लॉक डाउन में टी लवर की चुस्की भरी लव स्टोरी
मई 23, 2020
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चाय की चुस्की के साथ अक्सर
कुछ गम भी पीता हूं, मिठास कम है जिंदगी में लेकिन जिंदादिली से जीता हूं। अज्ञात शायर
के इस शेर के साथ जम्मू-कश्मीर के दशकों पुराने मित्र दीपक सूरी ने चाय से भरे गिलास
के साथ जब इस टी लवर को #InternationalTeaDay पर चुस्की भरी बधाई दी तो जेहन
में देश के कोने-कोने में पी गई चाय की चुस्कियां खौलने लगी। जेहन में जब चाय की चुस्की
खौलने लगे तो लिखने की लत हो तो जिस तरह प्यासा कुंए के पास जाता है,वैसे ही आफिस बैग
से लैपटाप निकालने पहुंच गया। घड़ी की सुई पर नजर डाली तो रात के बारह बजने में दस
मिनट कम थे। चाय की चुस्की संग चल रही जिंदगी की यात्रा में चाय की दुकान,चाय संग किस्से,
दोस्तों संग चाय की दुकान पर रोजाना की अड़ी से लेकर मां के सामने दूध न पीने की जिद
करके चाय की हठ लगाने का जमाना याद आ गया। बस्ती शहर में किराए के मकान से अपने
शिवनगर तुरकहिया में अपने मकान में आने के बाद कक्षा तीन में पढ़ने के लिए गर्वमेंट
इंटर कालेज से सटे प्राइमरी स्कूल में पढ़ने जाने से पहले मां एक गिलाास दूध देती लेकिन
जिद चाय की रहती है। दूध अच्छा न लगने सहित ढेरों नौटंकियां जब जेहन में खौल रही तो
मां को इस दुनिया से चले जाने के कारण यादों की इस चुस्की में गम का अदरक भी मिला महसूस
हो रहा है। समय का पहिया आगे बढ़ने के साथ घर में बगल में नार्मल स्कूल में कक्षा पांच
से आ गया तो चाय बिना हठ के सबेरे मिलने लगी इस शर्त के साथ दिन में एक गिलास दूध पीना
ही होगा। घर पर देशी गाय पिता जी ने पाला था,गाय
को सानी-पानी करने का ककहरा भी पढ़ने लगा तो दूध-दही जुबान पर चढ़ गया लेकिन चाय की
बात ही निराली थी। कक्षा आठ से गर्वमेंट इंटर कालेज में पहुंच गया पढ़ाई के लिए,पिताजी
भी उसी स्कूल में शिक्षक थे। साथ में पढ़ने वाले मित्र अखिलेश शुक्ला के पिता जी स्टाफ
कैंटीन के इंचार्ज थे,अखिलेश के साथ टिफिन बाक्स लेकर कैंटीन में जाने के दौरान कटिंग
चाय की हम दोनों चुस्की लगाने के बाद तृप्ति के भाव को महसूस करते थे आ जाते थे। हाईस्कूल
पास होने के बाद चाय के साथ अखबार पढ़ने का चस्का लग गया। घर पर हर संडे को पापा नवभारत
टाइम्स मंगवाते थे लेकिन रोज पढ़ने के चस्का लगने के कारण सबेरे होने पर घर से चाय-नाश्ता
करके फिर गांधीनगर में पुलिस क्लब के सामने कल्लू चाय की दुकान पर पहुंच जाते थे। एक
चाय की चुस्की संग दुनियाभर की खबरों को पढ़ने की आदत अब नशे की सीढ़ियों पर चढ़ने
लगी थी। चाय की सुरुर भी जिंदगी में छाने लगा था। इंटर पास करने के बाद किसान डिग्री
कालेज बस्ती में बीएससी के लिए दाखिला लेने के बाद चाय की चुस्की के लिए शहर के चाह
के कई हाईवे बन गए। पक्के से लेकर पुरानीबस्ती तक चाय जंक्शन पर चाय की चुस्की संग
यार-दोस्तो से लेकर दुनियाभर की बातें होने लगी। स्कंद,अविनाश व मैं हम तीनों की तिकड़ी
करतार टाकीज के सामने रोज चाय की चुस्की लड़ाने की आदत हो गयी,त्रिपाठी चित्र मंदिर
की गलियों से करतार के पास अड़ी पर पहुंचकर चाय-सिगरेट की लत के पीछे एक अनकही प्रेमकथा
भी जन्म ले रही थी। शादी हुई नहीं थी,मैं आवारा,मेरी आदतें आवारगी की दोस्त भी उस दौर
में वैसे ही निकले। सब दोस्त की अनटोल्ड लवस्टोरी को चाय की चुस्की संग नई ऊर्जा मिलती
थी। चाय की चुस्की की अनटोल्ड स्टारी पर विराम तब लग गया जब लखनऊ यूनिवर्सिटी में जर्नलिज्म
के पीजी कोर्स में दाखिला हो गया। लालबहादुर शास्त्री छात्रावास में अम्बरीष वर्मा
ने अपने कमरे की छत अपना मानने का अधिकार दिया। वहां जाने के बाद भगवान भास्कर के उदय
होने के साथ बसंती आंटी की चाय से सभी हास्टल के साथ मेरा भी इश्क हो गया। जेब में
पैसे होते तो बन-मक्खन भी हो जाता। दिन में पढ़ाई फिर मटरगश्ती के बाद शाम को आईटी
चौराहा पहुंचकर लल्ला की चाय रुटीन में शामिल हो गयी। नवाबों की नगरी में जेब में पिताजी
से मिलने वाले खर्च के पैसे जेब में जबतक रहते नवाबों की तरह रहते टी लवर की चुस्की
भरी लव स्टोरी हजरतगंज,अमीनाबाद,चारबाग से लेकर शहर के कई हिस्सों में लगती रही। चाय
की चुस्की संग दोस्तों की लव स्टोरी सुनने और दिलचस्पी लेने के साथ आखिर में किसी शायर
एक शेर सुनने को मिलता- चाय में डूबा बिस्कुट व प्यार में डूबा दोस्त किसी काम का नहीं।
यह सुनकर फिर हम सब अपने-अपने काम पर चल देते। पढ़ाई के बाद हिंदुस्तान लखनऊ लाचिंग
के दौरान संपादक सुनील दुबे सर ने सुपर स्ट्रिंगर बनाकर जिंदगी को पत्रकारिता की पटरी
पर लाने का मौका दिया। बीट मिली विधानभवन के सामने होने वाले धरना-प्रदर्शन व लेबर
फ्रंट। कानपुर के फोटोग्राफर साथी व बड़े भाई राजू तिवारी संग दारुलशफा से लेकर राजनीतिक
गलियारों में भी चाय की चुस्की संग जिंदगी चलती रही। लखनऊ में चाय की चुस्की जंग जितने
यार बने,सब आज की तारीख में भी अनमोल है। सुपर स्ट्रिंगर से लखनऊ के बाद गोरखपुर पहुंचा
तो गोलघर में चाय की दुकान अड़ी बनी गोंडा पहुंचा तो टामसन इंटर कालेज के सामने झोपड़ी
में चाय की दुकान में गरमागरम चाय का मजा लिया। गोंडा के बाद नब्बे के दशक के आखिरी
साल में वाराणसी आए तो पहली चाय कैंट स्टेशन के सामने गुड़ियां की दुकान पर पिए,एक
सप्ताह तक बैरीवाला धर्मशाला में ठहरे तो गोदौलिया पर चाय की अड़ी बनी। काशी में चाय
की चुस्की संग जायके की वैरायटी का अलग अनुभव मिला। काशी के बाद जम्मू-कश्मीर जाने
के बाद शास्त्रीनगर से लेकर रघुनाथ मार्केट में गरमागरम चाय का आनंद ही अनोखा रहा।
जम्मू-कश्मीर के बाद गाजियाबाद में तबादला हुआ तो दिल्ली के लक्ष्मीनगर में डेरा लिया।
चाय की मिठास व गरमाहट जो दूसरे शहरों में मिला,वह वहां मिला नहीं लेकिन आदत थी इसलिए
उसको पीता रहा। गाजियाबाद के बाद लखनऊ में अमर उजाला लाचिंग के लिए सिटी की कमान मिलने
के बाद चाय की पुराने जायके को खोजने के दौरान चाय के नए ठिकाने बने। बलिया के रहने
वाले मित्र मनोज दुबे तो आयकरभवन के सामने कुल्हड़ नाम से चाय-काफी की दुकान ही खोल
लिए। लखनऊ के बाद कानपुर फिर वहां से बुंदेलखंड भ्रमण के दौरान औरेया से लेकर चित्रकूट
के घाट तक चाय की चुस्की लेने का सौभाग्य मिला। कानपुर के बाद किस्मत में दार्जिलिंग
की हसीन वादियां लिखी थीं। दैनिकजागरण संग सिलीगुड़ी से लेकर सिक्किम तक चाय को जो
जायका व ताजगी महसूस हुआ वह जिंदगी के खूबसूरत लम्हों में शुमार है। चाय के बगान के
मालिक से दोस्ती के बाद चाय की ताजा पत्तियों से लेकर कई प्रकार की पत्तियों को तोड़कर
चाय का स्वाद की बात ही निराली है। चाय के जायके संग जर्नलिज्म जर्नी में जिंदगी के
हसीन लम्हों संग हसीन शहर में कमी तो एक थी कोई वो नहीं थी लेकिन जो दोस्त थे उनकी
यारी कितनी हसीन थी,उसको किसी पैमाने से नापा नहीं जा सकता। सिलीगुड़ी के बाद नवभारत
टाइम्स में नौकरी संग तीर्थराज प्रयागराज में चाय की हसीन यादें हसीन दोस्तों संग कटी।
सबेरे पहली की चाय सिस्टर के घर को डेरा बनाया था,वहां होता लेकिन दिन में सिविलाइंस
से लेकर संगमतीरे तक चाय की चुस्की के चाह की आह आज भी दिल में जवान है। आज चाय की
चुस्की संग लव स्टोरी का हाल किसी शायर के शब्दों में कहूं तो यह है - आज भी
बैठ जाता हूं वहां, चाय बन रही होती है जहां--
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so testy
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