बात सन 1976 की है। उम्र पांच साल से ऊपर हो गयी थी पिता जी राजकीय इंटर कालेज में अध्यापक थे। रौता चौराहा के पास पंडित सीताराम मिश्रा के किराए के मकान में हम लोग किराएदार थे। छोटे भाई रमेश तीन साल के तो बहन गुड़िया एक साल की रही होगी। पिता जी बगल के एक प्राइमरी पाठशाला में नाम लिखा दिए थे। मैं एक झोले एक लकड़ी की पटरी,जिसको तख्ती कहते हैं उसके साथ एक दूधिया की बट्टी लेकर सबेरे स्कूल जाने लगा था। माता कुसुमलता मिश्रा या पिताजी कृपाशंकर मिश्रा छोड़ने जाते थे। दोपहर में अगल-बगल के बच्चों संग आता या मां स्कूल के बगल में मौजूद मां दुर्गामंदिर में छोटी बहन को गोद लिए,भाई को बरामदे की फर्श पर बैठाकर इंतजार किया करता था। स्कूल से आने के बाद भाई-बहन के साथ खेलकूद के साथ बगल में राजेश चित्रगुप्त का भी परिवार रहता था। आज के पंडित सरोज मिश्रा को उस समय हम लोग पिंटू भईया तो उनके बड़े भाई टिंकू भइया कहते थे। खेलकूद के साथ बचपन की मस्ती के दिन कट रहे थे लेकिन एक बात अक्सर चुभती थी, अम्मा-पापा नसबंदी को लेकर बहुत उधेड़बुन में थे। नसबंदी के दौरान कई लोगों की मौत हो चुकी थी जिसके कारण अम्मा-पापा को अक्सर कौन नसबंदी करवाएं इसको लेकर घंटों चर्चा करते हुए सुनता था। उम्र भले ही छोटी थी लेकिन दिमाग में अम्मा-पापा की चिंताभरी बातें अक्सर सोचने को मजबूर करती थी आखिर यह क्या बला है। मां खुद नसबंदी करवाना चाहती थी लेकिन पापा अपना। मां का तर्क था कि अगर आपको कुछ हो गया तो बच्चों को कौन संभालेगा,पिता जी मां के तर्क के आगे निढाल हो रहे थे। आखिर वह दिन आ गया जिस दिन मां की नसबंदी होनी थी। नसबंदी किस तरह किया जाता है,क्लोरोफार्म सुंघाकर बेहोश करने के बाद सर्जरी होती है,जैसी ढेरों बातों पर अम्मा-पापा को अक्सर सुनता रहता था। एक दिन पापा से पूछ लिया कि नसबंदी क्यों सबकी करवाई जा रही है? बोले सरकार ने नियम लाया जिन सरकारी कर्मचारियों के दो से ज्यादा बच्चे हैं उनको नसबंदी करवानी होगी। हम दो भाई के इकलौती बहन के सिर पर मां-बाप को जो साया है उसके ऊपर टूटे नसबंदी के पहाड़ को लेकर चर्चा रोज होती रहती थी। बगल में रहने वाले सरोज भइया मुझसे बड़े थे कई बार स्कूल की तख्ती को बुशर्ट का बटन खोलकर एक कोने से साफ़ करने पर प्यार से डांट चुके थे। एक दिन उनसे पूछा नसबंदी के बारे में तो बोले देश में आपातकाल लगा है। आपातकाल के दौरान सरकारी कर्मचारियों को पकड़-पकड़कर नसबंदी करवाई जा रही है। अब हमको और डर लगने लगा कि अगर अम्मा-पापा को पकड़कर नसबंदी कराने पुलिस ले गई तो हम सब भाई-बहन क्या करेंगे? बचपन के मन में उठने से ऐसे ढेरों सवाल के बीच आखिर वह दिन आ गया जब जिला अस्पताल में मां की नसबंदी कराने की तारीख के बारे में पिताजी ने घर पर सूचना दी। मां-पिता जी के साथ हम भाई-बहन भी जिला अस्पताल गए। माता जी ऑपरेशन थियेटर में जाने से पहले एक साल की छोटी बहन को गोद देते हुए कहा कि तुम सबसे बड़े हो छोटे भाई-बहन की तुम्हारी जिम्मेदारी है। भगवान की तुम सब प्रार्थना करों। जय बजरंग बली, जय दुर्गा माता जय श्रीराम सहित कई भगवान की हम लोग जाप करने में जुट गए और ……क्रमश:
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