काशी
से कश्मीर जाने से पहले जब बस्ती आया था घर पर अम्मा-पापा दोनों थे। इस बार जब आया हूं पापा घर पर है, मां हम सबको छोड़कर इस दुनिया से जा चुकी है। जिसके गोद में पला-बढ़ा उस मां ने अमरउजाजा वाराणसी में ही नौकरी के दौरान गोद में किस तरह दम तोड़ दिया, वह मंजर जेहन में घूम रहा था। मां की तबियत बस्ती में खराब हुई थी बीएचयू में इलाज कराने के लिए मां बनारस आयी। बुरी तरह पीलिया के चपेट में आयी मां का इलाज नौकरी के बीच चलता रहा लेकिन होना कुछ और लिखा था। अचानक एक दिन मां की तबियत बिगड़ी इलाहाबाद से छोटी बहन गुड़िया भी आ गयी थी। भाई-बहन ऑटों में मां को लेकर डॉक्टर को दिखाने के लिए निकले। पीछे की सीट पर बहन के साथ बैठा था, मां गोद में थी। भाई-बहन के गोद में ही मां
ने दम तोड़ दिया। दिल रो रहा था एक पत्रकार की मजबूरी पर जो दुनिया का दुख-दर्द लिखने के साथ जनता-जर्नादन से लेकर सरकार तक पहुंचाता है लेकिन वह अपनी मजबूरी किससे रोएं। भाई-बहन के गोद में लेटी मां ने दम तोड़ दिया,इसका अहसास तब हुआ जब नगरनिगम
के पास एक नर्सिंग होम में भर्ती करने से पहले डॉक्टर ने आकर चेक करके कहा अब वह नहीं रही। ऑटो घर की तरफ मोड़ने के लिए कहां,बहन पूछी बाबू अम्मा का भइल, मैने आंसू को आंखों में ही रोकते हुए कहा कि गुड़ियां हम लोग के छोड़कर चली गई। निरालानगर में डमरूबाबा के किराए के मकान के बरामदे में मां का पार्थिव शरीर रखने के बाद पापा को बस्ती खबर देने के साथ छोटे भाई को बताया अम्मा अब नहीं। बस्ती से सब लोग पांच-छह घंटे बाद काशी पहुंच गए। मणिकर्णिका घाट पर मां का अंतिम संस्कार हुआ। अमर उजाला के स्थानीय संपादक से लेकर तमाम साथी घाट पर पहुंचे। काशी में मां को खोने के गम कश्मीर से लौटने के बाद पहली बार बस्ती जाने के बाद पता नहीं क्यों हरा हो गया। पापा अकेले घर पर गुमसुम थे,कुछ वक्त पापा के साथ बिताने के बाद दोस्तों से मिलने के लिए निकलने के बाद किराए के जिन मकानों में रहा वहां अपनेपन की तलाश करता हुआ,कंपनीबाग चौराहे पहुंच गया था। कंपनीबाग के जिस चाय की दुकान पर केडीसी में बीएससी की पढ़ाई के दौरान क्लास से छुटने के बाद घंटों गप्प लड़ाया करता था,आज दोस्तों से चाय पीने के बाद उसकी यादें ताजा हुई लेकिन वह स्वाद नहीं मिला। चाय की चुस्की के दौरान कश्मीर से पंगोत्रा जी का फोन आने के बाद वहां के पंडितों की पीड़ा सुनकर मन्न और खिन्न हो गया। दोस्तों से विदा लेकर पुराने मित्र व पत्रकारिता का ककहरा का पहला पाठ पढ़ाने वाले प्रदीप पाण्डेय के अखबार भारतीय बस्ती के दफ्तर पर पहुंच गया। दुआ-सलाम के बाद काशी से कश्मीर जर्नलिज्म जर्नी की बात चल पड़ी। कश्मीर की आबोहवा से लेकर पंडितों की पीड़ा के बीच मेरे दिल में मां के ना रहने से जो पीड़ा घर आने पर इस बार हो रही थी नहीं कह सका। दिल में दर्द के साथ बहुत कुछ कचोट रहा था, इस बार घर जाने पर। प्रदीप से बातचीत के साथ चाय की चुस्की संग कई मित्रों से मुलाकात के साथ कश्मीर की खबरों को लेकर चर्चा हो रही थी लेकिन दिल में उसमें शामिल होने का नहीं था, औपचारिकता में सिर हिलाकर वहां से घर चलने फिर मिलने का वादा करके निकल दिया। काशी में मां को खोने के बाद कश्मीर जाने के बाद पहली बार बस्ती आने पर जो दिल में जो अधूरापन महसूस हो रहा था,उसे पूरा करने के लिए प्रदीप से मिलने के बाद घर आने पर पूजा वाले कमरे में गया। पूजा वाले कमरे में एक अलमारी में देवी-देवताओं के चित्रों से भरी अलमारी के सामने बैठकर अम्मा रोजाना सबेरे-शाम हम भाई-बहनों के लिए घंटो पूजा किया करती थी। उस अलमारी पर सभी आराध्य के सामने शीश झुकाकर प्रणाम करने के मां का आर्शीवाद हम सब पर सदैव बना रहने की कामना करने के साथ कुछ देर खड़ा रहा। इंटर पास माता जी के हाथों की लिखावट को देखने के साथ धार्मिक ग्रंथों की पोटली को उठाकर उसको खंगालने लगा। दुर्गा चालीसा से लेकर श्री रामचरित मानस में माता जी की लिखावट को देखकर उसको माथे पर लगाकर अजब सुकून महसूस हुआ। दोपहर को भोजन करने के साथ रौता चौराहा स्थित दुर्गा मंदिर जाकर कुछ वक्त बिताने का दिल किया। नवरात्र के दौरान माताजी रोजाना मंदिर में आकर पूजन करती थी, हम लोग छोटे थे तो कभी मुझे कभी छोटे भाई तो कभी बहन को लेकर आती थी। मां दुर्गा की कृपा मां के माध्यम से पूरे परिवार पर सदैव बरसती रही। जम्मू-कश्मीर जाने के दौरान माता रानी के चरणों में दीपावली के दिन जब दीप जलाया तो जेहन में मां की तस्वीर ही उभर आयी थी। रौताचौराहा दुर्गा मंदिर पहुंचकर माता रानी के चरणों में शीश नवाने के बाद कुछ देर बैठा रहा। दुर्गा मंदिर के बरामदे में बैठकर मां को याद करते हुए जो सुकून मिला वह दिल,दिमाग व देह में जो भारीपन लग रहा था उसको खत्म कर दिया।
क्रमश:
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