प्रभु राम के चरण में ही जिंदगी बीती तो अंतिम सांस भी अयोध्या में ही लेंगे कहने वाले संस्कृत के प्रकांड विद्वान पंडित उमाशंकर मिश्र की प्रभु ने सुन ली
अप्रैल 01, 2023
0
अयोध्या का नाम जेहन में आते ही हनुमानगढ़ी से लेकर प्रभु श्रीराम जन्मभूमि के स्मरण की झंकार दिल-दिमाग में किसी के बजने लगती है। इसी अयोध्या में आपके इस रोमिंग जर्नलिस्ट के सगे चाचा रहते थे। संस्कृत के प्रकांड विद्वान पंडित उमाशंकर मिश्र। शरीर से लाचार लेकिन अध्ययन के बल पर दिल-दिमाग से वह किसी योद्धा से कम नहीं थे। भाई बहन से लेकर गांव में सब लोग अयोध्या वाले चाचा कहते थे। अम्मा-पापा की गोद से बचपन में अपने पैरों पर चलना सीखने के बाद जिस रिश्ते से वाकिफ हुआ वह अयोध्या वाले चाचा थे, जो दिव्यांग होने के कारण चल नहीं सकते थे लेकिन पूरे परिवार को विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष का पाठ पढ़ाया उसकी बदौलत सब कोई जिंदगी की रेस में शामिल है। यूपी के बस्ती जिले के छोटे से गांव बेलहर में गर्मियों की छुटटी में जाने पर अक्सर अयोध्या वाले चाचा हम लोगों को पीठ पर लादकर भी बारी-बारी से घुमाते थे। समय का चक्र घूमने के साथ अयोध्या वाले चाचा के दिव्यांग होने का दर्द दिल को कचोटता तो अम्मा-पापा से पूछता। दादी-बाबा को देखने का सौभाग्य हम भाई-बहन को नहीं मिला लेकिन चाचा के दिव्याग होने के बाद संस्कृत की विद्धता उनके अंदर किस कदर कूट कूट कर भरी है,इसका अहसास कई बार शास्तार्थ में देखने को मिला। गांव में संस्कृत पाठशाला खुद पीठ पर पोथियों की गठरी लादकर जाने के बाद पढ़कर अयोध्या के दिव्यकला-रूपकला संस्कृत महाविद्यालय में आचार्य के पद पर बटुकों को संस्कृत की शिक्षा देते हुए वह रिटायर हुए। रिटायर होने के बाद पापा अयोध्या से बस्ती आकर घर रहने की कई बार कहे कई बार लेकर आए लेकिन वह फिर जिद करके अयोध्या चले जाते थे। कहते प्रभुराम की नगरी में जब जिंदगी बीती है तो अंतिम सांस में उनकी चरणों में ही लेंगे। सोमवार को सबेरे वह इहलोक को विदा करके चले गए। बच्चों को पढ़ाकर पैरों खड़े करने के प्रयास व संघर्ष के लिए देशभर में धक्के खाने की कड़ी में इस समय दिल्ली में हूं। सरयू तट पर जब उनकी चिता जल रही थी तो आफिस में लैपटाप के सामने बैठकर शब्दों से श्रद्धांजलि देने के अलावा कोई चारा नहीं है। घर-परिवार से दूर की नौकरियों में अपनों के खुशी या गम के समय न पहुंच पाने का कष्ट शब्दों में बया नहीं कर सकता। अम्मा-पापा को काशी में खोने के बाद चाचा को भी खो दिया। अम्मा-पापा के न रहने पर चाचा का सिर पर हाथ था। कुछ समय पहले तबियत खराब होने की सूचना पर अयोध्या पहुंचा तो पैर छूकर प्रणाम किया तो आर्शीवाद देने के बाद कहा तू तो गुल्लू बहुत दूर चल गइला। कबौ जम्मू-कश्मीर तो कबौ दिल्ली में नौकरी करने की जगह घर पर खेती-बाड़ी इतना बाए कि होके अधिया दे दो तबौ नौकरी से ज्यादा कमाई होई। चाचा की बात सुनकर खामोशी से सिर हिलाकर मौन मंथन करता रहा। आज चाचा नहीं है लेकिन उनकी हर बात हर डांट याद आ रही है, घर परिवार से दूर की नौकरी कितना अपनों से काट देती है, इस कष्ट को बयां नहीं किया जा सकता है।
Tags
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/