जम्मू से दिल्ली
बिग बॉस शशिशेखर से मीटिंग के लिए आने पर अचानक ट्रांसफर का फरमान सुनने के बाद 48
घंटे से ज्यादा की ट्रेन की यात्रा के बाद शरीर में थकावट जो महसूस हो रही थी जन्मभूमि
बस्ती पहुंचकर फुर्र हो चुकी थी। स्नान-ध्यान के बाद बाइक लेकर उन गलियों में निकलने
का दिल किया जहां दोस्तों के साथ सुबह-शाम नहीं गुजरती तो दिन अधूरा लगता था। संतकबीरनगर
जिले के बेलहर कला गांव में पैदा होने के बाद
होश संभालने के बाद अपने को बस्ती को पिकौरादत्तू राय मोहल्ले में किराए के मकान में
पाया था। किराए के घरों में अपनों के निशान खोजने के लिए निकलने के बाद सबसे पहले करतार
सिनेमा हाल जो अब बंद हो चुका था उसके आगे पिकौरादत्तू राय मोहल्ले में पहुंचा। जिस
मकान में हम लोग रहते थे नए किराएदार दिखे, किराए के घर के सामने आम के पेड़ में अपनापन
हर डाल पर दिख रहा था। जिन डालियों पर छोटे भाई व बहन के साथ हम लोग खेलने के साथ आम
के मौसम में टिकौरा तोड़ते थे उन पेड़ों के नजदीक जाकर जो अपनापन महसूस हुआ वह जेहन
में नई ताजगी का अहसास करा रहा था। कुछ वक्त आम के पेड़ों के बीच खड़ा रहने के बाद
रौता चौराहा के पास दुर्गामंदिर की तरफ चल दिया। दुर्गामंदिर के पास जिस किराए के मकान
में रहता था,वहां भी नए किराएदार आ गए थे। लड़कपन के दिनों की मस्ती के साथियों की
तलाश में बड़े भाई के रूप में सरोजबाबा मिले जो अब खुद बच्चों के बाप बन गए थे। मेरी
आंखें सरोज बाबा के पिताजी को खोज रही थी तो जो ठंड का मौसम हो या बरसात, भोर में ही
उठकर पूजा-पाठ करने के साथ घंटी व शंख बजाने लगते थे। घंटी व शंख की आवाज से अम्मा-पापा
हम लोगों को स्कूल जाने के लिए जगाने का यत्न प्रारंभ कर देते थे। पता चला कि वह अब
दुनिया में नहीं रहें। बाबा विश्वनाथ से उनकी
आत्मा की शांति के लिए मन ही मन में प्रार्थना करने के बाद त्रिपाठी चित्र मंदिर के
गली में चला गया। इन गलियों से अपना अजीब इश्क
था। त्रिपाठी चित्र मंदिर में स्कूल से भागकर कितनी फिल्में देखी गिने तो बहुत लंबी
लिस्ट बनेगी। इन गलियों से होता हुआ करतार टॉकीज के सामने उस चाय की दुकान पर पहुंचा
जहां खास दोस्तों के साथ रोज शाम को चाय पीने के लिए आया करता था। बस्ती शहर में तीन
किराए के मकानों में अपनों के निशान खोजने में कुछ खुशी कुछ गम के बीच चाय की चुस्की
ले रहा था। ठंड के मौसम में गुनगुनी धूप से थोड़ी राहत के बीच दुकान के बाहर लगी बेंच
पर चाय के साथ एक सिगरेट भी सुलगा लिया। सिगरेट पीने का मूड नहीं था इस दुकान पर कालेज
के दिनों में स्कंद पाण्डेय व अविनाश श्रीवास्तव के साथ अक्सर चाय-सिगरेट के लिए आया
करता था। उस दोस्ती को ताजा करने के लिए चाय-सिगरेट के बीच समय के साथ बस्ती में हुए
बदलाव के बारे में सोचने में मशगूल हो गया। अचानक मोबाइल पर घंटी बजी तो देखा जम्मू
में बचे कश्मीर के विस्थापित पंडित रामनिवास पंगोत्रा के भतीजे उमेश का था। दिल्ली
से नौकरी की आस में जाने के बाद मायूस लौटकर जम्मू आ चुका था। जय मातादी के साथ बातचीत
प्रारंभ हुई बोला चाचा ने आज आपसे बात किया है बोले हैं कि काशी वाले पंडित से बात
कर लो वह तुम्हारा कुछ इंतजाम करेंगे। जम्मू से तबादला होने की खबर देने की साहस इस
पीड़ित कश्मीरी पंडित परिवार को फिर नहीं हुई। बोला आते है जम्मू माता रानी चाहेंगी
जब ठीक होगा। यह कहकर फोन रख दिया। जेहन में फिर कश्मीरी पंडितों की पीड़ा फ्लैश बैक
में चलने लगी। सन 1990 में कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के साथ जो भीषण नरसंहार, बलात्कार और आगजनी के शर्मनाक बर्बर कृत्य हुए उसको लेकर नेताओं के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकला। आज लाखों पंडित बेघर होकर दर-दर ठोकर
खा रहे हैं। कश्मीर घाटी में मुसलमानों ने जो घोर घृणित कृत्य किए थे, उसे लेकर संवेदना का मरहम लगाना तो दूर शोक जताने में भी घाटी के नेता किस तरह खौफ खाते थे किसी से छिपा नहीं
था। दिल्ली में बैठकर नेता व पत्रकार धर्मनिरपेक्षता का जो राग अलापते हैं वह कश्मीरी
पंडितों के शोक में शरीक होने और उनके प्रति सहानुभूति जताने की बात होने पर गूंगे हो जाते हैं। कश्मीर घााटी में
हिन्दुओं, सिखों और अन्य गैर मुस्लिमों को बेरहमी से काटते हुए, गैर-मुस्लिम महिलाओं के साथ बेगैरत हरकतें करते हुए, सार्वजनिक ऐलान कर गैर-मुस्लिम कश्मीरियों को कश्मीर से जिस तरह बाहर निकाला गया, क्या कभी वह आपस अपने घरों को लौट पाएंगे?
मैं जो जम्मू से बस्ती आकर जिन किराए के मकानों में रहा वहां अपनेपन की निशानी खोज
रहा हूं क्या कश्मीरी पंडित अपने पैतृक भूमि व भवन जिसे छोड़कर शरणार्थी बन गए कभी
जा पाएंगे? ऐसे ढेरों सवाल दिमाग में घूमने लगे, जिसका जवाब न दिल दे रहा था न दिमाग।
चाय खत्म हो चुकी थी। मैं किराए के मकानों में अपनों के निशान देख रहा था लेकिन मेरा
दिल कश्मीरी पंडितों के दिल के घाव को देखकर मायूसी में डूबता जा रहा था। जम्मू से
बस्ती आ गया था लेकिन कश्मीरी पंडितों के प्रताड़ना की दर्जनों कहानियां अभी भी जेहन
व डायरी में थी जिनको अभी तक खबर नहीं बना सका था। इन अधूरी कहानियां को कहने को दिल
बेताब था। कश्मीरी पंडितों के साथ जुल्म-ज्यादती की कहानियों को बयां करने के लिए क्या
करूं, यह सोचने के लिए एक चाय का और आर्डर दे दिया।
क्रमश:
सचमुच अच्छा संस्मरण और यथार्थ परक संवेदनशील
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा मर्म स्पर्शी