ये है समधी का बटुआ। मेरे भतीजे अंकित का विवाह था 19 अप्रैल 2022 को। मैं तो बाहर ही बाहर सरपट आयोजन में शामिल होकर लौट आया था, लेकिन कल रात श्रीमती जी भी गांव से लौटीं। वधू पक्ष से मिला बटुआ उन्होंने मुझे थमा दिया। ये बटुआ मेरे लिए कोई वस्तु नहीं, बल्कि प्रेम, सम्मान और परंपरा की धरोहर है।
हमारे समाज में पहले विवाह के मौके पर वर पक्ष के लोगों को बटुआ देने की परंपरा थी, लेकिन अब लोग ब्रीफकेस, पर्स या फिर बैग देते हैं। जैसा पर्स आपको तस्वीर में दिख रहा है। अक्सर विवाह में लड़की के पिता के हाथ में होता है और करीब करीब ऐसा ही पर्स वधू पक्ष के उस घराती के हाथ में रहता है, जो न्योता लिख रहा होता है। फर्क ये होता है कि लड़की के पिता का पर्स जब भी खुलता है, तो उसमें से पैसा बाहर निकलता है, जबकि न्योता लिखने वाला जब पर्स खोलता है तो रुपया या फिर लिफाफा भीतर जाता है। तो बात चल रही थी समधी के बटुए की। दुनिया की तमाम दौलत एक तरफ, प्रेम से भेजा हुआ शगुन एक तरफ। श्रीमती जी ने बताया कि आपको बटुआ मिला है। फौरन खोला। काले रंग का ये पर्स खुला तो जैसे खजाना ही खुल गया। पहली चेन खुली तो कंघी, छोटा सा शीशा, लक्स का छोटा सा साबुन और तेल की दो छोटी-छोटी शीशियां मिलीं। एक अलमंड ऑयल की तो दूसरी शीशी निहार आंवला की।
पर्स की दूसरी चेन खुली तो उसमें से धोती, कुर्ता का कपड़ा और एक गमछा निकला। अभी एक चेन खुलनी बाकी थी। उसे खोला तो नारियल का गोला, जनेऊ और चांदी की छोटी सी मछली के साथ एक लिफाफा भी मिला। लिफाफे में कितना था, ये बताना समधी जी की भावनाओं का अनादर होगा। लिफाफा चिपका हुआ था, तो उसका संदेश भी चिपका ही रहेगा।
समधी के बटुए को लेकर कई बार शादियों में विवाद भी हो जाता है। एक करीबी रिश्तेदार की बेटी के विवाह में दो समधियों को दो तरह का बटुआ दिया गया। यानी जो लड़के के पिता थे, उन्हें अटैची दी गई, लेकिन लड़के के चाचा को पर्स दिया गया। लड़के के पिता नाराज हो गए, लड़की के पिता को हड़काते हुए बोले- आपने ये दो तरह का व्यवहार हमारे दो भाइयों में कैसे कर दिया। मैं भी वहीं था। मैंने कहा- उन्होंने अगर गलत किया तो आप सही कर दीजिए। छोटा वाला पर्स आप रख लीजिए और अटैची छोटे भाई को दे दीजिए। छोटे भाई और समधी दोनों का सम्मान रह जाएगा। मामला शांत हो गया, हल निकल आया।
मान-सम्मान परंपराओं से जुड़ी ऐसी चीजें मुझे बहुत पसंद हैं। मेरे जितने भी भतीजों की शादी में बटुआ के तौर पर मुझे जो भी मिला, मैंने संभालकर रखा है। एक समधियान से छोटी सी अटैची मिली थी, उसमें मेरे जरूरी कागजात रहते हैं। एक भतीजे की शादी में छोटा सा बैग मिला था, वो मेरे साथ नजदीकी यात्राओं में जाता है। अब ये पर्स आया है तो इसे भी खास तैनाती दी जाएगी। क्योंकि मेरे लिए ये सिर्फ इस्तेमाल की वस्तु नहीं है। इसमें एक बेटी के पिता की भावनाएं बसी हुई हैं। पिछले बटुओं की तरह ये पर्स भी मुझे याद दिलाएगा किसी ने हमारे भरोसे पर, अपनी बेटी हमारे घर को सौंपी है। हमारे घर-आंगन को महकाने वाली खुशबू भेजी है। वही खुशबू इस पर्स से हमें आ रही है।
(आजतक टीवी न्यूज चैनल के वरिष्ठ पत्रकार विकास मिश्र ने शादी विवाह से जुड़ी प्राचीन परंपराओं को सांझा किया है)
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