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कश्मीर फाइल्स फिल्म सिर्फ परदे पर कमाई में ही हिट है बल्कि लोगों के दिलों पर मेमोरी क्लिक की घंटी भी बजा रही है। कश्मीरी पंडितों के परिवारों में नब्बे के दशक के पुराने दिन व जख्म हरे हो जा रहे हैं। कश्मीर छोड़कर उस समय निकले एक पीड़ित परिवार की बेटी आज मां के साथ ग्रेटर नोएडा में है। सेक्टर ईकोवन में रहने वाली रंजना सूरी अपनी मां मोहिनी बिंद्रो संग पुराने दिनों की अक्सर मां के साथ याद करती रहती हैं। जब भी चर्चा करती है तो पुराने जख्म याद आ जाते हैं। ऐसे पीड़ित परिवारों के बीच पुराने दिनों के यादों की तस्वीर के नाम पर अखबार की कटिंग,पुराने कागजात,बिल ही मौजूद है। मां संग बातों में रंजना की तो श्रीनगर का नाटीपुरा याद आ जाता है,जहां उनके बचपन के मासूमियत से भरे दस साल बीतें है। मां-बेटी पुराने दिनों को याद करके न्याय की राह देखने लगती हैं।
कश्मीर की हसीन वादियों में खूबसूरती संग दहशत के बीच गुजरे लम्हे पर ऐसी चर्चा कश्मीरी पंडितों के घर-घर में होने लगी है। रंजना बताती है कश्मीरी पंडितों का व्हाटसअप ग्रुप भी है, इसमें पुराने दर्द को सच-सच सामने लाने के लिए फिल्म की सराहना से लेकर भविष्य को लेकर बातें भी होती रहती है। रंजना बताती है उस समय तीन बहनों संग मां-पापा किस तरह हम लोगों को लेकर वहां से निकले उन दिनों को सोचकर दिल भारी हो जाता है। कश्मीर फाइल्स देखने के बाद मां से जब बात करती हैं तो नब्बे के दशक में नाटीपुरा ने जम्मू के जानीनगर तक बातें सामने आती है। उस समय किस तरह दहशतगर्द हावी थी, वह सुनकर दिल-दिमाग सन्न सा हो जाता है। नाटीपुरा में बहनों के साथ खेलकूद से लेकर वहां से रात को मां-बाप संग निकलने के बाद जम्मू आए, यह दिन आज भी याद है। श्रीनगर के आजादनगर बस्ती में भारत-पाक मैच होने पर हार-जीत किसी की हो घरों के खिड़कियों के शीशे पंडितों के ही फूटते थे। यह यादकरआज भी मन खिन्न हो जाता है।
कश्मीर की खबर पहले पढ़ती है मां
नाटीपुरा में घर-मकान छोड़कर निकलने के बाद जिंदगी में बेटियों को किस तरह पढ़ाया-लिखाया यह बताते हुए मोहिनी की आंखें भी छलक पड़ती है। कश्मीरी पंडितों के साथ किस तरह जुल्म किया गया, इसको दुनिया के सामने लाने का काम इस फिल्म ने किया है। कश्मीर फाइल्स फिल्म के बाद इससे जुड़े पुराने केस कोर्ट में खुलने की खबर अखबार में पढ़कर न्याय की उम्मीद भी जगती है। भारत-पाक क्रिकेट मैच के दौरान घर की खिड़कियां दिनभर बंद करके बेटियों को रहने की हिदायत देने वाली बात भी रंजना को मां बता चुकी हैं।
नाटीपुरा में बीतें दिन नहीं भूलते
रंजना हो या उनकी मां मोहिनी या बाकी बहनें किसी को भी श्रीनगर के नाटीपुरा में बीते दिन नहीं भूलते हैं। दहशतगर्द जिस तरह हावी थे, उसके बाद हिंदुओं को भगाने की जिस तरह घटनाएं हुई,उसमें बेटियों को सुरक्षित लेकर निकलना,बड़ी बात थी। सबकुछ छोड़कर पति के साथ बेटियों को लेकर जम्मू पहुंचने के बाद धर्मशाला से लेकर किस तरह दिन बीतें हैं उन यादों को इस फिल्म ने ताजा कर दिया है। बेटियों संग नाटीपुरा जाने का दिल मां-बेटियों संग रहने इनके पापा का भी करता है। वह जम्मू में कारोबार कर रहे हैं।
घर वापसी जरूरी है
जवाब देंहटाएंSo sad
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