जम्मू-कश्मीर
से नई दिल्ली बिग बॉस के अचानक बुलावे पर मिलने के लिए वहां जाने पर अप्रत्याशित तौर
एनसीआर में एक नया टास्क देने के बाद तबादला करने का आदेश सुनने के साथ एक सप्ताह की
ट्रांसफर लीव मिलने पर बस्ती के लिए वैशाली एक्सप्रेस पर सवार हो चुका था। गाजियाबाद
के बाद गाड़ी रफ्तार पकड़ने लगी थी,इसके साथ पचास घंटे से ज्यादा की पहले ही रेलयात्रा
करने के चलते देह थकान की पटरी पर ढेर होने के कगार पर था। सामने बैठे गोंडा के फौजी
साथी के साथ ऐसी दशा में एक दूसरे के विंडो सीट पर पैर फलाकर आराम करने की सहमति पहले
ही हो चुकी थी। गाजियाबाद के बाद दोनों लोग पैर फैलकर खिड़की के शीशे को गिराकर उसकी
टेक लेकर आराम की मुद्रा में देह को लेते आए थे। देह के साथ दिल व दिमाग भी आराम को
बेताब थे। ठंड के मौसम में जैकेट के ऊपर गांधी आश्रम की एक ऊनी चादर डालने के बाद भी
सर्द हवाएं हडडी को हिलाकर आराम की मुद्रा में खलल डालने की कोशिश कर रही थी। जैकेट
के ऊपर ऊनी चादर से खुद को सर्द हवाओं से बचाने के साथ टुकड़ों-टुकड़ों में नींद का
खुराक लेने में जुट गया। गाजियाबाद से टुकड़ों-टुकड़ों में नींद लेने का क्रम वैशाली
एक्सप्रेस की पटरियों पर दौड़ने के साथ चल रहा था। नींद की आगोश में आने-जाने के बीच
सर्द हवाओं से संग जंग चल रही थी। विंडो की सिंगल सीट पर बैठने के बाद पैर फैलाकर चादर
ओढ़ने के बाद नीचे ठंडी हवा किस-किस कोने से घुस रही है,उस जगह को पता करने के बाद
चादर को लपेटकर उसे बंद करने का उपक्रम सर्द सफर को यादगार बना रही थी। ठंड से बचने
के लिए जैकेट के ऊपर लपेटे ऊनी चादर संग यत्न प्रत्यन करते करते रात ही कट गई। आधी
रात के करीब खिड़की को हाथ से पीटकर बाहर से चाय-चाय चिल्ला रहे एक लड़के की आवाज से
नींद में खलल पड़ गयी। खिड़की का दरवाजा थोड़ा से उठाकर पूछा कौन सा स्टेशन है? बरेली
बताने के साथ पांच रुपए में गरमागरम चाय पीने का आफर देने लगा। बरेली का सूरमा का नाम
सुना था लेकिन बरेली की बरफी लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान लालबहादुर शास्त्री
छात्रावास में एक साथी ने खिलाया था। बरफी की मिठास आज भी जेहन में बरकरार थी, सर्द
हवाओं के बीच वैशाली एक्सप्रेस की ठसाठस भरी जनरल बोगी के अंदर से ठंड से राहत के लिए
एक कुल्हड़ चाय लेने के बाद उसको पैसा दिया। चाय पीते ही मुंह का जायका बिगड़ गया।
ठंड में गरमागरम चाय की लालच में ली गई चाय इतनी सड़ी होगी,सोचा नहीं था। सड़ी चाय
को गरम पानी समझकर पीने के बाद खिड़की फिर बंद करके चादर को सिर से पैर तक ढकने के
बाद अंदर से ही खुद को कसकर पैक कर लिया ताकि सर्द हवाएं किसी कोने से घुस नहीं सके।
बरेली से ट्रेन के आगे बढ़ने के साथ स्पीड पकड़ते ही कोशिश किस तरह नाकाम हो चुकी हैं
देह के कई हिस्से पर चुभर्ती सर्द हवाएं बता रही थी। चादर को फिर से सिर से लेकर पैरतक
अंदर से ही कसकर पैक करने के बाद खिड़की की ओट में देह टिका देने का यत्न और ठंड से
बचने का प्रयत्न सफर का सेल्फ टॉस्क हो गया था। घंटों चले इस टॉस्क में कभी पास कभी
फेल के बीच जिंदगी की गाड़ी के साथ वैशाली एक्सप्रेस भागती जा रही थी। टुकड़ों-टुकड़ों
में नींद के आ रहे झोंकों के बीच सफर जारी था। घड़ी की सुई भोर की तरफ भाग रही थी और
ट्रेन लखनऊ पहुंचने वाली थी। लखनऊ सिर्फ एक शहर का नाम ही नहीं बल्कि मेरे लिए प्यार
का नाम है। बस्ती में पैदा हुआ लेकिन लखनऊ में पढ़ाई के साथ पत्रकारिता की पिच पर उतरने
के साथ इस शहर से प्यार होने के तमाम कारण है। लखनऊ यूनिवर्सिटी ने दोस्तों की खान
जहां दिया वहीं इस शहर ने जो दिया वह शब्दों से बयां नहीं किया जा सकता है। लखनऊ आने
की कानों में पड़ी यात्रियों के खुसफुसाहट की आहट के बाद नींद गायब हो चुकी थी। सबेरे
पांच बजे के करीब चारबाग के प्लेटफार्म पर ट्रेन लग चुकी थी। डिब्बे से उतरने के लिए
काफी मसक्कत करनी पड़ी लेकिन दिल डिब्बे से उतरकर प्लेटफार्म पर आने को खुद नहीं रोक
सका। प्लेटफार्म पर चाय-बिस्कुट लेने के बाद दैनिक जागरण व हिंदुस्तान अखबार भी रास्ते
के सफर के लिए खरीद लिया। चाय-बिस्कुट के बाद अखबार लेकर डिब्बे में आकर सीट पर फिर
बैठ गया। सामने की सीट पर सो रहे सफर के फौजी भाई भी जाग गए थे। पूछा कौन सा स्टेशन
है,बताया लखनऊ तो वह अचानक सावधान की मुद्रा में अलर्ट हो गए। इसके साथ ट्रेन को ग्रीन
सिग्नल मिल गया वह हार्न देते हुए प्लेटफार्म पर रेंगने लगी। मेरे हाथ में हिंदुस्तान
व दैनिक जागरण देखकर अलर्ट मुद्रा के बाद सामान्य हो चुके फौजी भाई ने पूछा आप अमर
उजाला में रिपोर्टर हैं उसको नहीं लिया। मैने बताया कि अमर उजाला अभी लखनऊ से नहीं
छपता है। यह सुनकर ओह कहने के बाद वह अपने सामान को व्यवस्थित करने लगे। ट्रेन बाराबंकी
की तरफ बढ़ रही थी। दैनिक जागरण खुद पढ़ने के साथ हिंदुस्तान उनको पढ़ने को दे दिया।
भोर होने के साथ बोगी में ऊपर-नीचे सोए लोग भी आंख भींचते हुए खोलने व खोलने का प्रयास
करने लगे थे। बाराबंकी बिना रूके गोंडा की तरफ वैशाली बढ़ रही थी। मेरे सामने बैठे
फौजी भाई को छोड़कर गोंडा उतरने वाले तमाम लोग अपने भाई-बंधुओं को उठ बे –उठ बे कहने
के साथ जगाने की कोशिश करने लगे। इस प्रयास के साथ ट्रेन बाराबंकी पार होई गए,अब गोंडा
आई की ताजा जानकारी भी दे रहे थे। जाड़े में सबेरे की नींद किसी के भी जगाने पर पांच
मिनट और का मोहलत लिए बगैर पूरी नहीं होती है। यह नजारा मेरे सामने के बर्थ के ऊपर
नीचे के साथ अगल-बगल भी दिखाई दे रहा था। गोंडा उतरने वालों की बाराबंकी से अपनों को
जगाने के लिए चल रही कसरत का किस्म-किस्म का रंग दिखाई दे रहा था। इस रंग का खिड़की
किनारे चादर ओढ़कर बैठकर लुत्फ लेने के साथ जरवलरोड के बाद करनैलगंज क्रास करने वाली
थी ट्रेन। उठ-बे उठ-बे कहकर अपनों को जगाने में जुटे लोग अब बातों में हाथ-लात का प्रयोग
करने की धमकी भी देने लगे थे। लात की धमकी कहीं असरकारी तो बेअसर दिखाई दे रहा था।
जहां बेअसर था वहां करलैगंज क्रास करने के बाद चादर खींचकर जगाने का उपक्रम पूरा करने
के साथ पूर्ण हुआ। गोंडा स्टेशन के आउटर पर पहुंचने के साथ वैशाली की गति धीमी हो गई
थी, प्लेटफार्म नंबर एक पर लगने के साथ उतरने की होड़ के साथ चढ़ने वाले दैनिक यात्रियों
की भीड़ गेट पर डट गयी। सामने बैठे फौजी साथी के साथ तमाम यात्री उतरने से भीड़ थोड़ी
हल्की हुई लेकिन दैनिक यात्रियों की भीड़ अंदर आने के बाद हिसाब फिर बराबर हो गया।
गोंडा से फिर ट्रेन चल पड़ी अगला स्टेशन बस्ती थी। ठंड का असर था ऊनी चादर लपेटने का
मूड अभी नहीं कर रहा था। गोंडा से चली ट्रेन मनकापुर स्टेशन की तरफ बढ़ रही थी। इंडियन
टेलीफोन इंडस्ट्री की फैक्ट्री के नाते मनकापुर ही गोंडा जिले के खाते में किसी मनका
की तरह था। मनकापुर स्टेशन को बिना रूके वैशाली एक्सप्रेस बस्ती की तरफ दौड़ रही थी।
बभनान आने के बाद चादर लपटने के फैसले पर फिर मन में विचार करते हुए ऊतारकर लपेटने
के बाद बैग में डाल लिया। लेदर जैकेट के बाद भी हवाएं सर्द का अहसास करा रही थी, कान
पर मफलर को कसकर बांधने के साथ बैग दुरुस्त कर लिया। गोविंदनगर क्रास करने के बाद बस्ती
स्टेशन था। बस्ती उतरने वाले सीट छोड़कर गेट की तरफ बढ़ने लगे थे। मैं भी बैग के साथ
उस कतार में शामिल हो गया। चंद मिनट पर प्लेटफार्म नंबर एक वैशाली एक्सप्रेस ठहर गयी
थी। जम्मू से दिल्ली मीटिंग के लिए आने पर अचानक ट्रांसफर के आदेश संग एक सप्ताह के
मिले ट्रांसफर लीव के बाद बस्ती पिता जी के साथ यार-दोस्तों से मिलने बस्ती स्टेशन
पहुंच गया था। रेलवे स्टेशन से कचहरी जाने वाले एक ऑटो पर तुरकहिया जाने के लिए बैठ
गया। ऑटो चालकर बाकी सवारियों के लिए पक्के-कचहरी की रट लगाकर यात्रियों को बुलाने
में जुटा था। चंद मिनट में उसकी मेहनत रंग लायी दो और सवारी पक्के के आ गए और ऑटो स्टार्ट
होकर चल पड़ी पक्के की ओर
क्रमश
Very interesting read
जवाब देंहटाएं