श्रीमती जया बच्चन जी की फोटो मैंने वर्ष 1985 में याशिका मैट कैमरे से खींची थी। पार्क रोड स्थित राजन जी के बंगलो में जहां पर मतगणना के दौरान अमिताभ जी पूजा कर रहे थे। जया जी ने कैमरा फोकस करने का भी समय नहीं दिया था और कार से उतरकर भीतर भाग गई थीं। यह फोटो गंगा जमुना पत्रिका के बैक कवर पर छपी थी जो पान की कई दुकानों पर लगी दिखीं थीं। जया बच्चन जी की इस फोटो के बारे में ...माया पत्रिका ने अमिताभ बच्चन के चुनाव की तस्वीरें खींचने का मुझसे कॉन्ट्रैक्ट किया था transparency में। उस समय transparency खींचने वाला कोई फोटोग्राफर इलाहाबाद में नहीं था। फोटो धुलने के लिए बॉम्बे जाती थीं kodak company में। जया और अमिताभ की मैंने चुनाव के दौरान कई फोटो खींची थी लेकिन माया और मनोरमा को कुछ exclusive photo चाहिए थे urgent. मतगणना चल रही थी, जीत का अंतर बढ़ता जा रहा था, लोग पागल हुए जा रहे थे। अमिताभ जी पार्क रोड पर राजन जी के बंगले में थे, पूजा कर रहे थे। मैं राजन जी के बंगले पहुंचा पार्क रोड पर। खूब भीड़ थी, अमिताभ जी अंदर थे, जाना संभव नहीं था। मैं lawn में बैठकर भीतर घुसने की कुछ तिकड़म सोच ही रहा था कि अचानक बंगले का मेन गेट खुला और एक एंबेसडर कार अंदर घुसी। लोग दौड़े। खिड़की से दिखा कि उसमें जया बच्चन जी थीं। मैंने सोचा की भीतर घुसने का रास्ता मिल ही गया। लेकिन तभी मेरे दिमाग में यह भी कौंधा कि जया जी इस दीवानी भीड़ से बचने के लिए कार से उतरकर सीधे भीतर चली जायेंगी और मैं उन तक पहुंच भी नहीं पाऊंगा क्योंकि मैं उनसे बीस पच्चीस मीटर दूर था! मुझे न जाने क्या सूझा कि मैं ज़ोर से चीख पड़ा, "जया जी...!!!" चूंकि मैं इस दौरान कई बार उनसे मिल चुका था और वह मुझे पहचानती थीं, मैंने सोचा कि वह मुझे देखकर रुक जायेंगी। पुकारने के बाद मैंने उनकी तरफ दौड़ना शुरू कर दिया यह सोचकर कि हो सकता है मेरे पहुंचने से पहले भीड़ उन्हें घेर ले और उन्हें भागना पड़े। इसलिए दौड़ते हुए ही मैंने Yashica Mat G 24 कैमरे का ऊपर का ढक्कन खोला, शटर स्पीड दुरुस्त की और aperture को घुमाया और साथ में कैमरे में झांके बिना ही बाएं हाथ से फोकस भी करने लगा। मेरी आवाज़ सुनकर जया जी एक पल के लिए ठहर गईं और ढूंढने लगी कि कौन उन्हें उनके नाम से पुकारने का दुस्साहस कर रहा है? मुझे पता नहीं क्या सूझा कि बिना कुछ सोचे समझे मैने कैमरे का बटन दबा ही दिया। कोई भी घटिया सा भी फोटोग्राफर बिना फोकस किए हुए दौड़ते हुए कैमरे का बटन दबाने की मूर्खता कभी नहीं करेगा, लेकिन मैने खतरा उठाया यह सोचकर कि ज्यादा से ज्यादा फिल्म खराब होगी और क्या? जया जी ने मुझे अपनी तरफ भागते हुए आते देखा तो तुरंत पलट कर वह भी दौड़ते हुए घर में घुस गईं। दरवाज़ा बंद हो गया। वह इकलौता और आखिरी shot था, अगर मैंने क्लिक न किया होता तो वह moment निकल जाता। बाद में उन्होंने मुझे भीतर बुलवा लिया और घंटे भर तक हम लोग साथ रहे और अमिताभ जी के साथ कई फोटो खींची लेकिन क्या मालूम था कि जो फोटो मैंने फोटोग्राफी के नियमों को ताक पर रखकर क्लिक की थी, वह फोटो ऐसी बेशकीमती निकली कि जैसे मेरे लिए pose दे रही हैं... माया ने इस रंगीन फोटो को बैक कवर पर छापा था और यह फोटो कई शहरों की पान की दुकानों पर पोस्टर की तरह चिपकी भी देखी गईं थी।
(देश के वरिष्ठ पत्रकार स्नेह मधुर की कलम व कैमरे से प्रयागराज में जब अमिताभ बच्चन लोकसभा चुनाव लड़ने पहुंचे थे, उस समय का वाकया)
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