देश में उस वक्त इमर्जेंसी का दौर था । हेमवती नंदन बहुगुणा यूपी के सीएम हुआ करते थे। वह आईआईटी कानपुर के दौरे पर आये थे । आईआईटी बड़ा ठसकेदार संस्थान हुआ करता था । उनका कम्प्यूटर सेंटर तो गर्भ गृह जैसा पवित्र माना जाता था । खैर हम लोग बहुगुणा जी की विजिट कवर करने गये थे । वह बहुत तेज चलते थे । हम लोग उनके साथ भागते रहे । जब कम्प्यूटर सेंटर पहुंचे तो आई आई टी के सुरक्षा अधिकारी ने हम लोगों का रास्ता छेंक लिया । हम लोगों ने लाख कहा कि प्रेस वाले हैं भाई जाने दो मगर वह टस से मस न हुआ ।भाई लोगों ने कहा कि यह तो बड़ी तौहीन है । क्या करना चाहिए? इत्तेफाक से मैं उस वक्त कानपुर वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन का महामंत्री भी था। हम लोग बहुगुणा जी को छोड़कर आई आई टी परिसर मे ही सड़क के किनारे एक पेड़ के नीचे खड़े होकर मीटिंग जैसी करने लगे । तय हुआ कि बहुगुणा जी की विजिट का बायकाट किया जाये । बातचीत चल ही रही थी कि सीएम का काफिला (अगर उसे काफिला कहा जा सके तो ) वहां से गुजरा । सीएम की एम्बेसडर कार कुछ आगे जाकर अचानक रुकी और बैक होने लगी । गाड़ी हम लोगों के पास आकर रुकी । बहुगुणा जी उतर कर पास आये । बोले अरे यहां क्यों खड़े हो? हम लोगों ने वाकया बयान किया और कहा कि हम आपकी विजिट का बायकाट कर रहे हैं । वह हंसकर बोले विजिट का बायकाट कर रहे हो न मेरा तो नही । फिर वहीं पेड़ के नीचे खड़े खड़े दस पंद्रह मिनट बतियाते रहे । हम सभी ने उस बातचीत पर खबर बनाकर लगायी और आई आई टी के बायकाट की खबर भी फाइल की । तब से अब तक गंगा मे बहुत पानी बह चुका है और वे दिन सिर्फ याद ही किये जा सकते हैं । आज के नेता तो अकड़फूं का शरीरीकरण हैं । (कानपुर के वरिष्ठ पत्रकार सुशील शुक्ला ने रोमिंग जर्नलिस्ट संग यह यादे शेयर की है)
तब से अब तक गंगा मे बहुत पानी बह चुका है और वे दिन सिर्फ याद ही किये जा सकते हैं । आज के नेता तो अकड़फूं का शरीरीकरण हैं । (कानपुर के वरिष्ठ पत्रकार सुशील शुक्ला ने रोमिंग जर्नलिस्ट संग यह यादे शेयर की है)
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