके परिवार में कोई डायबेटिक है तो आम के नाम से ही दहशत मचे रहती होगी, क्यों? क्योंकि किन्ही डॉक्टर साहब ने बोल रखा है कि आम खाने से शुगर लेवल बढ़ जाएगा, आम डायबिटीज के रोगियों के लिए ज़हर है, ऐसा ही कुछ बोला गया ना? अरे दादा, अति करोगे तो सब ज़हर है...आम में बेशक नेचरल शुगर होती है और ये नेचरल शुगर बाकी अन्य फलों की तुलना में ज्यादा ही होती है। करीब 150 ग्राम आम में 25 ग्राम तक नेचरल शुगर...तो क्या ये किसी डायबेटिक के शुगर लेवल को बढ़ा देगी? कोई रिसर्च नहीं है, कोई प्रमाण नहीं है तो काहे इतना हो हल्ला? टेंटुआ मसक देने का मन करता है...अरे साहब, 150 ग्राम पके आम से दिनभर का 70% तक विटामिन C मिल जाता है और रिसर्च बताती हैं कि विटामिन C और केरेटिनोइड्स (जो पके आम में खूब होते हैं) डायबिटीज होने की संभावनाओं को कम कर देते हैं। तो कुलमिलाकर, कवि कहना चाहते हैं कि 150 ग्राम आम का पल्प बगैर चिंता के हर दिन खाया जा सकता है, 150 ग्राम पल्प यानी मध्यम आकार के 4 आम (गुठली और छिलके बगैर)...शुगर- वुगर है, तो रहने दो, आप आम खाएं, कोई फर्क नहीं पड़ेगा, बिंदास दबाएं
कुछ और बातें हैं, ये जरूर दिमाग में डाल लें...
◆ आम खरीदते समय सूंघकर चेक ना करें, केमिकल्स हो सकते हैं
◆ आम को इस्तमाल करने से पहले 20 मिनिट तक पानी में डालकर रखें, एसिडिटी नहीं करेगा और केमिकल्स वगैरह इसकी स्किन पर हों तो निकल जाएंगे
◆पके आम का छिलका नहीं चबाना है वरना पेट दर्द कर सकता है
◆आम खाने के बाद आधा कप कच्चा या पका दूध पी लीजियेगा, जल्द पचेगा और गर्म नहीं करेगा
◆ डायबिटीज वालों को आमरस, जूस या शेक नहीं पीना है, इसमें शक्कर डाली जाती है, जूस वैसे भी नहीं लेना चाहिए
◆ डायबिटीज वालों को आम एक दिन में उतना ही खाना जितना बताया, इतने आम खाकर शुगर शूट नहीं करेगा
◆ डायबेटिक्स लोग आम खाकर रोस्टेड मूंगफली या रोस्टेड चने खाएंगे तो मूंगफली और चने के प्रोटीन शुगर स्पाइक कम करने में मदद करेंगे...
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