देश के प्रधानमंत्री रहें चंद्रशेखर अब दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी यादें ढेरों खबरनवीसों के जेहन में बसी है। चन्द्र शेखर का जन्म 17 April 1927 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में
स्थित इब्राहिमपत्ती गांव के एक किसान परिवार में हुआ था। वह 1977 से 1988
तक जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे थे। दैनिक जागरण लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अनिल कुमार उनसे जुड़े संस्मरण को शेयर कर रहे हैं। आप पढ़ेंगे तो आपको अच्छा लगेगा।
संस्मरण : सरल सहज अक्खड़ चंद्रशेखर जी की सभा का कवरेज करना मुझे अच्छा लगता था। उनकी हर लाइन में हेडलाइन निकलती थी। सारनाथ में 1990-91 नरेन्द्रदेव जी की जयंती का भव्य आयोजन आज भी याद है। देश के सभी दिग्गज राजनेताओं की मौजूदगी थी। उस समय शाम के अखबार जनमुख में था और अकेले कवरेज की जिम्मेदारी होने के कारण काफी कठिन काम लग रहा था। एक दिन पहले ही मीडिया सेंटर पर मैंने डेरा डाल लिया था। वहां टेलीफोन और टेलीप्रिंटर का प्रबंध था। इसी बीच चंद्रशेखर जी एक दिन पहले शाम को प्रबंध देखने निकले तो मेरे टेंट के पास रुके पूछा सब ठीक है न कोई दिक्कत हो तो बताना। आगे बढ़े तो एक जगह मिट्टी का ढेर देख बोलने लगे तो साथ चल रहे सूरजदेव सिंह फावड़ा लेकर आगे बढ़ ठीक करने लगे तब तक किसी बाहर के अखबार के प्रतिनिधि ने सूरजदेव सिंह की तरफ इशारा करते हुए सवाल पूछा। इस पर चंद्रशेखर जी बोले मुझ से दिन भर में न जाने कितने लोग मिलते हैं मैं क्या जानूं किसका क्या इतिहास है? ये सब पुलिस और कोर्ट का काम है। इसके बाद बोलने के लिए किसी के पास कुछ नहीं था। बोले यहां व्यवस्था में कोई कमी हो तो बताइएगा। याद आ रहा है उसी आचार्य जी की जयंती पर आयोजित सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए पंडित कमलापति त्रिपाठी जी ने कहा था कि सम्मेलन बता रहा है मुल्क का इतिहास करवट लेगा। जनमुख में प्रदीप भैया ने मेरी रिपोर्ट पर पंडित जी की भविष्यवाणी को ही हेडलाइन लगाई जो खूब बिकी। आज भी वह हेडिंग सामयिक बनी हुई है।
उस सम्मेलन में चंद्रशेखर की ताकत दिखी जब एक मंच पर सभी दलों के दिग्गज नेताओं को बैठाया था. ऐतिहासिक सम्मेलन था जो भारतीय राजनीति का टर्निंग प्वाइंट भी था. चौधरी देवीलाल यही पर प्रेस से मुलायम सिंह जी का परिचय कराए कि ये हमारे प्रदेश में नेता है. पूर्वांचल में समाजवादी विचारों की धमक चरण सिंह के बाद कमजोर पड़ गयी थी जिसे मुलायम सिंह ने उसके बाद मजबूत किया. देखा जाय तो चंद्रशेखर भारतीय राजनीति के धुरी थे जो निर्विवाद और स्पष्ट बात रखने के लिए जाने जाते थे. पक्ष विपक्ष कोई मायने उनके लिए नहीं था. वह प्रधानमंत्री बन गए लेकिन अपने जानने वालों के लिए वह सिर्फ अध्यक्ष जी थे. हर राजनीति करने वाले को पद की लालसा होती है मंत्री बनने के लिए पाला बदल से लेकर कुछ भी करते हैं लेकिन यहाँ एक लंबे करियर में सिर्फ एक पद प्रधानमंत्री का और एक मिनट भी गठबंधन का दबाव न सहते हुए छह महीने में ही पद त्याग कर दिया. दिलेरी का नमूना भी देखिए जब वे प्रधानमंत्री थे उसी समय हमारे मित्र आनंद विजय यूपी कालेज वाराणसी के छात्रसंघ अध्यक्ष थे. आनंद विजय दिल्ली पहुंचे और सीधे चंद्रशेखर जी के पास गए कि आपको हमारे छात्रसंघ का उदघाटन करने चलना है. वह हंसने लगे कहे अरे भाई कहाँ ले चलोगे बहुत व्यस्तता इस पद की होती है. आनंद विजय अड़ गए कि आप नहीं चलेंगे तो हम छात्रसंघ का उद्घाटन नहीं कराएंगे. अंत में चंद्रशेखर जी ने कहा जाओ देखेंगे. ये बनारस पहुंचे और उधर पीएमओ से डीएम कार्यालय में सिक्योरिटी क्लीयरेंस के लिए आ गया और तैयारी के निर्देश थे. चंद्रशेखर आए छात्रसंघ का उद्घाटन किए और यूपी कालेज को आटोनमस बनाने की घोषणा की. यह आत्मीयता और चाहने वालों को निराश न करने का भाव था.
याद आती है उनसे जुड़ी एक अन्य बात कि विरोध को भी स्वीकार करते थे. ऐसा ही एक मामला है...
एक बार बलिया की सभा कवर करने मैं आज अखबार की तरफ से गया। वहां उनकी सभा का बहिष्कार कर दिया गया। एसपीजी के कारण फोटो न खींचने का आदेश था। गौरी भइया और अन्य नेता समझाने पहुंचे बात नहीं बनी। अंत में तय हुआ बहिष्कार की खबर पहले पेज पर सभा अंदर। चंद्रशेखर जी उस पर बहुत नाराज़ हुए स्थानीय नेताओं पर। लेकिन किसी अखबार के दफ्तर में शिकायत नहीं की। आजकल तो नेता सीधे रिपोर्टर की नौकरी लेने का जुगाड बनाते हैं।
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