रोमिंग
जर्नलिस्ट की रिपोर्ट 30
दो
जनवरी 2007 को जम्मू-कश्मीर से पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद बालगोत्रा
होटल के मालिक से राम-राम करने के बाद आगे बढ़ा था कि कश्मीर से खदेड़े गए पंगोत्रा
जी भतीजे के साथ मिल गए थे। मेरे आग्रह पर वह चाय की चुस्की संग अपने ही देश में शरणर्थी
होने का दर्द बयां कर रहे थे। उनको अपने कश्मीर की सरजमी छूटने का गम दिल से निकलकर
आंखों की पलको तक आ गया था। उनको विश्वास दिलाते हुए कहा विश्वास करिए देश में एक दिन
ऐसा आएगा जब धारा 370 का फंदा हटने के साथ कश्मीरी पंडितों के दिन बहुरेंगे। उम्मीद
भरी मेरी बातों को वह गमगीन माहौल में नकाराते हुए कहा कि तवी में बहुत पानी बन बह
गया, दर्द जस का तस है अब तो कलेजे के घाव पर भी समय की काई जम रही है। जब तक जिंदा
है यह गम सताता रहेगा, जिस दिन सांस थम गयी, न गम रहेगा न हम रहेंगे। चाय की आखिरी
घूंट को खत्म करने के लिए गिलास मुंह में लगाते हुए कहा पंडित जी आप विश्वास करें हिंदुस्तान
में एक दिन आएगा जब जम्मू या श्रीनगर सचिवालय पर तिरंग के साथ फहरने वाला दूसरा झंडा
उतरेगा। एक देश,एक निशान, एक संविधान का सपना सच हाने के साथ कश्मीरी पंडित अपने घर
लौटेंगे। मेरी बातों को सुनकर मुझे तो नहीं लग रहा है वह दिन कभी हिंदुस्तान में आएगा।
पंगोत्रा
जी भी चाय की एक और चुस्की लेते हुए बोले कि वह कश्मीर जिसे हमने खो दिया है उसे फिर
से हासिल करने के लिए संघर्ष करके हम लोग थक गए हैं। देश में सरकार कश्मीरी पंडितों
को कूड़ा-कचरा समझकर कभी एक शरणार्थी शिविर से दूसरे जगह शिविर लगाने को भेजती रही
है। कश्मीर में पन्नुन कश्मीर वह हिस्सा था जहां पंडित रहते थे। सन 1989 से 1995 के
बीच कत्लेआम जो दौर चला उसे सोचकर खून के आंसू निकल पड़ते हैं। खून-खराबे के कारण पंडितों
को कश्मीर से पलायन करने को मजबूर होना पड़ा। किसी से छिपा नहीं हैं लेकिन केंद्र
सरकार हो या राज्य सरकार सब खामोश है क्या करेंगे हम सब? जिस हिसाब से पंडितों को मारा गया उसको भारत की धर्मनिरपेक्ष
सरकार खामोशी से देखती रही। ऐसे देश में आप कह रहे हैं एक दिन आएगा एक संविधान एक निशान
का सपना सच होगा। कश्मीर में पंडितों के साथ उनकी बहू-बेटियों के साथ जो सलूक हुआ देश
की धर्मनिरपेक्ष सरकार गूंगी-बहरी बनी रही, आप कह रहे हैं एक दिन आएगा। कश्मीर के पुराने
मंदिरों को तोड़कर किस तरह तहस-नहस किया गया,किसी से छिपा है क्या? सब जानते हैं लेकिन
सब गूंगे-बहरे बने बैठे हैं। आप कह रहे हैं हिंदुस्तान में एक दिन ऐसा आएगा जब 370
का फंदा हटेगा? मैं कह रहा हूं यह फंदा आतंकवाद का कवच है। पाकिस्तान जिस तरह अलगाववाद
के नाम पर कश्मीर में आतंकवाद की फैक्ट्री चलाकर हिंदुओं को मरवा रहा है, आप कह रहे
एक दिन हालत बदलेगा। पंगोत्रा जी मेरी उम्मीदभरी बातों को सुनकर इस तरह फायर हो जाएंगे,
चाय का आमंत्रण देने से पहले सोचा नहीं था। खैर उनके गुस्से में दर्द के साथ हिंदुस्तान
की माटी से प्यार की महक महसूस हो रही थी। ऐसी महक थी जो किसी हिंदुस्तानी को देश के
लिए जीने-मरने का जज्बा पैदा करती है। पंगोत्रा जी की चाय खत्म हो चुकी थी,मेरी भी।
पंगोत्रा जी का भतीजा पहले ही गिलास खाली करके हमारी और उनकी बातों को खामोशी के साथ
सुन रहा था। चाय वाले को पैसे देने के साथ हम तीनों होटल से बाहर निकलकर विदा लेने
के साथ फिर मिलने का वादा करके चलते बने। पंगोत्रा जी को चाय मैने पिलायी,बातों-बातों
में उन्होंने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर सच्चाई की जो कड़वी घूंट पिलाई उसका स्वाद जीभ
पर नहीं दिल-दिमाग पर महसूस हो रहा था। एक-दूसरे से विदा होने के बाद दिमाग में फिर
वहीं सवाल आ गया कि अमर उजाला के समूह संपादक शशिशेखर ने आखिर क्यों बुलवाया है? इस
सवाल का मन के अंदर ही तरह-तरह के जवाब गढ़ने के साथ नोएडा के लिए ऑटो की तलाश में
चल पड़ा।
क्रमश:
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