सात समंदर पार मां के पैरों में गिरे हिंदुस्तानियों के दिल की बात दिल से सुनिए
मई 15, 2023
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किशोरावस्था में पिता जी द्वारा डलवाई एक अच्छी आदत अभी तक बरकरार है ।पिताजी भोर होते ही घूमने निकलते और मुझे भी अपने साथ ले जाते ।मुझे अल सुबह जब पौ फट रही हो आसमान का रंग धीरे-धीरे बदलरहा होचिड़ियाँ चहचहाने लगे उस समय सुनसान रास्तों पर घूमना अच्छा लगता है ।पाँच बजे तक निकल जाती हूँ । बड़े बेटे के पास दुबई में थी । टहलने निकली एरिया शांत था ,हल्का सा अंधेरा था तभी बग़ल से एक तेज़ रफ़्तार साइकिल निकली थोड़ा आगे जाने पर सवार ने मुड़कर देखा और लौट पड़ा ।पास में आकर साइकिल बिजली के खंभे से टिका दी और मेरी तरफ़ बढ़ा मैं खड़ी हो गई मान लिया कि हाथ में पहना सोने का कड़ा और गले की ज़ंजीर का मेरा साथ यही तक का था ।पर यह क्या वो एक तरह से लपक कर मेरे पैरों पर गिर गया मैं हड़बड़ा गई मैंने कंधापकड कर कहा क्या बात हैभाई ?पैर पकड़े ही उसने चेहरा ऊपर उठाया ।वो एक दक्षिण भारतीय था ।टूटी फूटी हिंदी अंग्रेज़ी मिलाकर उसने अपनी बात कही ।बोला अपनी ज़मीन बेच कर यहाँ आया हूँ तीन महीने बीत गए हैं अभी तक कोई ठीक काम नहीं मिला है कल किसी से काम के लिए मिलने जाना है आप मां स्वरूप हो अपनी पूजा में मेरे लिए प्रार्थना करना ।उसे विश्वास था कि बच्चों के लिए की गई माँ की प्रार्थना भगवान ज़रूर सुनते हैं ।मैंने हाथ पकड़ कर उठाया कहा ज़रूर करूँगी ।वो पैर छूकर चला गया ।वो मुझे दुबारा नहीं मिला शायद उसका विश्वास जीत गया था ।उस अनजाने बेटे के लिए अपने आप हाथ जुड़ गए ।
एक दिन रसोई की खिड़की का दरवाज़ा बंद नहीं हो रहा था बहू ने बढ़ई को बुलाया,काम पूरा करके बाहर आया ,मैं बाहर बैठी अख़बार पढ़ रही थी ।मुझे देखकर मुस्कुराया आदाब किया और आकर पास में घास पर बैठ गया ।अपना नाम शाहजहाँ बताया बोला हैदराबाद का रहने वाला है ।बोला आपको देखकर माँ याद आ गई ,मेरी माँ पिछले साल नहीं रही ।हम दो भाई है मैं यहाँ हूँ छोटा आबूधाबी में है ।माँ बिना अपने बेटों का मुँह देखें चली गई और हम भी उसके ऊपर दो मुट्ठी मिट्टी नहीं डाल पाए ।सोचकर गए कि अब वापस नहीं आएँगे पर आना पड़ा क़र्ज़ लिया है माँ चाहती थी हमारा एक अच्छा घर हो घर बन रहा है वो चली गई है पर पूरा होने पर ऊपर से देखेंगी तो ख़ुश होगी ।माँ कीं आत्मा को संतुष्टि देने की कोशिश में लगा बेटा ।
ओमान,मस्किट घूमने गए थे होटल के रेस्टोरेंट में सुबह नाश्ता करने गए एक हिंदुस्तानी लड़का दिखा।पास आया नमस्कार किया उसका नाम आशुतोष था ।मैंने पूछा कहाँ के हो आशुतोष बोला यू ,पी का मैंने कहा यू,पी में कहाँ बोला गोरखपुर मैंने कहा अरे वाह तुम तो पड़ोसी निकले मेरा पैतृक घर इलाहाबाद है वो मुस्कुराया ।मेरी मेज़ पर जूस का गिलास देख कर बोला आप ये मत पियें मैं आपके लिए ताज़ा निकाल कर लाता हूँ ।अपनी मेज़ के साथ हमें भी पूछता रहा मैं जब चलने लगी आया और जैसे जब एक माँ अपने बच्चे को स्कूल छोड़ती है तब वह पूछता है कि लेने आओगी न उसी मासूमियत के साथ उसने पूछा कब तक रुकेंगी कल सुबह आएगी न माँ -माँ हाँ मैंने ठीक ही सुना उसने माँ ही कहा था ।शायद यह शब्द बोलने के लिये उसकी ज़बान तरस रही थी। कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं जो समय ,उमर और दूरी के मोहताज नहीं होते हैं उनमें सबसे ऊपर है -माँ
(लखनऊ की गोपी त्रिवेदी ने मदर डे पर यह संस्मरण भेजा है,पढ़े अच्छा लगे तो शेयर भी करें अपनों संग )
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