आयु 7साल,फरेंदा मिल के क्वार्टर्स में हम लोग रहते थे।मेरा नाम मिल परिसर स्थित गणेश प्राईमरी पाठशाला,में लिखा गया है था।प्रधानाध्यापक पं राम राज पांडेय ढोल बढ़िया बजाते थे। हारमोनियम पर स्वर भी छेड़ते थे। प्रेम से बच्चो को पढ़ाते थे। वहीं दूसरे शिक्षक जिन्हें हम लोग चौधरी पंडित जी कहते थे,पढ़ाते अच्छा थे पर कान उमेठ कर पिटाई भी करते थे। 26जनवरी गणतंत्र दिवस आया तो हम लोग उत्साह से लवरेज थे।सांस्कृतिक कार्यक्रम की तैयारी चल रही थी। गीत भजन,राष्ट्रप्रेम के गीत याद किये जा रहे थे। पता चला इस बार सेठ जी मुख्य अतिथि होंगे अत: एक लघु नाटिका 'परसुराम लक्ष्मण संवाद' का भी था। पहली बार इस नृत्यनाटिका मे परशुराम बनना था,तो रोमांच बड़ा था। संवाद याद किए जा रहे थे। राम लक्ष्मण और बशिष्ठ जी को रामायण की चौपाईयों को गाकर भी अभिनय करना था। मेरे हिस्से मे दोहा 'रे नृप बालक काल वस बोलत तोहिं न संभार..." और कुछ चौपाईयां गानी थीं और अभिनय करना था। शिव धनुष टूटने के बाद एक धोती लपेटे ,दाढ़ी मूंछ लगाये,मस्तक पर भस्म रमाये मेरी एंट्री होनी थी। नियत समय से कार्यक्रम शुरु हुआ । मारवाड़ी पगड़ी पहने सेठ जी और मैनेजर सीताराम भाव सिंह मंच पर बैठे थे। चमचमाता फरसा लिए जब मैने मंच पर प्रवेश किया तो सेठ जी ने मजाकिया अंदाज मे कहा 'बाबा जी प्रणाम! तत्काल तड़क कर मैने जबाब दिया " आशीर्वाद"। उसके बाद तालियों की गड़गड़ाहट होने लगी। मैं खुद चकित था कि यह तो संवाद में नहीं था। फिर भी कैसे मैने तत्काल सेठ जी को प्रत्युत्तर दे दिया। उसके आगे का अभिनय भी जीवंत रहा। कार्यक्रम समाप्त होने पर सेठ जी ने इनाम देकर प्रोत्साहित किया और प्रधानाध्यापक भी खूब सराहना करते रहे।
( पूर्वांचल के वरिष्ठ पत्रकार बीकेएम त्रिपाठी के फेसबुक वॉल से)
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