1984 का चुनाव: अमिताभ बच्चन बनाम बहुगुणा
वर्ष 1984 में 30 अक्टूबर को देश की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की उनके ही आवास में उनके ही सुरक्षा प्रहरियों द्वारा गोली मारकर की गई हत्या के बाद पूरे देश में आक्रोश था। दिल्ली में दो बड़ी घटनाएं घटी थीं। 1948 में महात्मा गांधी की हत्या और 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या। दोनों ही गांधी थे और दोनों के मारे जाने के वर्ष में 19 के साथ 4 और 8 के अंक भी थे, एक में 48 और दूसरे में 84,अजीब संयोग! दोनों को ही गोली मारी गई थी और दोनों की हत्या उनके आवास में की गई थी, एक की सुबह और एक की शाम को। दोनों ही अति शक्तिशाली राजनेता थे और दोनों की ही हत्या के बाद प्रतिक्रिया स्वरूप हजारों निर्दोष लोगों का कत्लेआम हुआ था। दोनों की ही हत्या के बाद तत्कालीन सरकार ने सुरक्षा में लापरवाही की कोई जिम्मेदारी नहीं ली थी और इसके उलट इन हत्याओं से उपजी सहानुभूति का बेशर्मी के साथ राजनैतिक लाभ लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। यही नहीं, इन दो हत्याओं के बदले में सरकार प्रायोजित नरसंहारों में जो हजारों निर्दोष लोग मारे गए थे, उनकी मौत पर भी कोई दुख तक व्यक्त नहीं किया था। बल्कि यह संदेश देने की कोशिश की गई थी कि जो कौम हमसे टकराएगी, वह चूर चूर हो जाएगी।
बहरहाल, देश में लोकसभा के चुनाव की घोषणा कर दी गई थी और कांग्रेस के सबसे बड़े सिपहसालार अरुण नेहरू एक महाशक्ति के रूप में अवतरित हुए थे और रणनीतिक चालें चलने और गोटियां बिछाने की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई थी क्योंकि राजीव गांधी राजनैतिक रूप से अपरिपक्व थे और शोकग्रस्त भी थे। नेहरू खानदान में वह (अरुण नेहरू) आखिरी राजनैतिक शख्सियत थे जिन्होंने नेहरू सरनेम को अपनाया था, वरना अन्य सभी ने नेहरू सरनेम को त्याग कर गांधी सरनेम अपना लिया जो आज तक जारी है। यह भी शोध का विषय है कि नेहरू खानदान गांधी खानदान में कैसे परिवर्तित हो गया?
देश में लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका था और इंदिरा गांधी की शहादत से उपजी कांग्रेस की लहर भी चरम पर थी। मुझे जहा तक याद आता है, शायद 23 नवंबर को इलाहाबाद संसदीय सीट से हेमवती नंदन बहुगुणा जी ने अपना नामांकन किया था "दमकिपा" से, "दलित मजदूर किसान पार्टी" से। इस पार्टी से चौधरी चरण सिंह, मोरार जी देसाई, देवी लाल आदि लोग जुड़े थे। इस चुनाव में देश भर में दमकिपा ने 168 उम्मीदवार उतारे थे जिसमें से तीन ने विजय भी हासिल की थी।
बहुगुणा जी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रह चुके थे, इलाहाबाद उनकी कर्मभूमि थी और इलाहाबाद की रग रग में उनकी पद्चाप ध्वनित होती थी। नामांकन के बाद उन्होंने अपने घर पर प्रेस कांफ्रेंस की थी जिसमें शहर के कुछ वरिष्ठ पत्रकार शामिल हुए थे। मुझे भी उस प्रेस कांफ्रेंस में शामिल होने का अवसर मिल गया था "अमृत प्रभात" अखबार की तरफ से। बहुगुणा जी राष्ट्रीय स्तर के नेता थे। मैंने सवाल पूछ लिया "कितने दिन रहेगें इलाहाबाद में?"
बहुगुणा जी का जवाब था, "मुझे पूरा देश देखना है। मैं तीन दिन से ज्यादा यहां रुक नहीं पाऊंगा।"
फिर मुस्कुराकर बोले, "इलाहाबाद तो अपना शहर है, यहां पर घर घर जाने की क्या जरूरत? सभी तो अपने ही हैं।"
हंसी मजाक चल ही रहा था कि दूसरे कमरे से टेलीफोन की घंटी बजने की आवाज़ सुनाई पड़ी। किसी ने फोन उठाया और फिर बहुगुणा जी के कान में फुसफुसाकर कुछ बोला। बहुगुणा जी ने उसकी तरफ देखा और चिंतित मुद्रा में कुछ सोचने लगे।
पत्रकारों में भी सुगबुगाहट शुरू हुई। पूछा कि क्या मामला है?
बहुगुणा जी ने थोड़ी सी हिचकिचाहट के बाद बताया कि एन टी रामा राव का फोन आया है लाइटनिंग कॉल से। बात करना चाहते हैं।
उस समय लैंडलाइन का जमाना था। एसटीडी का जन्म नहीं हुआ था। शहर से बात करने के लिए ट्रंक कॉल बुक कराना पड़ता था जिसमें घंटों या कई दिनों तक का वक्त लग जाता था। अगर अर्जेंट बात करनी होती थी तो लाइटनिंग कॉल बुक कराना पड़ती थी जिसकी कीमत बहुत ज्यादा हुआ करती थी। कोई अर्जेंट बात होगी तभी रामाराव ने लाइटनिंग कॉल की होगी! पत्रकारों ने कहा कि जाकर फोन सुन लीजिए, हम लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं। एन टी रामाराव विख्यात फिल्मी हस्ती होने के साथ ही आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हुआ करते थे। कांग्रेस विरोधी कैंप के बड़े नेता थे।
थोड़ी देर बाद बहुगुणा जी लौटे तो थके हुए लग रहे थे। चिंता में डूबे हुए दिख रहे थे। हम लोगों ने पूछा तो कोई जवाब नहीं दिया। अन्य बातों का भी बेमन से जवाब दे रहे थे।
एक वरिष्ठ पत्रकार ने जो बहुगुणा जी से मुंह लगे थे, अपनी मूंछें टेरते हुए कहा कि रामाराव से जो बातचीत हुई है, बता दीजिए। हम लोग तो घर के ही हैं, हमसे क्या परदा?
कुछ पल ठहर कर बहुगुणा जी ने धीरे धीरे कहना शुरू किया, " एन टी रामाराव ने बताया कि इलाहाबाद से मेरे खिलाफ अमिताभ बच्चन को कांग्रेस की तरफ से उतारा जा रहा है।"
यह सुनकर सबको सांप सूंघ गया। किसी के मुंह से कोई आवाज नहीं निकली। लग रहा था कि जैसे सबका फ्यूज उड़ गया हो, किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि इस सूचना पर क्या प्रतिक्रिया दें। यह ऐसी खबर थी जिसने सबको उत्तेजित कर दिया था। लोग निःशब्द थे और दिवास्वप्नों में डूब गए थे, सोचने लगे थे कि अमिताभ बच्चन यहां की गलियों में घूमेंगे, फोटो खिंचवाए, पत्रकारों से वार्ता करेंगे, अकल्पनीय!
इस सन्नाटे को चीरते हुए बहुगुणा जी की आवाज़ फिर गूंजी," एन टी रामाराव कह रहे थे कि तुम चुनाव हार जाओगे। मैं हवाई जहाज भेज रहा हूं, तुरंत चले आओ और आंध्र प्रदेश से भी नामांकन कर दो। कल सुबह आ जाओ, मैं सारा इंतजाम कर देता हूं।"
एक के बाद एक बम फूट रहे थे और लोगों को तो जैसे लकवा मार गया था। कोई अपनी जगह से हिल भी नहीं पा रहा था। पता नहीं लोगों की सांसे चल भी रहीं थी कि नहीं! कमरे के भीतर सिर्फ सीलिंग फैन की ही घरघराती आवाज़ सुनाई पड़ रही थी। सुपरस्टार अमिताभ बच्चन के इलाहाबाद से चुनाव लडने की खबर उत्तेजना तो पैदा कर रही थी लेकिन बहुगुणा जी के हार जाने की एन टी रामाराव की भविष्यवाणी उस उत्तेजना पर टनों पानी गिरा दे रही थी। खुशियों के ऊपर दुखों का पहाड़ जो टूट पड़ा था!
एक पत्रकार ने इस शांति को भंग करते हुए पूछा कि आपने क्या सोचा है?
बहुगुणा जी जवाब नहीं दे पाए।
जब फिर यह सवाल दोहराए गया तो बहुगुणा जी ने अपने अंदाज़ में जवाब दिया, " सोचना क्या है? इलाहाबाद मेरी कर्मभूमि है। जब मैं यहां से हार जाऊंगा तो कहां से जीतूंगा? ये नचनिया गवैया लोग मुझे हरायेगें? मैं नहीं मानता।"
एक पत्रकार ने गंभीरता बरतते हुए अपनी जुबान खोली," एन टी रामाराव फिल्म स्टार रहे हैं, लोगों की नब्ज पहचानते हैं, उनकी बात में गंभीरता है इसलिए उसे गंभीरता से ही लीजिए। चले जाइए, वहां से भी नामांकन कर दीजिए!"
बहुगुणा जी ने कुछ देर विचार किया और फिर कहा, "नहीं, मैं यहां के लोगों को धोखा नहीं दे सकता हूं। यह मेरी कर्मभूमि है, यहां बच्चे बच्चे को मैं जानता हूं और लोग मुझे जानते और मानते हैं। इस प्रदेश का मैं मुख्यमंत्री रह चुका हूं, केंद्रीय मंत्री रहा हूं, कितने काम किए हैं, इंडस्ट्रियल एरिया बनाया है, मैं यहां से हार जाऊंगा? नहीं, कभी नहीं…मैं कहीं नहीं जाऊंगा, यहीं से चुनाव लडूंगा!"
बहुगुणा जी की यह उक्ति सुनकर कोई खुश नहीं हुआ। यह बहुगुणा जी की आत्मश्लाघा ही लग रही थी, यह हर पत्रकार समझ रहा था। एक तो अमिताभ बच्चन और दूसरा एन टी रामाराव की भविष्यवाणी! सबको बहुगुणा जी की हार आसमान पर लिखी इबारत के रूप में नज़र आने लगी थी। सबको वैसा ही दुख हो रहा था जैसे कि अस्पताल में भर्ती मरीज के लिए डॉक्टर यह घोषणा कर दी कि किसी और अस्पताल में दिखाना हो ले कर… अब कुछ बचा नहीं है, बस भगवान से प्रार्थना करिए….!
23 नवंबर की उस शाम को हेमवती नंदन जैसे महानायक का सितारा इलाहाबाद के आकाश में डूब रहा था और लोगों की आंखों में एक और सितारा चमकने लगा था जिसको इलाहाबादियों ने न तो समीप से कभी देखा था और इतनी शोहरत हासिल कर लेने के बाद जिसने अभी तक इलाहाबाद की इस धरती पर पैर भी न रखा था। रुपहले पर्दे के इस सितारे को बिना मांगे ही इलाहाबादियों ने वोट के साथ दिल भी दे दिया था।
(प्रयागराज के वरिष्ट पत्रकार स्नेह मधुर जो दुनियाभर की मीडिया जिस लोकसभा सीट पर नजर लगायी थी उसको कवर किए थे,यह संस्मरण उनके हैं)
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/