अमर
उजाला नोएडा दफ्तर से ट्रेन पकड़ने के लिए ऑटो की तलाश में पैदल ही कंधे पर एयरबैग
टांगे निकल दिया। आंखें ऑटो तलाश रही थी लेकिन दिमाग में समूह संपादक शशिशेखर का डायलाग
जम्मू-कश्मीर में तुम जिस तरह काम कर रहे हो उसे देखकर मुझे लग रहा है वहां तुम रहोगे
तो खुद मरोगे घूम रहा था। जम्मू-कश्मीर में चंद महीने काम करने के मिले मौके के साथ
नए टॉस्क को लेकर माता रानी को स्मरण करते हुए लगभग एक किमी पैदल चलने के बाद ऑटो मिल
गया। जम्मू-कश्मीर से नईदिल्ली फिर नोएडा के बाद जन्मभूमि बस्ती जाकर पिता से मिलने
की चाह में दूरी कोई मायने नहीं रखती। नईदिल्ली रेलवे स्टेशन के लिए किराया सुनने के
बाद ऑटोचालक से मोलभाव में पांच मिनट खर्च करने पर पचास रुपए की बचत देखने के बाद फिर
चल दिया जन्मभूमि को नमन करने। उत्तर प्रदेश के पिछड़े इलाकों में शुमार पूर्वांचल
के पिछड़े जिलों में अग्रणी बस्ती जिला अपनी जन्मभूमि है। बस्ती जिले को नईदिल्ली से
जोड़ने के लिए वैशाली एक्सप्रेस मौजूद थी। गोरखपुर से नईदिल्ली के बीच चलने वाली वैशाली
एक्सप्रेस से अपना बहुत पुराना यराना रहा है। गोरखपुर से बस्ती अप-डाउन सैकड़ों चक्कर
इसी ट्रेन से लगे होंगे। कभी खड़े-खड़े तो कभी किसी यात्री से भाई साहब अगले स्टेशन
पर उतर जाएंगे का आश्वासन देकर एडजस्ट करके। इसी वैशाली एक्सप्रेस से नईदिल्ली से बस्ती
के लिए पहली बार सफर के लिए नोएडा से ऑटो पर सवार होकर चल पड़ा था। जम्मू-कश्मीर से
दिल्ली में समूह संपादक से मिलने के बाद पूजा एक्सप्रेस से अगले दिन वापसी के लिए आरक्षित
टिकट कटवाया था जो जेब में पड़ा था। जम्मू-कश्मीर जाने की बजाए नए टॉस्क के लिए ट्रांसफर
लीव मिलने के बाद पर्स पर पड़ा टिकट वह बेमतलब हो गया था। उसको कैंसिंल कराने की बजाए
दिमाग वैशाली में सीट मिलने के लिए चलने लगा। वैशाली एक्सप्रेस से आरक्षित टिकट मिलना
नामुमकिन था। जनरल टिकट पर ही सफर का संकल्प लेकर ऑटो से बाहर गगनचुंबी इमारतों व मॉल
को देखते हुए सफर कट रहा था। जैकेट की जेब में रखा मोबाइल अचानक घनघना उठा, मोबाइल
पर नाम जम्मू में अमरउजाला के साथी अनिमेष शर्मा का दिखा। हैलो-हाय की जगह जम्मू में
जय हिंद और जय माता दी से फोन या मिलने पर दोस्तों से बातचीत की आदत हो गयी। अनिमेष
का फोन देखकर रिसीव करने के साथ मेरे जय माता दी बोलने से पहले उसने ही बोलकर पूछा क्या
रहा भाई साहब बिग बॉस के साथ आपकी मीटिंग का। जय माता दी कहने के बाद बताया नया टॉस्क
का फिर बॉस की जो डायलाग दिमाग में घूम रहा था उसको भी सुनाया। अनिमेष ने बधाई देते हुए कहा
भाई साहब आपके साथ काम करने व रहने के साथ बहुत कुछ हम लोगों ने पाया, अब सबको मिस
करेंगे। अगले प्लान के बारे में पूछा तो बताया कि अब यहां से बस्ती जा रहा हूं पिता
जी से मिलने उसके बाद बनारस जाऊंगा। बनारस के बाद फिर नए टॉस्क को लेकर सोचा जाएगा,क्या
करना है। भाई साहब बात करने से मन नहीं भरा लेकिन आपका नंबर जम्मू का है,दिल्ली में
रोमिंग चार्ज लग रहा होगा, घर पहुंचने के बाद मिलाइएगा बात करेंगे। जय माता दी कहकर
फोन रख दिया। ऑटो चालक मेरा फोन कटने के बाद अचानक भोजपुरी के लोकगायक बालेश्वर का
एक गाना लगा दिया बोल था-नीक लागे टिकुलिया गोरखपुर कै, इस गाने को सुनने के बाद मुझे
ऑटो चालक अपने पूर्वांचल का ही है। गाने के बोल सुनकर पूछ बैठा गोरखपुर के हव्वा का? हां
भइयां। परिचय हुआ तो पता चला कि गोरखपुर के बांसगांव के रहने वाले बाबू साहब थे। पिछले
पांच साल से ऑटो चलाकर परिवार का गुजर-बसर कर रहे हैं। रोजी-रोटी की समस्या इनको यहां
खींच लाई लेकिन दिल,दिमाग व देह में पूर्वांचल की माटी हो या संगीत सब रचा-बसा है।
परिचय होने के बाद बातचीत के साथ रास्ता कटते देर नहीं लगी। किराया देने के साथ राम-राम
करके वैशाली एक्सप्रेस की टोह में निकल पड़ा। ट्रेन जाने में दो घंटे का वक्त था, जनरल
टिकट लेने के साथ प्लेटफार्म नंबर पता करके वहीं पहुंच गया। वैशाली एक्सप्रेस आने से
पहले आगे लगने तीन-चार जनरल बोगी के डिब्बों में जगह लेने के लिए मुझसे पहले सैकड़ों
लोग यार्ड की ओर आंखें गड़ाएं देख रहे थे। मैं भी अपनी एक जोड़ी आंखों के साथ उस भीड़
में शामिल हो गया। ट्रेन की लेटलतीफी का शिकार होने के साथ अनुभवों का खजाना था लेकिन
यार्ड से प्लेटफार्म पर ट्रेन आने के इंतजार का अलग आनंद आ रहा था। एक-डेढ़ घंटे बाद
यार्ड से वैशाली एक्सप्रेस प्लेटफार्म पर आयी। जनरलबोगी के बंद दरवाजे की हैंडिंल घुमा-घुमाकर
लोग प्रयास कर रहे थे। इसी बीच जनरल बोगी में लगी आपातकालीन खिड़की जिसमें लोहे की
सरिया नहीं लगी रहती है उसको छुटटी पर घर लौट रहे सेना के एक जवान ने खोलने के साथ
खुद कूदकर अंदर जाकर दरवाजा खोल दिया। दरवाजा खुलने के बाद भीड़ के रैला के साथ मैं
भी जनरलबोगी के अंदर घुस गया। संयोग से खिड़की के किनारे की एक सीट मिल गयी। एयरबैग
बर्थ के नीचे डालकर बैठ गया। दस मिनट बाद उस बोगी का नजारा ऐसा था कि नीचे जितने लोग
बैठे थे,उतने ही सामान रखने वाली ऊपर वाली बर्थ पर भी लोग सवार थे। रोजी-रोटी के लिए
पूर्वांचल से निकलकर देश के कोने-कोने जाने वालों की यह भीड़ थी। कुछ देरबाद ट्रेन
सीटी देकर चल पड़ी तो जय माता दी मुंह से निकल पड़ा। जय माता दी सुनकर सामने बैठा सेना
का जवान पूछा माता रानी का दर्शन करके आ रहे हैं क्या, जवाब हां में देने पर वह भी
बोला जय माता दी। बातचीत में पता चला कि बस्ती से पहले गोंडा तक सामने वाले जवान को
जाना था। ट्रेन की सिटी देने के साथ प्लेटफार्म पर रेंगने लगी। कॉशन पर रूकते चलते ट्रेन दिल्ली से बाहर निकलकर मेरे जन्मभूमि की
तरफ अब बढ़ रही थी। गोंडा के रहने वाले बीएसएफ में तैनात जवान से परिचय होने के बाद एक-दूसरे
के बर्थ पर पैर फैलाकर आराम करने की आपसी सहमति बनने के साथ वैशाली एक्सप्रेस गाजियाबाद
पहुंचने वाली थी। गाजियाबाद से पहले डिब्बे में किन्नरों की एक टोली आ धमकी जो सबसे
जबरिया वसूली कर रही थी। किन्नरों की टोली की वसूली का जब कुछ यात्रियों ने विरोध करते
हुए जीआरपी से शिकायत करने की धमकी दी तो बोली जो तुम देगा उसमें उनका भी हिस्सा है,वह
क्या बोलेंगे। सामने बैठे बीएसएफ के जवान को देखकर गुंडागर्दी करके वसूली करने वाली
यह टोली बिना हम लोगों के सामने हाथ फैलाएं आगे बढ़ गयी। ट्रेन गाजियाबाद से आगे बढ़
चुकी थी, 48 घंटे के लगातार सफर के बाद थकान महसूस हो रही थी। जूता निकालकर हम-दोनों
एक दूसरे के सीट पर पैर टिकाने के साथ खिड़की का सहारा लेकर आराम की मुद्रा में आ गए
थे। सूरज डूबने के साथ अंधेरा छाने लगा था, जिंदगी का सफर जारी है। ट्र्रेन सीटी देते
हुए पटरियों पर सरपट दौड़े जा रही थी,दिमाग में जम्मू-कश्मीर की हसीन यादों के साथ
अनुभवों के नए-नए स्टेशन आ जा रहे थे।
क्रमश:
आप सबका स्वागत है
जवाब देंहटाएंसुंदर संस्मरण
जवाब देंहटाएंसुंदर संस्मरण
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