घुमक्कड़ी
एम्सटर्डम एयरपोर्ट पर मिलने-जुलने के बाद बेटी ने सबसे पहला काम किया कि हम लोगों को मसाज मशीन के सामने खड़ा करके कहा कि पहले आप लोग मसाज करा लीजिए। हम लोग संकोच कर रहे थे। एक तो यह सब विलासिता लगता है दूसरे मन मे आशंका थी कि न जाने क्या खर्चा हो। यह भी मालूम था कि पेमेंट भी यही लोग करेंगे। पर उन दोनों की जिद के आगे हम लोगों का हठ टिक नहीं सका। लेकिन पांच मिनटों के मसाज ने वास्तव मे हमे बहुत रिलैक्स कर दिया। वहां की करेंसी को देखते हुए दो युरो ज्यादा नहीं थे।
एयरपोर्ट किसी माल की तरह से लग रहा था। चारों तरफ की चकाचौंध और व्यवस्था से हमे अचम्भित थे।यहीं पर से ट्रेन, मेट्रो,ट्राम के स्टेशन थे। बस भी बिल्कुल करीब ही मिलती थी। सबसे अच्छी बात थी कि सबके लिए उचित संकेतक थे। भीड़ बहुत थी। लोग बहुत जल्दी मे दिख रहे थे पर अफरा-तफरी नहीं थी। एस्केलेटर पर लोग एक साइड मे खड़े होते हैं।दूसरी साइड एस्केलेटर पर तेजी से चलने वालों के लिए छोड़ दी जाती है।
यह सब देखते-दिखाते हम लोग अपनी टैक्सी का इंतजार करने लगे। टैक्सी चालक के आते ही गुड मार्निग का आदान प्रदान हुआ। उन्होंने सामान रखने मे भी सहायता की। बातचीत मे स्वागत करते हुए पूछा भी कि कहां से आ रहे हैं। एक जिंदा संवाद पर बिना किसी निजता के अतिक्रमण के।टैक्सी चलने पर हमारी निगाहें जैसे सब कुछ अपनी पलकों मे कैद कर लेना चाहती हों।उत्सुकता का उम्र से संबंध की बात पहले भी बेमानी लगती थी और अब इस पर मुहर लगती दिख रही थी। चारों तरफ हरियाली ही हरियाली दिख रही थी।बीच-बीच मे नहरें भी देखने को मिलीं।लोगों के घरों के सामने अपनी नौकाओं को देख कर आश्चर्य हुआ। पता चला कि वहां बहुत सारे लोग प्राइवेट नाव रखते हैं।इसी तरह खूब सारे लोग साइकिलिंग करते हुए दिखे।वह भी यहां परिवहन का एक सशक्त माध्यम है।इन बातों पर विस्तार से बाद मे।
हम लोग नई जगह के सम्मोहन मे डूबे हुए थे कि अचानक गाड़ी रुकी और हम लोग अपने गंतव्य के सामने थे। वहां हमारे सुपुत्र पहले से मौजूद थे।इन्हें इनकी बहन और जीजा ने हम लोगों से पहले ही बुला लिया था क्योंकि इनके पास कम समय था और भारत लौट कर अपनी नौकरी शुरू करनी थी।ये अपनी दोनों बहनों और जीजा लोगों के बहुत दुलारे हैं और वही लोग इनके एकेडमिक, सोशल और प्रोफेशनल गाईड भी हैं।आज इनकी ड्यूटी घर की साफ-सफाई की लगी थी जिसे इन्होंने बखूबी अंजाम दिया।युरोप मे सभी कार्य स्वयं करने होते हैं।श्रम की कीमत बहुत अधिक है।घंटे के हिसाब से श्रमिक मिलते हैं, इसलिए लोग अधिकतम कार्य खुद ही करते हैं।इस पर एक पोस्ट अलग से बनती है।
पत्नी ने सर्वप्रथम घर के मंदिर मे ईश्वर को हाथ जोड़कर एक घर से दूसरे घर सुरक्षित पहुंचने पर आभार व्यक्त किया।घर आने पर चाय की तलब सबसे पहले लगती है। अदरक कूट कूट कर बनी चाय को पी कर हम दोनों की आत्मा तृप्त हो गई।चाय हम दोनो साथ ही पीते हैं।फिर शुरू हुआ पूरे परिवार के साथ बातें,बातें और बातों का सिलसिला।लेकिन खाली बातों से काम तो चल नहीं सकता है।अतः सभी लोग अपने अपने काम मे लग गये। स्नानादि से निवृत्त होकर घर का भोजन किया गया।वैसे तो घर से निकले दो ही दिन हुए थे और फ्लाइट का खाना भी अच्छा था पर संतुष्टि तो घर के भोजन से ही मिलती है।
शाम को बेटे के साथ घूमने निकला।नीदरलैंड्स मे ट्राम और बस की सेवा बहुत अच्छी है।हर स्टेशन पर रुट मैप लगे हुए हैं।आने जाने वाली अगली दो ट्राम का समय डिस्प्ले बोर्ड फर आता रहता है।समयबद्धता उच्च स्तरीय है।एक एक मिनट के लिए घड़ी मिलाई जा सकती है।ट्राम का कार्ड बेटी ने पहले ही बनवा दिया था।टिकट कोई चेक नही करता है परंतु सभी यात्री चढ़ते और उतरते समय अपना कार्ड स्कैन करते हैं।यदि यात्रा समाप्ति पर टिकट स्कैन करना भूल गए तो अंतिम स्टेशन तक का किराया लगेगा।घर के पास से ही ट्राम पकड़कर हम लोग स्लॉटरवार्ट पहुंच गए।यह बहुत बड़ा पार्क है।इसका नाम स्लॉटरवार्ट नहर के नाम पर रखा गया है।चारों ओर बहुत अच्छी हरियाली फैली थी।बहुत बड़े बड़े पेड़ों के कारण वातावरण बहुत सुखद था। लोग पैदल और साइकिल से घूम रहे थे।हम लोगों ने कुछ फोटो भी लीं। आवासीय क्षेत्र के ठीक बाहर एक अस्पताल, स्लॉटरवार्ट्ज़िएकेनहुइस और नीदरलैंड कैंसर संस्थान हैं।थोड़ा और घूम घाम कर हम लोग घर आ गये।फ्रांस और स्विट्जरलैंड का कार्यक्रम तो इन लोगों ने फाइनल कर दिया था परंतु शेष युरोप का कार्यक्रम मुझे बनाना था। सो वह भी अगले दिन से शुरू करना था। (लखनऊ के मानिंद राकेश श्रीवास्तव जब पहली बार यूरोप भ्रमण करने गए तो क्या रहा अनुभव पढ़े)
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