बात 1984 दिसंबर की है। सुपरस्टार अमिताभ बच्चन इलाहाबाद से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे हेमवती नंदन बहुगुणा जी के खिलाफ़। मुझे माया पत्रिका से संपादक आलोक मित्रा जी और आदरणीय बाबूलाल शर्मा जी ने पूरे चुनाव के फोटो कवरेज की जिम्मेदारी सौंपी थी ट्रांसपेरेंसी (कलर टी पी) से जो उस समय इलाहाबाद में मेरे अलावा कोई नहीं खींच पाता था। कोडक की टी पी प्रोसेस होने के लिए इलाहाबाद से बॉम्बे जाती थी। अचानक मुझे कहा गया कि मनोरमा पत्रिका के लिए एक इंटरव्यू लेना है, आज ही, अमिताभ जी और जया बच्चन जी का पारिवारिक फोटो के साथ, उसी दिन दोनों चीज़ चाहिए क्योंकि उसी दिन मनोरमा को छपने के लिए प्रेस में जाना था। उस दिन मतगणना चल रही थी और अमिताभ जी पार्क रोड में एक बंगले में मौजूद थे। मतगणना में अमिताभ जी उस समय बहुगुणा जी से करीब पचास हजार की लीड ले रहे थे और चारों तरफ जयकारे लग रहे थे।
मैं किसी तरह बंगले में पहुंच पाया। जया जी मुझे अच्छी तरह से पहचानती थीं, इसलिए भीड़ के बीच से उन्होंने मुझे भीतर बुला लिया था। भीतर ड्राइंग रूम में मैं था और जया जी, बस। जया जी ने मुझे एक लंबा साक्षात्कार दिया। साक्षात्कार में उन्होंने दावा किया कि अमिताभ जी की शक्ति को आप लोग नहीं पहचानते हैं, उनके wordwide contacts हैं और वह इलाहाबाद को बदल देगें, सड़कें hotmix plants बनेगी (जो बनी भी) और बसों में कंडक्टर नहीं होगें, automatic खुलने और बंद होने वाले दरवाज़े होगें आदि आदि। उन्होंने इलाहाबाद की गंदगी दूर करने का भी वायदा किया था और अपना एक अनुभव भी सुनाया था कि चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने जीरो रोड पर प्रशंसकों की तरफ हाथ हिलाते हुए ऊपर नज़र उठाई तो देखा कि दूसरी मंजिल पर अपनी बालकनी में खड़ा एक लड़का किस तरह से मुंह से थूक निकाल रहा था पूरी लंबाई में और फिर उसे अपने मुंह में खींच भी ले रहा था वापस.... So Disgusting...! जया जी ने कहा था कि मैं इलाहाबाद की बहू हूं और यहां के युवाओं को साफ सफाई के बारे में भी बताऊंगी.. हाइजीन के बारे में। अंत में मैने उनसे अमिताभ जी के साथ उनकी एक पारिवारिक फोटो खिंचवाने का भी अनुरोध किया।
जया जी ने कहा कि अमिताभ जी तो भीतर पूजा पर बैठे हैं, कैसे उठेगें? मेरे पुनः अनुरोध पर जया जी ने कहा कि मैं कोशिश करती हूं। यह कहकर वह भीतर चली गईं।
थोड़ी देर में वह बाहर आईं और उनके साथ सफेद कुर्ता पायजामा पहने और माथे पर लंबा चौड़ा टीका लगाए अमिताभ जी थे, कुछ गुस्साए से कि क्यों उन्हें पूजा से उठा दिया गया? कौन सी आफ़त आ गई थी? भीतर आकर उन्होंने मुझे घूर कर देखा जैसे पूछ रहे हैं कि क्या करना है?
मैंने उन्हें सोफे पर बैठने को कहा। वह एक सोफे पर बैठ गए तो मैंने लंबे वाले सोफे पर बैठने को कहा। वह सोफे के किनारे वाले एक सिरे पर बैठ गए और फिर प्रश्नवाचक नज़रों से मेरी तरफ देखने लगे। मैंने जया जी से भी सोफे पर बैठने के लिए कहा। जया जी सोफे के दूसरे किनारे पर बैठ गईं और वह भी मेरी तरफ प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगीं। मैंने अपने 124 जी मैट याशिका कैमरे को खोला और फोकस करने के बाद कहा कि आप लोग थोड़ा करीब आ जाइए।
मेरा आदेश सुनकर जया जी थोड़ी हिलीं लेकिन अमिताभ जी ने जरा भी हरकत नहीं की। उन दोनों लोगों के बीच लगभग दो तीन फीट का फासला बना रहा।
मैंने फिर कहा कि "आप लोग थोड़ा और करीब आ जाइए।"
मेरे आदेश को सुनकर जया जी ने अमिताभ जी की तरफ देखा लेकिन अमिताभ जी ने खामोशी ओढ़े रखी और क्रूरतापूर्वक नजरों से मुझे देखने लगे। मैं भूल गया था कि मैं सदी के महानायक को निर्देशित कर रहा हूं, जिसके सामने प्रकाश मेहरा और मनमोहन देसाई तक पानी मांग जाते हैं। मुझे इस बात का कतई अहसास नहीं था जबकि मैं बॉम्बे में उनकी शूटिंग के दौरान उनका कड़क व्यवहार देख चुका था।
दोनों दंपत्ति के एक दूसरे के करीब आने की कोई मंशा न देखकर मैंने भी अपनी कैमरे पर से आंख हटाते हुए बेचारगी भरे स्वर में कहा, "ऐसा कैसे होगा अमित जी? मुझे पति पत्नी की फोटो एकसाथ चाहिए,आप cooperate नहीं कर रहे हैं।"
अमित जी ने मुंह खोला, भारी आवाज़ में बोले जिसका पूरा जग दीवाना था, "बैठे तो हैं हम साथ साथ, और क्या चाहिए?"
मैंने कहा कि"जैसे पति पत्नी बैठते हैं एक साथ, थोड़ा और करीब आइए।"
"साथ ही साथ तो बैठे हैं हम?"
"अरे, पति पत्नी की तरह, एकदम पास"।
"क्या पति पत्नी सोफे पर चिपक कर बैठते हैं हमेशा?"
यह सुनकर मुझे हंसी सी आ गई और सोचा कि शायद मैं उन्हें समझा नहीं पा रहा हूं।
जया जी भी हिचकिचाने सी लगी थीं। उन्हें लगने लगा था कि शायद कुछ ज्यादा हो रहा है, अमित जी का मूड उखड़ सकता है।
वह बोलीं, "इसी को ले लीजिए, अमित जी को पूजा पर बैठना है।"
मैं भी ज़िद पर अड़ गया। मुझे जो चाहिए था, वही लूंगा, कोई खैरात तो चाहिए नहीं।
जब देखा कि सोफे पर दोनों टस से मस नहीं हो रहे हैं तो मैंने नया idea उछाला, ऐसा करते हैं कि आप खड़े हो जाइए और खड़े खड़े वाली फोटो खींच लेते हैं।
अमित जी ने मेरी तरफ आग बबूला होकर देखा कि यह लौंडा मुझे नचा रहा है! उस समय मैं लौंडा ही था, कुल 25 साल की ही तो उम्र थी और सामने था बॉलीवुड का बादशाह जिसकी चमक का मेरे ऊपर कोई प्रभाव परिलक्षित नहीं हो रहा था। शायद यही बात अमिताभ जी को परेशान कर रही थी।
दोनों लोग खड़े हो गए। मैंने कैमरे में झांका, मज़ा नहीं आया। मैंने अमित जी से कहा, "थोड़ा और पीछे होइए।" अमित जी ने मेरा हुक्म मान लिया।
मैंने नया आदेश सुनाया, "थोड़ा और पीछे"।
अमित जी और जया जी थोड़ा और पीछे हुए।
मैंने कहा, दीवार से सट जाइए, वहां पर लाइट सही है।"
दोनों यंत्रचालित तरीके से और पीछे हो गए।
मैंने उनसे उस जगह को बदलने को कहा, "लाइट सही नहीं मिल रही है", और जगह भी बता दी। मेरा यह आदेश भी मांन लिया गया तो मैंने दूसरा कारतूस निकाला और fire कर दिया, "ऐसे नहीं चलेगा...! आप लोग तो अजनबियों की तरह एक दूसरे के बगल में खड़े भर हैं। ऐसे कोई पति पत्नी खड़ा होता है फोटो में साथ? थोड़ा प्रेम प्रदर्शित कीजिए वरना फोटो देखकर लगेगा कि तलाक के बाद की फोटो है! मनोरमा पत्रिका पारिवारिक मैगजीन है, बंगालियों के घरों में जाती है, जरा intimate look दीजिए।"
इतना सुनते ही अमिताभ जी भड़क उठे, "मुझे नहीं खिंचवानी है फोटो, मैं जा रहा हूं"।
इतना कहकर अमित जी भीतर जाने वाले दरवाजे की तरफ चल दिए।
मैंने जया जी की तरफ कातर नजरों से देखा और बोला, "प्लीज़, समझिए कि मुझे क्या चाहिए?"
अचानक जया जी ने अपने तेवर बदले और अपने फार्म में आ गईं। शाल ओढ़कर दरवाजे की तरफ बढ़ रहे अमिताभ को रोकते हुए मुझसे कहा, "बस last... आप अपना कैमरा ready रखिए "!
मैंने कहा "yes, ok"
जया जी ने प्रेम पूर्वक अमिताभ की तरफ देखा और पास आने का आग्रह किया।
अमित जी और जया जी फिर उसी दीवार के साथ सट कर खड़े हो गए। लेकिन अमिताभ जी की अकड़ बदस्तूर थी। जया जी की योजना समझकर मैंने शटर पर अपनी उंगली लगा दी। जया जी ने मुझे गौर से देखा और कहा, "क्लिक"!
इतना कहते ही जया जी ने अमित जी की तरफ अपने को हल्का सा झुका लिया और अमित जी कुछ समझ पाते, इससे पहले उनकी कमर में अपना पूरा हाथ डाल दिया। मैंने शटर दबा दिया। जया जी के चेहरे पर मुस्कान आ गई और अमिताभ भी भौंचके से रह गए! मेरे को कैमरा बंद करते देख वह भी मुझे घूरते हुए पूजा करने के लिए कमरे में चले गए और जया जी ने मेरी तरफ मुस्कुराते हुए देखा और आंखों में चमक भरते हुए पूछा, "Happy !"
मुझे उस लड़कपन में इतनी भी तमीज़ नहीं थी कि मैं खुशी खुशी औपचारिक रूप से Thank you भी बोल देता क्योंकि उस समय की पत्रकारिता के दौर में मुझे श्रेष्ठ होने का भाव रखना सिखाया गया था। न किसी की चाटुकारिता करना, न ही सर कहना (जैसा कि आजकल का रिवाज़ है चैनल पर बड़े से लेकर छोटे तक को सर सर कहते दिखेंगे), न ही अहसान मानना...किसी की पोजिशन से भी अप्रभावित रहकर शुद्ध पत्रकारिता करना। जया जी के इस कठिन प्रयास में विशेष सहयोग का आभार व्यक्त करने की जगह मैं सोचे जा रहा था कि अभी तो इंटरव्यू लिखना है पत्रिका के लिए....कहीं देर न हो जाए! उस समय एक दिन में कई जिम्मेदारियों का निर्वाह करना पड़ता था। यहां से भागकर वहां जाना है और वहां से वहां...! बस भागते ही रहना, घड़ी की रफ्तार से भी तेज़।
और एक खास बात बता दूं। मनोरमा में यह साक्षात्कार तो छपा और फोटो भी। लेकिन इतनी मेहनत से खींची गई फोटो साक्षात्कार के बीच में क्वार्टर पेज छपी थी और वह भी ब्लैक एंड व्हाइट, जगह की कमी थी इसलिए फोटो के साथ न्याय नहीं हो पाया था।
(देश के वरिष्ठ पत्रकार स्नेह मधुर की कलम व कैमरे से प्रयागराज में जब अमिताभ बच्चन लोकसभा चुनाव लड़ने पहुंचे थे, उस समय का वाकया)
Golden memory
जवाब देंहटाएंGood
जवाब देंहटाएंआप सबका शुक्रिया
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