लालटेन का नाम आज की तारीख में बहुत लोगों ने शायद सुना ही नहीं होगा लेकिन जिंदगी के चार-पांच दशक पार कर चुके लोग इससे अपरिचित नहीं होंगे। गांव-देहात में अभी भी लालटेन का एक अलग भौकाल है। खैर ढिबरी व लालटेन संग उम्र के पहिए पर सवार होकर यूपी के बस्ती जिले में जो जिदंगी की गाड़ी चली आज भले देश के कई राज्यों से घूमने के साथ देश की राजधानी में ढेरों चकाचौंध देख रही हो लेकिन दिल में आज भी लालटेन की रोशनी प्रकाशमान है। उम्र सात-आठ साल की रही होगी बस्ती के रौता चौराहा के पास कानूनगो जी के मकान में हम लोग किराएदार थे। बिजली उस समय मुहल्ले में नहीं आयी थी, हर घर में लालटेन या ढिबरी रखने के लिए ताखा बना रहता था। छोटे भाई-बहन के साथ हमारी डयूटी थी सूरज ढलते ही लालटेन का शीशा साफ करके उसको जलाने की। पहले घर में एक लालटेन व दो ढिबरी थी। ढिबरी का निर्माण तो घर में किसी शीशी में केरोसिन का तेल डालने के बाद ढक्कन में छेदकर पुराने कपड़े की बत्ती डालकर बना दिया जाता था। ढिबरी हवा चलने पर अक्सर बुझ जाया करती थी। गर्मी के दिनों में पढ़ने के लिए पापा गांधीनगर के बाजार एक लालटेन और खरीदकर लाए। राजकीय इंटर कालेज से पढ़ाकर शाम को पापा जब साइकिल से लौटते तो हम भाई-बहन इंतजार किया करते थे। एक दिन पापा नया लालटेन लेकर जब स्कूल से लौटते वक्त घर के पास गली में दिखे तो उस दिन हम सब की आंखों में खुशी की पंचलाइट जल गयी। छोटे भाई घर के अंदर अम्मा को दौड़कर बताने गए कि पापा नया लालटेन लाए हैं तो हम छोटी बहन के साथ पापा के साइकिल घर के सामने स्टैंड पर खड़ा होने का इंतजार करने लगे ताकि उसका डिब्बा हाथ में पकड़कर घर के अंदर ले जाया जा सके। पापा के नया लालटेन लाते देखकर हम सब शोर मचाने लगा नया लालटेन आ गया। हम सब की शोर को सुनकर अगल-बगल के बच्चे सुर में सुर मिलाने लगे। दो कमरे के छोटे से किराए के मकान में भगवान का मंदिर भी था। अम्मा-पापा रोजाना पूजा-पाठ करते थे। अम्मा के साथ बगल के दुर्गामंदिर में हम भाई-बहन अक्सर जाते थे। लालटेन आने के बाद डिब्बा लेकर घर के अंदर अम्मा के पास जब हम सब पहुंचे तो एक ऐसी खुशी थी जिसको आज की तारीख में खरीदा नहीं जा सकता है। लालटेन का डिब्बा खोलने के बाद उसके अंदर केरोसिन का तेल भरने के बाद उसको सबसे पहले भगवान के कमरे में जलाने का निर्णय माता जी ने किया। भगवान के सामने माता जी दीपक जला चुकी थी। उसके बाद लालटेन को उनके सामने जलाने के बाद भगवान से खूब पढ़ने-लिखने के साथ ज्ञान देने के साथ दूसरों को भला करने की शक्ति देने की प्रार्थना करने के लिए माता जी ने कहा। हम सब लालटेन को ही भगवान मानकर यह प्रार्थना किए। लालटेन की यह खासियत है उसको हाथ में टांगकर कहीं भी प्रकाश के साथ आया जाया जा सकता था। हम सब फिर भगवान के सामने की लालटेन लेकर खटिया के पास स्टूल रखने के बाद उस पर रखें। छत के ऊपर खटिया के पास स्टूल पर लालटेन रखने से अगल-बगल के लोगों को भी बिना बताए ही बताने का काम किया गया कि मेरे घर नया लालटेन आया। लालटेन की रोशनी में हम भाई-बहन की छत पर उछल-कूद देखकर पापा बोले इसको इसलिए लाए हैं ताकि तुम लोग पढ़ सको। कुछ ही देर हम सब अपना स्कूल बस्ता लेकर आने के बाद कोई न कोई किताब खोलकर बैठ गए, पढ़ने में मन कम। लालटेन की रोशनी के साथ उसको बत्ती ऊपर व नीचे करके बंद करने व तेज करने की घुंडी को घुमाने का दिल बहुत कर रहा था। कोई घुंडी घुमाता तो दूसरा शिकायत करता अम्मा बाबू लालटेन बंद कर रहा है तेज कर रहा है आदि। ढिबरी के बाद लालटेन के साथ किताबों संग जिंदगी का ककहरा पढ़ने का काम जारी रहा। लालटेन के अंदर जो शीशा लगा था तो उसको रोजाना शाम को जलाने से पहले साफ करने की भी हम भाई-बहन को सौंपी गयी। लालटेन खोलने के बाद उसका शीशा निकालकर सावधानी से साफ करने के दौरान कई बार असावधानी हो जाने पर टूट भी जाता था। उस समय किराया की दुकानों पर लालटेन का शीशा की खूब बिक्री होती थी। कई बार हम अपनी गलती से टूटे शीशे को छोटे भाई-बहन के मत्थे मढ़कर डांट से बचने का जुगाड़ भी लगाते लेकिन मां-बाप के सामने किसी बच्चे का झूठ आज तक छिपा है क्या जो सच्चाई सामने नहीं आती। जिसकी गलती होती डांट पड़ती और अगले दिन शीशा लाने की जिम्मेदारी सौंप दी जाती। सत्तर के दशक से अस्सी के दशक में दाखिल होने तक लालटेन संग हम सब की यारी बहुत गाढ़ी हो गई। गर्मियों की छुटटियों में गांव जाने पर भी लालटेन लेकर छत से लेकर बाग-बगीचों तक में जाने का अलग लुत्फ व उत्साह रहा करता था। लालटेन जलाने व बुझाने संग जिंदगी में वह दिन जब हम लोग किराए के मकान को छोड़कर बस्ती शहर के स्काउट प्रेस के पीछे तुरकहिया मोहल्ले में अपने दो कमरे के मकान में पूजा-पाठ के साथ प्रवेश किए। किराए के मकान से अपने मकान में अम्मा-पापा हम दोनों भाई व बहन के साथ दोनों लालटेन भी प्रवेश किए। वहां जाने पर एक और नया लालटेन आ गया। केरोसिन तेल लेने के लिए कंपनीबाग में राशनकार्ड की दुकान पर गैलन लेकर लाइन लगने से लेकर उसको घर तक लाने के साथ लालटेन में डालने के साथ जिंदगी में ज्ञान के प्रकाश का विस्तार होने लगा। प्राइमरी पाठशाला से नार्मल स्कूल में पढ़ाई के लिए आ गए। लालटेन संग अपने मकान में एक गाय भी आयी। गाय के लिए झोपड़ी का निर्माण करवाने के साथ नया लालटेन उसके लिए आरक्षित हो गया। कुछ दिन मोहल्ले में लाइट आयी तो बिजल कनेक्शन लेने का प्रयास शुरू हुआ। बिजली कनेक्शन के बाद घर में बल्ब जलने के साथ अलग रोशनी मिली लेकिन लालटेन जिंदा रहा। प्रदेश के सबसे पिछड़े जिले में शुमार बस्ती में बिजली कटौती की मार अक्सर पड़ती थी उस दौरान लालटेन के शीशा पोछकर जलाने का काम होता रहता था। लालटेन के बाद बिजली फिर कुछ सालों के बाद घर में इन्वर्टर आ गया। उसके बाद भी लालटेन घर में रहा लेकिन शीशे पर समय की धूल जम गयी। लालटेन आज भले ही घरों से विदा हो गया लेकिन दिमाग में आज भी लालटेन की लौ जल रही है। लालटेन की रोशनी में जिंदगी का ककहरा अगर आप भी पढ़े हो तो अपने स्मरण इस रोमिंग जर्नलिस्ट संग शेयर करना मत भूलिएगा।
द इंडियन लालटेन लव स्टोरी
अप्रैल 22, 2023
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