अचानकजेहनमें 1990 कावहअगस्तकामहीनायादआगयाजबकेंद्रमेंवीपीसिंहसरकारनेमंडलकमीशनकीरिपोर्टलागूकरनेकाफैसलालेलियाथा। 15 अगस्तकोबस्तीमेंछात्रोंनेकालीपट्टीबांधकरमौनजुलूसनिकाला।इसकेसाथजिलेमेंआरक्षणविरोधीसंघर्षसमितिकागठनहुआ।दीनदयालत्रिपाठीइसकेअगुवाबने, कभीगांधीकलाभवनकेसामनेधरनातोकभीपक्केपरनुक्कड़सभातोकभीबूटपालिसकरकेविरोधथा।कार्यक्रमकाप्रेसनोटपहुंचानेकीजिम्मेदारीमुझेसौंपदीगयी।अखबारोंकेदफ्तरपरप्रेसनोटपहुंचानेकेसाथसबेरेखबरलगीहैकिनहींइसकोदेखनेकेलिएसाइकिलसेसबेरेहीघरसेपक्केपरनिकलदेताथा।अपनेपरममित्रपुष्करमिश्राकीकापी-किताबकीदुकानथी,बड़ेभाईसाहबबैठतेथे।किसीमेंसंक्षेपतोकिसीमेंसिंगलकालमतोकिसीमेंडीसीखबरलगतीकोदेखकरबहुतखुशीहोती।जिसदिनदिल्लीयूनिवर्सिटीकेराजीवगोस्वामीनेआरक्षणकेविरोधमेंआत्मदाहकरकेप्राणत्यागा,उसदिनअखबारोंमेंउसकीजलतीफोटोदेखकरबहुतदुखहुआ।शोकसभामेंदीनदयालबाबातोरोनेलगे, वीपीसिंहकोलेकरनारादियानराजाहैनरंकहैदेशकाकलंकहै।देशभरमेंआरक्षणकेविरोधमेंआंदोलनकेदौरानइलाहाबादयूनिवर्सिटीकेछात्रोंकोघोडोंकीटापोंकेनीचेकुचलनेकीघटनापढ़करपुलिसकीबर्बरताकीहदेंकिसकदरपारकरदेतीहै,पहलीबारदेखनेकेबादअनुभवहुआ।महीनेभरतकपुलिसकातांडवबस्तीजिलेमेंभीचलतारहा।पंडितदीनदयालत्रिपाठीकेशरीरपरपुलिसकीलाठियांथोकभावमेंपड़ीलेकिनवहनराजाहैनरंकहैदेशकाकलंकहैकानाराहरलाठीपरकोतवालीमेंलगातेरहें।जिलेमेंउससमयबसदोपक्षथे।आरक्षणविरोधीऔरआरक्षणसमर्थक।आरक्षणसमर्थकघरोंमेंबैठेथे, आरक्षणविरोधीसड़कपरथेऔरपुलिसलाठियोंकेजोरपरउन्हेंवापसघरोंमेंकैदकरनेपरआमादा।आजबरबसतीनदशकपुरानावोमंजरआंखोंकेसामनेनाचउठा।आरक्षणआंदोलनथमनेकेबादफिरपढ़ाई-लिखाईकेदौरकीतरफलौटनेकेसाथआरक्षणविरोधीआंदोलनकीआगथमनेकेसाथअयोध्याआंदोलनकाआगाजहोगया। अयोध्या आंदोलन को धार
देने के लिए जिले में एक युवाओं की टीम खड़ी हो गयी जो दीवारों पर रामलला हम आएंगे,मंदिर
वहीं बनाएंगे, बच्चा-बच्चा राम का,जन्मभूमि के काम का सहित दर्जनों नारें दीवारों पर
लिखने रात को गेरुआ घोलकर डिब्बे में भरकर ब्रश के साथ निकलती है। अयोध्या आंदोलन ने
आरक्षण आंदोलन को गर्त में ढकेल दिया। जो बच्चा कल आरक्षण विरोध या समर्थन में नारा
लगा था वह अब राममंदिर आंदोलन की अलग जगाने में जुट गया। उस समय न मोबाइल था न इंटरनेट
इतना सर्वसुलभ था। रेडियो व अखबार ही जिले में सूचना के प्रमुख माध्यम थे। प्रचार के
पारंपरिक तरीकों के साथ आडियो-वीडियो प्लेयर से आग लगाने वाले भाषण की सीडी व कैसेट
खूब बिकते थे। छह दिसंबर 1992 को कारसेवा के लिए बस्ती से बड़ी संख्या में कारसेवकों
की फौज गयी,आज भी जेहन उस आंदोलन की गूंज सुनाई देती है। आरक्षण के बाद अयोध्या आंदोलन
से जुड़े साथियों की खोज-खबर में निकला तो कुछ काम-धंधे में व्यस्त दिखे तो कुछ अब
इस दुनिया में नहीं हैं। आंदोलन की आग में तपने के साथ जिंदगी भी समय चक्र संग चलती
रही। रामलला हम आएंगे,मंदिर वहीं बनाएंगे के नारे लगाने वाले तमाम बस्ती के साथी अब
इस दुनिया में नहीं रहें लेकिन उनकी यादें जेहन में आज भी ताजा है। पोस्ट ग्रेजुएट
कीशिक्षाकेलिएबस्तीसेलखनऊआगया।पढ़ाईकीदिशाबदलगई।एलबीएस हॉस्टल में अंबरीष
वर्मा के साथ रहकर पढ़ाई के साथ रोज सबेरे बसंती आंटी के चायकीदुकानपरसुबहहीपहुंचकर अखबार पढ़ने पहुंच
जाते थे। जबतकहम लोग अखबर पढ़नहींलेतेथे, करारहीनहींआताथा।बस्ती में पुराने साथियों
के खोज-खबर के लिए घंटों भटकने के बाद निराशा ही हाथ लगी। आंदोलन की आग में तपकर जो
निकले थे,वह साथी कहां गुम हो गए,उनको आज भी दिल खोजता है।
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे https://www.roamingjournalist.com/
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