अमर
उजाला के समूह संपादक शशिशेखर के तलब किए जाने पर जम्मू-कश्मीर से दिल्ली आने के बाद अचानक तबादला आदेश के साथ एक सप्ताह का अवकाश मिलने के बाद जन्मभूमि बस्ती जिले में घंटों की यात्रा करने के बाद सबेरे पहुंच गया। सन 2007 में जाड़े की अलसायी सुबह के बीच घर से चाय-नाश्ता करने के बाद उन गलियों में निकल गया था जहां किराए के मकान में बचपन गुजरा था। करतार टाकीज के पास जिस चाय की दुकान पर दोस्तों संग रोजाना बैठकी लगती थी उस दुकान पर पहली चाय पीने के बाद दूसरी चाय का आर्डर दे चुका था। चाय आने के बाद पहली चुस्की संग कभी गुलजार रहने वाला करतार टाकीज जो अब बंद हो चुका था, खंडहर में तब्हील होती उसकी इमारत पर नजर गड़ाने के साथ याद आ गया वह लम्हा जब इसी सिनेमाहाल में अम्मा-पापा के साथ हम भाई-बहन पहली पिक्चर जय संतोषी मां देखने नंगे पैर आए थे। जय संतोषी मां के बाद इस टॉकीज में बचपन में पशु संग्राम नामक एक पिक्चर भी पापा हम दोनों भाई के साथ बहन को भी लेकर आए थे। करतार टाकीज से जुड़ी यादों को सामने देखकर जेहन में सुनता रहा,बोलता रहा,संजोता रहा चाय की चुस्की संग। चाय की चुस्की के बीच एक बार फिर फोन की घंटी बजी देखा घर से पापा का फोन था। पापा ने शिकायती लहजे में कहा दोपहर का एक बज गया है कब खाना खाओगे, जल्दी अयोध्या वाले तुम्हारे चाचा भी आएं हैं। पापा का फोन कटने के साथ गिलास में बची चाय की आखिरी चुस्की पीने के बाद दुकानदार को पैसे देकर चल दिया घर।
किराए
के मकानों में अपनेपन की निशानी खोजने की चंद घंटे की यात्रा के बाद घर पहुंचा तो बरामदे में ही अयोध्या वाले चाचा बैठे नजर आएं। पैर छूकर प्रणाम किया तो आर्शीवाद देने के बाद पूछा तो तू तो गुल्लू बहुत दूर चल गइला। जम्मू-कश्मीर में नौकरी करने की जगह घर पर खेती-बाड़ी इतना बाए कि होके अधिया दे दो तबौ नौकरी से ज्यादा कमाई होई। चाचा की बात सुनकर खामोशी से सिर हिलाकर मौन स्वीकृत दे दिया। अयोध्या वाले चाचा अपने आप में एक इतिहास की किताब है। अयोध्या कांड हो या गांव में खेत-खलिहान की बात उनके दिमाग में यादों की जो पोटली है उसमें ज्ञान व अनुभव का खजाना ही भरा है। बचपन में ही पोलियो के शिकार होने के चलते अपने पैर पर खड़ा नहीं हो सकते हैं लेकिन किसी के सिर पर अगर जरूरत की लाठी पड़ रही हो उससे कैसे लड़ा जाए, जिंदगी का यह पाठ अपने दिव्याग चाचा व संस्कृत विद्वान आचार्य उमाशंकर मिश्र से पढ़ा। मुझे अपने बाबा पंडित यमुना प्रसाद मिश्र व दादी श्यामादेवी को देखने को सौभाग्य नहीं मिला लेकिन उनके न रहने पर दिव्यांग होने के बाद भी किस तरह चाचा पढ़े यह पापा के मुंह से कई बार सुना था लेकिन दिल किया चाचा को ही कुरेदा जाए। मौका तब मिला जब जम्मू-कश्मीर नौकरी करने को लेकर चाचा दूसरी बार शिकायत के मुद्रा में आ गए। चाचा की नसीहत को सुनने के बाद कहा चाचा जरूरतों की लाठी अगर सिर पर पड़ रही हो किस तरह जंग लड़ा जाए,आपको देखकर हमने सीखा है। आप दिव्यांग होकर किस तरह पढ़ाई करके अयोध्या के दिव्यकला रूपकला संस्कृत महाविद्यालय में संस्कृत पढ़ाने। गांव की बात छिड़ गई चाचा भी बताने लगे माई-दादा के न रहने के बाद पोलियो के कारण जब अपने पैर पर भी खड़ा नहीं हो सकता था तब दोनों हाथों को जमीन पर पैरों के साथ रखकर चलने लगा। संतकबीरनगर जिले के पैतृक गांव बेलहर कला से सटे कोटिया में संस्कृत विद्यालय था। वहां पढ़ाने वाले गुरुजी एक दिन कहे आकर संस्कृत पढ़ो, वहां जाने लगा। उत्तरमध्यमा वहां से पास करने के लिए पढ़ाई करने लगा। घर से बस्ता पीठ पर लादकर संस्कृत विद्यालय के रास्ते पर पड़ने वाले नाले को भी पार करता। कोटिया के बाद संस्कृत पाठशाला मेहदावल में नाम लिखा गया शास्त्री प्रथम श्रेणी में पास हुआ तो उसके साथ अयोध्या के रूपकला संस्कृत विद्यापीठ में पहुंच गया। संस्कृत में आचार्य की डिग्री प्रथम श्रेणी से मिलने के बाद वहीं 1970 से ही पढ़ाने लगा। सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में भी पढ़ाने के लिए बुलाया गया लेकिन बनारस दूर होने के नाते गया नहीं। बस्ती से नजदीक अयोध्या था इसीलिए यहीं रहा लेकिन तुम उतनी दूर नौकरी करने जाकर सबको कष्ट ही दे रहो हो। दोनों बच्चियां अपनी मां के साथ बनारस में किस तरह से रह रही है पिता बस्ती में हैं, मैं कभी अयोध्या तो कभी गांव में रहता हूं। अब रिटायर हो गया हूं घर के बच्चे दूर रहे तो ठीक नहीं लगता है। चाचा की सीख चल ही रही थी कि अचानक फोन बज उठा इस बार बस्ती के पुराने मित्र प्रदीप पाण्डेय का था। जिनसे कलम पकड़ने के साथ न्यूज का नार्थ,ईस्ट,साउथ व वेस्ट सहित बहुत कुछ सीखा। बस्ती आने पर बिना प्रदीप से मिले व उनकी चाय के साथ ज्ञान का खुराक लिए यात्रा अधूरी लगती रही है। अयोध्या वाले चाचा के साथ बातचीत संग भोजन कर चुका था,अब चल दिया पुराने मित्र प्रदीप से मिलने कचहरी स्थित उनके अखबार भारतीय बस्ती के दफ्तर पर
क्रमश:
yatra jari hai
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