आदमी का दिमाग एक अबूझ पहेली ही है। कभी कभी वह इतना पूर्वाग्रही अथवा कहें दुराग्रही हो जाता है कि प्रत्यक्ष को नकार कर वही देखने की जिद पर अड़ जाता है जो उसमें पहले से जमा हुआ है । यह वाकया पिछली सदी के आठवें दशक की शुरुआत का है। मैं तब अकेले कानपुर से ही छपने वाले दैनिक जागरण के संपादकीय विभाग में बतौर प्रशिक्षणार्थी सब एडिटर नया नया ही दाखिल हुआ था। उस दिन मेरी ड्यूटी पहली शिफ्ट में , जिसमें डाक एडीशन छपता था , शिफ्ट इंचार्ज विद्याधर द्विवेदी जी के साथ थी। हमारी शिफ्ट का काम खत्म हो चुका था और अगली शिफ्ट के इंचार्ज गया राम उपाध्याय जी मोर्चा संभालने आ चुके थे। उस शिफ्ट के और लोग भी आते जा रहे थे। हम निकलने की तैयारी कर ही रहे थे तभी नीचे प्रेस से डाक एडीशन छ्प कर आ गया। उपाध्याय जी ने अखबार का पहला पन्ना देखा और हम लोगों के सामने फेंककर बोले, " अरे! यह क्या छपा है ? "
हम लोगों ने भी अखबार देखा। यहीं दिमाग अपना खेल खेल गया। हमने आश्चर्य से उपाध्याय जी को देखकर कहा," ठीक तो है ।"
वह लगभग चीखकर बोले," बैनर पढ़ो बैनर!"
अब आंखें गड़ाकर बैनर पढ़ा तो पैरों तले की जमीन खिसक गयी।
बैनर हेड लाइन होनी चाहिए थी: ' पांचवें महानिर्वाचन की प्रक्रिया पूर्ण ' मगर छपी थी: ' पांचवें महासचिव की प्रक्रिया पूर्ण ' । दिमाग का खेल देखिए कि शिफ्ट खत्म होने की खुशी में हमें पहली नजर में ' महासचिव ' ' महानिर्वाचन' ही दिखाई पड़ रहा था।
द्विवेदी जी की तो हालत खराब! उपाध्याय जी से बोले मोहन बाबू ( नरेन्द्र मोहन जी को सब लोग मोहन बाबू ही कहते थे ) को बता दीजिए। वह बोले ," मैं क्यों बताऊं ? आप बताइए। "
इधर उन लोगों में यह चख चख चल रही थी और उधर नीचे मशीन अखबार छापकर उगले जा रही थी। ऐसे में मुझमें न जाने कहां से हिम्मत और प्रत्युतपन्न मति जागी कि मैंने इंटरकाम पर मोहन बाबू को डायल कर बता दिया कि' सर ! बैनर गलत छ्प रहा है। '
उन्होंने कहा तुरत मशीन रुकवाओ। मार्केट में गलत अखबार जायेगा क्या!
मशीन रुकवाई गयी। आनन फानन बैनर हेड लाइन दुरुस्त की गयी और अखबार फिर से छापा गया।
इस कांड पर आगे क्या कार्रवाई हुई, यह तो अब याद नहीं , लेकिन मेरी पहल कारगर रही। कैसे, यह फिर कभी। ( कानपुर के वरिष्ठ पत्रकार सुशील शुक्ला रोमिंग जर्नलिस्ट संग सांझा किए यादें)
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/