यह बात 1998 या 1997 की है. इंटरमीडिएट के दौरान लखनऊ के हजरतगंज की हलवासिया मार्केट में मैं स्पोकन इंग्लिश का कोर्स करता था. एक मृदुभाषी लड़का जो मुझसे उम्र में थोड़ा बड़ा था... नाम शायद मिथलेश यादव था. बातें ज्ञान वाली करता था.. अंग्रेजी भी अच्छी थी. पता नहीं क्यों वह मुझे कुछ ज्यादा ही साथ रखा करता था. कभी चाय औऱ कभी समोसा तो बन मक्खन की महफ़िल जमा करती थी
.. दिसंबर के आख़िरी 10 दिन थे. एक दिन उसने मुझे घर के लैंड लाइन फोन कॉल किया औऱ कहा कि मैं आज शाम नरही मोहल्ले के एक ख़ास पते पर पहुंच जाऊं... उसके दोस्तों की एक पार्टी है. जहाँ हम मस्ती करेंगे. मैं शाम को तय समय पर नरही में उसके बताए पते पर जा पहुंचा. मैं तो उस ठिकाने पर पहुंचा तो देखाकि एक बड़ा हॉल था. साफ सुथरा सजा हुआ. इस हाल में रोशनी का अच्छा प्रबंध था. दीवारों पर मदर मैरी और जीसस क्राइस्ट की तस्वीरें लगी हुई थीं. कमरे में मेरे हमउम्र और मुझसे कुछ बड़े करीब 20 लड़के लड़कियां थें. मिथिलेश मुझे उन से मिलाने ले गया. सबसे परिचय हुआ और गेम शुरू हो गए. अंताक्षरी के अलावा गीत संगीत के अनेक कार्यक्रम हुए. फिर हम सब से थोड़ा बड़ा लगने वाला एक युवक आया. उसने हॉल के बीचो बीच एक बड़ा सा टेडी बीयर रख दिया. उसने एक एक कर लड़के लड़कियों को बुलाना शुरू किया. सभी टेडी बियर के सामने आते और अपनी एक-एक विश रखते. आखिर में उसने सभी से पूछा क्या उनकी विश पूरी हुई. जो आप सभी ने दिया कि बिल्कुल नहीं. इसके बाद शुरू हुआ असली खेल . वह युवक हम सब से बोला जब यह टेडी बियर किसी की कोई इच्छा पूरी नहीं कर सकता. तो तस्वीरों में मूर्ति में दिखने वाला भगवान आपकी क्या मन्नत पूरी करेगा. उनमें से अनेक युवक-युवतियों ने सहमति में सिर हिलाया और ताली बजाई. मैं स्तब्ध सा खड़ा यह सब देख रहा था. राम मंदिर आंदोलन के दौरान बालपन से ही विश्व हिंदू परिषद के साथ थोड़ा जुड़ा होने की वजह से धर्मांतरण विषय से मैं बहुत कम आयु में ही परिचित था. मैं बहुत आसानी से सारा माजरा समझ गया. मेरे मन में डर भी था कि आगे अब क्या होगा. उस युवक ने एक लड़के से अलमारी में रखी बहुत सारी किताबें मंगाई. सभी को एक एक किताब दे दी. यह किताब बाइबल थी. सभी को शुरुआती पाठ पढ़ने को कहा गया. मैंने हिम्मत करके पढ़ने से साफ इनकार कर दिया. युवक ने मुझे बहुत समझाया. मगर मैंने कहा कि मैं जाना चाहता हूं. मैं तत्काल वहां से चला गया. किसी ने रुकने का कोई ख़ास दबाव नहीं डाला. उसके बाद उसी युवक मिथिलेश का कई बार फोन आया. अगर उस पार्टी में मैं दोबारा नहीं गया. आज भी वह माहौल मुझे डराता है. धर्मांतरण कि इस मॉडस अपरेंडी का मैं साक्षात गवाह रहा हूं. मैंने यह जाना है कि यह सब कैसे होता है.
(लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार व ईटीवी से जुड़े ऋृषि मिश्र का संस्मरण)
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/