रोमिंग जर्नलिस्ट की रिपोर्ट 34
जम्मू-कश्मीर
से बिग बॉस शशिशेखर के अचानक नोएडा में तलब किए जाने के फरमान के बाद पहुंचने पर अचानक
जम्मू में रहोगे तो खुद मरोगे और अखबार को भी मरवा दोगे का अप्रत्याशित डॉयलाग सुनने
के बाद नई जिम्मेदारी को टोकड़ा थमाकर ट्रांसफर लीव दे दिया गया। अमर उजाला वाराणसी
में ही था तभी माता जी ने गोद में ही दम तोड़ दिया था पिता जी का ही साया सर पर था।
उनसे मिले एक साल हो गए थे,ट्रांसफर लीव मिलने के बाद इसीलिए दिल्ली से सीधे बस्ती
पहुंच गया था। बिग बॉस से मिलने आते वक्त दिल्ली से जम्मू का पूजा एक्सप्रेस का रिटर्न
टिकट मानो मुंह चिढ़ा रहा था। बस्ती रेलवे स्टेशन पर वैशाली एक्सप्रेस से उतरने पक्के
के लिए ऑटो पर सवार हो गया। ऑटो चालक दो और सवारी मिलने के बाद चल पड़ा था। रेलवेस्टेशन
से दक्षिणदरवाजा से रोडवेज तक की जर्जर सड़क की दशा वहीं थी जो स्कूली दिनों में गढढों
से भरी थी। बस्ती की बदहाली को देखकर किसी ने लिखा था बस्ती को बस्ती कहें तो किसको
कहे उजाड़ लेकिन मेरे लिए यहां थी खुशियां हजार। खुशियां बस्ती की टूटी-फूटी सड़कों
से लेकर गलियों तक में बिखरी थी। रेलवे स्टेशन से ऑटो चलने के साथ जेहन के गुलदस्ते
में यादों के जो रंग-बिरंगे फूल घुमक्कड़ी के पेशे की वजह से मुरझा रहे थे फिर ताजा
होने लगे। जेहन की बगियां में खिल रहे फूल को जन्मभूमि के माटी की महक खाद का काम कर
रही थी। ऑटो रोडवेज पर एक सवारी को उतारने के बाद दो सवारी और भरकर अब पक्के की तरफ
बढ़ चला। पक्के के पग-पग पर यायावरी के साथ यारों की यारी का अपना जंक्शन कभी रहा करता
था। यहां से गुजरते वक्त आंखों पुराने यारों के बदले हुए शक्लों में तलाश रही थी लेकिन
निराशा ही हाथ लगी कि सबेरे का समय होने के नाते कोई दिखाई नहीं दिया। हनुमानगढ़ी के
सामने जैसे ही ऑटो पहुंचा स्वत: ही बजरंगबली के चरणों में बैठे-बैठे आस्था से नमन करने
को सिर झुक पड़ा। स्काउट प्रेस की गली पर ऑटो को रूकवाने के बाद किराया देने के बाद
कंधे पर बैग टाले एक फलांग की दूरी पर मौजूद घर की तरफ पैदल ही चल पड़ा। स्काऊट प्रेस
की गली के मोड़ पर इब्राहिम चाचा का मकान था, दैनिक जागरण प्रेस फोटोग्राफर रहे इब्राहिम
चाचा को आंखें खोज रही थी तो कदम घर की तरफ चले जा रहे थे। चंद मिनट में ही घर पहुंच
गया। पिताजी सबेरे उठकर गौसेवा से लेकर पूजा-पाठ की जो आदत खुद अपनाने के साथ हम लोगों
को सीख दिए,उसे करते हुए मिले। गेट खोलकर जैसे ही घर में चहारदीवारी में घुसा उनकी
आंखों में चमक आ गयी,घर का नाम गुल्लू लेते हुए कहा गुल्लू आई गईले। पिता जी का चरणस्पर्श
करने के बाद उनके कमरे में ही बैग रखकर आने के बाद हाते में ही धूप में बैठ गया। सफर
के दौरान चार्जिंग प्वांइट के अभाव में बंद पड़ चुका मोबाइल फोन चार्जिंग के लिए लगाने
के बाद कपड़े बदलने के साथ फ्रेश होने लगा। घर के बाहर बंधी गाय के पास पड़ी चारपाई
पर बैठकर पिताजी के साथ चाय पी रहा था कि चार्जिंग में लगे मोबाइल फोन की घंटी घनघना
उठी। फोन पर नंबर देखा तो जम्मू से पंडित रामनिवास पंगोत्रा का था। कश्मीर से खदेड़े
गए पंडितों की पीड़ा को शब्दों में पिरोने के लिए एक बार उनकी कालोनी में गया था। जम्मू
से दिल्ली आने पर स्टेशन पर भतीजे के साथ मिलने के साथ चाय पीने के साथ अपनी पीड़ा
का दर्द उड़ेलकर कुछ हल्का महसूस किए थे। जय हिंद कहकर पंडित जी को प्रणाम करते हुए
पूछा भतीजे को दुकान पर नौकरी मिल गयी। मायूस होकर बोले साहब आना-जाना बेकार हो गया,वह
किसी दूसरे को काम पर रख लिए हैं। उनकी आवाज में मायूसी देखकर मेरा दिल भी मायूस हो
गया। बोले साहब कश्मीरी पंडितों का कोई सुनने वाला है। कश्मीर में 19 जनवरी 1990 की
वह काली रात नहीं भूलती जब हम सबको खदेड़ दिया गया,तब से हम सब दर-दर ठोकर ही खा रहे
हैं। पंगोत्रा जी की दर्दभरी बातों पर आश्वासन का मरहम लगाते हुए कहा मातारानी पर विश्वास
करें एक दिन आएगा जब सब ठीक होगा। बोले मातारानी पर ही विश्वास है नेताओं ने तो कश्मीरी
पंडितों के आबरु को सियासी तराजू पर तौलकर दर्द देने व बांटने का काम किया है। मैने
कहा उस काली रात को भूल जाइए पंडित जी एक नया सबेरा आएगा,उम्मीद रखिए। कैसे भूल जाएं
19 जनवरी 1990 की वह रात जब पूरे कश्मीर की बिजली काट दी गयी थी। मस्जिदों के लाउडस्पीकर
एक फरमान बार-बार कानों
में गूंज रहा था "हिंदुओं,
या तो मुसलमान बन जाओ, या कश्मीर छोड़ दो, या फिर मरने के लिए तैयार रहो"; खून जमा देने वाला यह संदेश इस्लाम के रहनुमाओं द्वारा हमारे जैसे
पंडितों और सिखों को दिया जा रहा था जो कल तक इन्हीं के साथ रहते थे। इस्लामी तरानों, धमकियों और काफिरों काश्मीर से भाग जाओ की डराती आवाजें लाउडस्पीकर पर रात भर गरजती रहीं। कश्मीरी हिंदुओं की नींद गायब थी, लेकिन प्रदेश और दिल्ली की सरकारें खर्राटे मार कर सो रहीं थी। सबको सब कुछ पता था, लेकिन सनातन धर्म के गोमुख में, हिंदू के उत्पत्ति स्थल में हिंदुओं का कोई सहारा न था। आप कहते हैं भूल जाएं,
वह काली रात सांस थमने पर जेहन से भली चली जाए लेकिन आत्मा जब तक एक यौनि से दूसरी
यौनि में भटकेगी तब तक नहीं भूलगी। पंगोत्रा जी उस दर्द को सुनाते ही रुआंसे हो गए,फोन
पर महसूस करने के बाद मैने कहा कि हिम्मत रखिए जब ठीक होगा,ऊपर वाले के घर देर हैं
अंधेर नहीं। वह थोड़ा शांत होते हुए कहें साहब भतीजे को लेकर जम्मू लौट रहा हूं आप
अपने प्रेस में हीं कहीं चार-पांच हजार की नौकरी दिलवा देंगे मातारानी की बड़ी कृपा
आप पर सदैव बनी रहेगी। पंगोत्रा जी के दर्द को फोन पर महसूस करने के बाद जम्मू से तबादला
होने की बात बताने का साहस नहीं हुआ,आश्वासन दिया कि जम्मू आता हूं फिर इस बारे में
बात करता हूं। आप हिम्मत और हौसला मत छोड़िए अच्छे दिन आएंगे। जय माता दी कहकर फोन
रख दिया। एक चुस्की के बाद चाय चरपाई पर पड़े ही ठंडी हो गई थी। पंगोत्रा जी से लंबी
बातचीत के बाद फोन रखा तो पिता जी ने पूछा किसका फोन था तो बताया कश्मीर से खदेड़े
गए एक पंडित जी का,वह बोले देखों कब इनको न्याय मिलता है। तब तक दूसरी चाय पीने के
लिए आ गयी थी,उसे पीने के साथ यार-दोस्तों से मिलने की तैयारी में जुट गया।
अत्यंत मार्मिक रिपोर्टिंग
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भाई
हटाएंजिंदगी में जुल्म की जो दास्तां सुनने को मिली वह जिंदा रहते तो नहीं भूलेगी, उस दिन का इंतजार है जब कश्मीरी पंडितों के चेहरे पर मुस्कान आए
जवाब देंहटाएंदिल दहला देने वाली रात जिन्होंने देखी झेली है कैसे भूले होंगे या नहीं......
जवाब देंहटाएंसही कह रहें भगवान ऐसा दिन देश के किसी भी हिस्से में दुबारा न देखने को मिले, कश्मीरी पंडितों को ईमानदारी से पुर्नवास का काम हो यही मंशा है
हटाएंसही कह रहें भगवान ऐसा दिन देश के किसी भी हिस्से में दुबारा न देखने को मिले, कश्मीरी पंडितों को ईमानदारी से पुर्नवास का काम हो यही मंशा है
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