आगरा के बेलनगंज इलाके में पथवारी के पास महालक्ष्मी सिनेमा हॉल अभी भी चल रहा है, एक जमाने में सिर्फ फैमिली ड्रामे, धार्मिक पिक्चर्स ही लगते थे, दोस्ती फिल्म देखी थी, ब्लैक में टिकट बिकते थे, फिल्में भी महीनों तक चलती थीं, स्कूल, कॉलेज, मोहल्ले में जो टिकट दिलवा दे, उसका बड़ा रूतवा होता था, लड़कियां भी इंप्रेस होती थीं, फिल्मों से जुड़े बहुत किस्से हैं, आगरा में एक समय तीस से ज्यादा सिनेमा हॉल होते थे, घटिया का जीवन हॉल हमेशा हाफ रेट पर पिक्चर दिखाता था, इंपीरियल, सदर बाजार, अंग्रेजी फिल्में दिखाता था, हम लोग साइकिल पर लदकर come September, ten commandments, Ben Hur, तमाम फिल्में देखने गए थे, बाद में भगवान टॉकीज, हीरा, श्री, तुलसी, नटराज, शीला, अंजना, शाह, सत्तर के दशक में खुले, इमरजेंसी के बाद एमजी रोड काफी चौड़ा हो चुका था, शहर की सीमाओं का विस्तार शुरू हो चुका था, टीला काटकर नगर निगम और सूर सदन बना, बड़ी जेल, जो अब संजय प्लेस है, के सामने पहाड़ साफ करके नर्सिंग होम्स, और मार्केट बन चुके हैं, प्रोटेस्टेंट चर्च की प्रॉपर्टी थी,
सिनेमाओं की बात चल रही थी, कुछ हॉल्स जैसे भारत टॉकीज, राजा मंडी सिल्वर और गोल्डन जुबली हॉल्स माने जाते थे, बाद में चित्रा सिनेमा के पास राजश्री बना, हींग की मंडी में ताज सिनेमा और जसवंत टॉकीज का भी कया कल्प हुआ, roxy cinema रिक्शे वालों के टेस्ट के घटिया पिक्चर लगाने के लिए जाना जाता था, धुलियागंज का बसंत टॉकीज ने भी कई hit filmen लगाईं, राम बाग पर अप्सरा सिनेमा ज्यादा नहीं चला लेकिन ताज गंज में कैलाश थिएटर पॉपुलर रहा, बालूगंज में मेहर सिनेमा ने एक स्टैंडर्ड कायम किया. सबसे बड़ा सिनेमा हॉल अंजना टॉकीज रहा जो अब मॉल बनने जा रहा है, आजकल ट्रेंड मल्टीप्लेक्सेस का है, cosmos mall, sarv mall, Pacific, टिके हुए हैं, संजय सिनेमा खुलने के बाद टीवी आ गया, १९८२ के एशियन गेम्स के बाद ट्रांसमिटर्स का जाल बिछ गया, जिससे दूरदर्शन का प्रसारण सुलभ हो गया, राम बाग चौराहे के आगे टीवी टावर लगा, बाद में टूरिज्म इंडस्ट्री वालों ने विरोध किया, क्योंकि ताज महल के खींचे फोटोज में ये टावर व्यू खराब कर रहा था, यहां से टावर शमशाबाद रोड गया, लेकिन तब तक केबल टीवी एंट्री कर चुका था,
(आगरा के वरिष्ठ पत्रकार बृज खंडेलवाल की यादें)
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