पांच मई की ही तारीख थी,सन 1980 की बात है। दस साल से भी कम उम्र थी। बचपन में गर्मियों के अवकाश का मतलब हम सबके लिए गांव होता था। उस साल अम्मा के साथ हम भाई-बहन मामा के गांव गोरखपुर जिले के खजनी तहसील के बांसपार गांव में गए थे। गर्मियों में स्कूल बंद होने के बाद हम सब पैतृक जन्मभूमि संतकबीरनगर जिले के बेलहरकला गांव या मामा के गांव जाने का इंतजार करते थे। गर्मियों की छुटटी में गांव में मस्ती की जो पाठशाला चलती थी,उसका आनंद ही अलग था। मामा के घर आम के बहुत पेड़ थे। गर्मियों में आसमान में आंधी का संकेत मिलते ही बाग की तरफ हम उम्र बच्चों के साथ दौड़ लगाने के बाद आम बीनने का अलग ही लुत्फ था। इस लुत्फ के लिए मौसम की मेहरबानी के लिए आसमान की तरफ निगाहें गड़ी रहती थी। शाम पांच बजे के आसपास का समय होगा ही अचानक दक्षिण दिशा की तरफ से अचानक लाल रंग का चक्रवात बढ़ता आ रहा था, उसको आता देखकर हम बाग में पहले पहुंचने के लिए बिना अम्मा को बताए दौड़ लगा दिए। मामा के घर से आम के बाग तक दौड़ लगनी शुरू हुई थी कि अचानक कई छप्पर भी साथ में उड़ते हुए दूर जाकर गिर रहे थे। चंद सेकेंड में ही लाल रंग का चक्रवात अचानक काली आंधी की शक्ल में बदल गया। अपने साथ धूल के गुबार लेकर इतनी तेजी से वह आगे बढ़ा कि बाग में पहुंचने से पहले ही आंखों के सामने अंधेरा छा गया। आंखों के सामने अंधेरा छाने के बाद अपने को इससे निकलकर घर पहुंचना किसी चुनौती से कम नहीं था। अंदाजा से पैर बढ़ाकर चलते-चलते अंधेरे में घर पहुंचने की कोशिश करने का फैसला करने के बाद एक-एक कदम बढ़ाने लगा था। इस कोशिश के दौरान कई बार पगडंडी से नीचे गिरा लेकिन हार न मानने के संकल्प के साथ आगे बढ़ता जा रहा है। अंधेरे में कदम बढ़ाने के दौरान बांस का झुरमुट मिला, अंधेरे में उसकी एक झाड़ को पकड़कर आगे बढ़ने के क्रम में जब फुनगी तो पहुंच गए करिक्की आंधी के साथ पानी के साथ भीगने भी लगे। अंधेरे में आम बीनने के लिए घर से भागने के बाद इतनी बड़ी मुसीबत में फंस जाएंगे,सोचा ही नहीं था। चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा के कारण डर भी लगने लगा था लेकिन बजरंगबली का नाम लेककर पैर आगे बढ़ाने का फैसला किया। हाथ से बांस का साथ छूट गया था लेकिन आम के बाग की जगह घर लौटने के लिए कदम किधर बढ़ रहा था नहीं मालूम लेकिन बढ़ाएं जा रहे थे। बांस का साथ छूटने के बाद एक-एक कदम बढ़ाने के लिए जमीन को अंदाजा से तलाशा जा रहा था। इसी कड़ी में एक-एक कदम बजरंगबली का नाम लेकर आगे बढ़ा रहा था। अंधेरे में कदम कहां जा रहा था कुछ अंदाजा नहीं था, एक कदम धरती पर पड़ने के बाद तब दूसरा कदम रखने के लिए फिर धरती तलाशने के लिए यत्न-प्रयत्न के बीच तबाही के तूफान से बाहर निकलने का संघर्ष जारी था। दस मिनट से ऊपर हो गए लेकिन अंधेरे का साम्राज्य छंटने का नाम नहीं ले रहा था,डर बढ़ता जा रहा था कि अब क्या होगा। डर व हिम्मत के बीच बालमन में चल रहे कशमकश के बीच टटोलकर कदम रखकर आगे बढ़ रहा था और अचानक एक कदम कहां पड़ा नहीं मालूम लेकिन ऐसा लगा किसी गहरी खाई में गिर गए। कई फुट नीचे गिरने के बाद चोट लगने के साथ खड़ा होने का साहस बटोरकर फिर आगे बढ़ने का प्रयास करने को सोचा। खड़ा होने के बाद जब आगे बढ़ने का प्रयास करता तो दीवार टकरा जाती थी। इससे अंदाजा हुआ कि कुंए में गिर गए। गनीमत यह था कि पानी उतना नहीं था डूबा जा सके लेकिन गर्दन तक पानी था। कुंए में गिरने के बाद दिमाग में तरह-तरह के आत्मघाती विचार आने लगे थे। अपने को कोस रहा था जब आंधी में घर से बाहर न निकलने की सीख बड़े मामा देते थे फिर भी उनकी बात पर अमल नहीं किया और भाग निकला। अंधेरे में कुंए में गिरने के बाद दिमाग खुलने के साथ अपने को कोसने संग भगवान से प्रार्थना कर रहा था कि यहां से निकाल दो। भगवान को शायद कुछ और मंजूर ही था। कुंए में गर्दन तक पानी में डूबने के बाद भगवान से बाहर निकालने की विनती के बीच प्रार्थना जारी था कि अचानक मेरे ऊपर कोई गिर पड़ा। उस बोझ के कारण फिर पानी में डूबने लगा, जो गिरा था वह क्या है? इसको जानने के लिए हाथों से टटोलना प्रारंभ किया तो पता चला कि मेरे जैसा ही शायद कोई लड़का है जो आम बीनने के चक्कर में काल के गाल में आकर गिर गया है। काल के गाल में अब हम अकेले नहीं थे,एक अनाम अपरिचित अज्ञात साथी आ गया था। यह साथी मेरे ऊपर गिरा था इसलिए चोट उसको नहीं लगी थी मुझे लगी थी। कुंए के पानी में डूबने से बचने के लिए फिर पैर पर खड़ा होने के बाद उससे पूछा कौन है तो उसने अपना नाम और पिता जी का नाम बताया। मुझसे पूछा तो मैने अपना नाम बताने का साथ मामा का नाम बताया कि हम गर्मी की छुटटी में अम्मा के साथ आए हैं। आंधी आती देखकर आम बीनने के लिए बाग में जा रहे थे कि करिक्की आंधी में यहां गिर गए। उसने भी बताया कि आम बीनने के चक्कर में हम भी नीचे गिर गए। परिचय होने के बाद काल के गाल में अब क्या होगा इसको लेकर चर्चा शुरू हुई तो हम लोग चिल्लाने लगे बचाओ-बचाओ लेकिन कोई सुनने वाला हो तो सुने। आपस में चर्चा करने लगे कि अब हम सब मर जाएंगे तो पता नहीं घर वालों को जानकारी होगी कि नहीं? इसी बीच बजरंगबली का नाम लेकर काल के गाल से निकलने के लिए संघर्ष का दौर भी चालू हो गया। मामा के गांव में आने से पहले बस्ती शहर में शिवनगर तुरकरहिया में दो कमरे का मकान बन गया था लेकिन सीढ़ी नहीं लगी थी। छत पर जाने के लोभ में हम दोनों भाई दो दीवारों को जोड़ने के लिए जो ईंट का सांचा छोड़ा जाता था उसको पकड़कर अम्मा-पापा को बिना बताए गुस्ताखी कर चुके थे। हम लोगों की कारिस्तानी देखकर एक दिन पापा साइकिल पर कटेश्वरपार्क से बांस की सीढ़ी लेकर आए थे। ईंट को पकड़कर छत पर चढ़ने का अभ्यास अचानक काल के गाल में जिंदगी व मौत के बीच संघर्ष के समय याद आ गया। उसके बाद कुंए की दीवारों में हाथों से टटोलकर उन ईंट को खोजने लगा जो निकली हो जिसको पकड़कर यहां से निकलने का प्रयास किया जा सका। काफी मसक्कत के बाद कुछ ऐसी ईंट महसूस हुई जो टूटी या निकली हुई है,उससे चढ़ने का प्रयास हुआ। तीन-चार बार निकलने के प्रयास में गिरा भी। और आखिर में बजरंगबली की कृपा से सफल होने के बाद बाहर निकला तो उस लड़को इसी तरह निकलने का प्रयास करने को कहते हुए कहा तुम भी निकल आओ नहीं तो मामा के घर पहुंचकर तुम्हारे घर जाकर संदेश भिजवाता हूं तुम कुंए में गिरो हो। घबड़ाओ मत तुम बाहर निकल जाओगे, हिम्मत रखो। कुंए से निकलने के बाद घर पहुंचा तो मेरी खोजबीन प्रारंभ हो गयी थी, गांव में काली आंधी से भारी तबाही मची हुई थी। छप्पर कई कोस उड़कर चले गए थे। घर पहुंचने के बाद मामा के साथ अम्मा को बताया हम कुंए में गिर गए थे। कंए से किस तरह निकले इसके बारे में बताते हुए उस लड़के के बारे में बताया जो मेरे ऊपर गिरा था वह अभी कुंए में हैं। उनके घर वालों को खबर करने की बात कहने के बाद मेरे हाल को देखकर कपड़ा बदलवाने के साथ बिस्तर पर सुला दिया गया। आंधी-पानी व बरसात के कारण तबियत खराब हो गयी थी, सबेरे जब नींद खुली तो सबसे पहले उस लड़के के बारे में पूछा तो पता चला कि वह भी जिस तरह तुम निकलकर आए थे उसी तरह वह भी निकल आया था। काल के गाल से सुरक्षित निकलकर आने के उपलक्ष्य में अगले दिन अम्मा ने भगवान सत्यनारायण की कथा को सुनवाया। कथा सुनने के बाद उस लड़के से मिलने की इच्छा हुई तो काल के गाल में साथी बना था। मामा के लड़के संग उसके घर गया वह बिस्तर पर लेटा था उसकी भी तबियत खराब हो गयी थी। कैसे निकले? पहला सवाल यही किया तो बताया जैसे तुम बताए थे वैसे ही निकला। काल के गाल में गिरे दो मित्रों की जिंदगी की जंग जीतने की मुस्कान संग उससे विदा लेकर मामा के घर आ गया। करिक्की आंधी में मौत के मुंह में जाकर जिंदा बचने की घटना 43 साल बाद अचानक याद आ गयी। मामा के घर से जब बस्ती लौटकर आया तो करिक्की आंधी के निशान तमाम जगह मौजूद थे। घर के बगल में मौजूद सक्सेरिया इंटर कालेज का गेट धाराशायी हो गया था। तबाही का मंजर मेरे मुहल्ले में भी मौजूद था। दर्जनों घरों से छप्पर उड़कर कहा चले गए थे तो कुछ पता नहीं था। कितने पेड़ गिर गए गिनती नहीं थी।
अत्यंत ही साहसिक एवं एडवेंचरस
जवाब देंहटाएंपुराने समय को याद करने पर एक बहुत ही खूबसूरत उत्साह से मन भर उठता है। फिर बीते हुए कल में जीने की इच्छा घर करती है लेकिन यह सम्भव नहीं हो सकता है। इसलिए जीवन को जी भर कर जिओ। बहुत ही खूबसूरत ढंग से व्यक्त किया गया है।
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