रोमिंग
जर्नलिस्ट की रिपोर्ट 28
जम्मू
से नईदिल्ली पूजा एक्सप्रेस से उतरकर प्लेटफार्म पर आने के
बाद दिमाग में सवाल की सुपरफास्ट एक्सप्रेस भागे जा रही थी। जम्मू-कश्मीर में काम
ठीक चल रहा था फिर शशिशेखर ने क्यों नोएडा बुलवाया है। इस सवाल का दिगाम के किसी
कोने से निकलकर आ रहे तरह-तरह के जवाब सोच की गाड़ी की गति धीमे करने के लिए काशन
का काम रहे थे। दिमाग में दौड़ रही सवाल की गाड़ी के सामने आंखों के सामने जम्मू-कश्मीर में अपने अन्नदाता बालगोत्रा जी को देखकर ब्रेक लग गया। राधे-राधे के बाद बालगोत्रा जी अपने किसी रिश्तेदार की तलाश में आने की बात बताएं जो कश्मीर से भगाए
गए पंडितों की बस्ती में रहते थे। बालगोत्रा जी से मिलने के बाद उनके ढाबे की राजमा व
चावल की याद आ गयी। जम्मू के विक्रमचौक पर तवी नदी के पुल के किनारे टीनशेड डालकर
ढाबा चलाने वाले बालगोत्रा जी का होटल ही जम्मू-कश्मीर में हमारा ही नहीं देश के
कई कोने से पहुंचे कामगारों के लिए पेट भरने का बड़ा साधन था। दाल-रोटी खिला देते थे। वेज-नानवेज दोनों बनाते थे। अमरउजाला जम्मू दफ्तर में जब
खाना मंगवाता तो दाल के साथ हडडी का भी एकाध टुकड़ा मिल जाता था। दाल में हडडी का
टुकड़ा देखने के बाद खाने से मन खिन्न होकर छोड़ना पड़ता। रात को भोजन की जगह चाय-बिस्कुट खाकर ही बितानी पड़ती थी। दाल में हडडी का टुकड़ा मिलने पर
पहली बार खाना छोड़ने के बाद खाना लाने वाले चपरासी से जब इसकी शिकायत की तो बताया
कि बालगोत्रा के होटल पर कलछुल एक ही है। उसी से बोटी और उसी से दाल दोनों निकालकर
ग्राहकों को देते हैं। पेट भरने के लिए रात को इस होटल के अलावा खाने के होटल दूर थे। बालगोत्रा के ढाबा से आफिस के तमाम साथी वेज-नानवेज दोनों खाना मंगवाते थे,
मैं भी अक्सर काम के चलते खाना मंगवाता रहा। दाल में हडडी की घटना के बाद दाल आने
पर रोटी को तोड़कर उसके एक टुकड़े से दाल को छानने का काम करता कि कहीं कोई हडडी का टुकड़ा तो
नहीं है, इत्मिनान होने के बाद माता रानी का नाम लेकर खाता था। नाइट डयूटी के कारण अक्सर खाने के जिस अनुभव से
गुजरना पड़ता था उसको संपादक प्रमोद भारद्वाज जी के साथ डेस्क के सीनियर साथी योगेश
शर्मा से भी कर चुका था। बालगोत्रा जी के होटल पर खाना खाने जाने के दौरान जाकर यह व्यक्तिगत शिकायत करने पर जवाब चपरासी वाला ही मिला, साहब एक ही कलछुल है।
जम्मू-दिल्ली आने
पर स्टेशन पर इस बार बालगोत्रा से जब टकराए तो शिकायत दुहराते हुए कहा कि अबकी दिल्ली से
जम्मू चलने पर आपके लिए एक कलछुल लेकर आऊंगा,ताकि दाल-बोटी निकालने के लिए अलग-अलग
कलछुल का प्रयोग करें ताकि खाने के दौरान दाल में हडडी का टुकड़ा निकलने से मूड आफ
करके खाना छोड़ना न पड़े। बालगोत्रा जी शिकायत को नए अंदाज में सुनकर बोले साहब अबकी
आप आएंगे तो आपको नई कलछुल से परोसा जाएगा। यह आश्वासन देने के साथ दुआ-बंदगी करके
वह चलते बने। बालगोत्रा से विदाई के साथ दिमाग में फिर वही सवाल आाखिर शशिशेखर ने
क्यों बुलवाया है?
क्रमश:
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