2 जनवरी 1999...उस रात नोएडा में उदयन शर्मा के सरकारी आवास पर नए साल का आयोजन..अपन
भरे पूरे -ग्रुप के साथ मौजूद..वहां पहुँचने से पहले एक सहयोगी ने किसी पुरानी रंजिश का ऐसा ज़िक्र किया कि दिल में यह आशंका बैठ गयी कि अभी कुछ बड़ा घटने वाला है..उन दो लोगों को पार्टी में देख आशंका और गहरा गयी, जिन लोगों ने पार्टी का विरोध किया था और कंट्रीब्यूशन देने से साफ मना कर दिया था..वो थे सीनियर प्रोड्यूसर उदय शंकर और एसोशिएट प्रोड्यूसर संजय द्विवेदी...
जब पार्टी पूरे रंग में आ गयी तो वो घट भी गया..देखा हमारे साथ के पवन को कुछ लोग बुरी तरह पीट रहे हैं और संजय द्विवेदी उस पर चिल्ला रहे हैं-स्साले छोटी सी बच्ची को भी नहीं बख्शा..पवन को गेट से बाहर सड़क पे गिरा कर लातों घूंसों से पीटा जा रहा..जब मैंने उन्हें रोकने की कोशिश की तो बच्ची का पिता, जो सहारा में बड़ा अफसर था, मुझे भी धमकाने लगा कि हट जाओ वरना तुम भी पिटोगे..किसी तरह पवन को उठा कर कहा-तुम यहाँ से फ़ौरन निकल जाओ..
अंदर पार्टी का सत्यानाश हो चुका था..उदयन जी खामोश खड़े थे..मैं गुस्से में बोला कि पार्टी ख़राब कर ही दी आपके चहेते संजय द्विवेदी ने..वो बोले-राजीव कुछ मत बोलो मामला बहुत बिगड़ गया है..
अगले दिन सुबह पवन का फोन आया-सर मैं आत्महत्या करने जा रहा हूँ..
मैं भी भन्ना कर बोल दिया-कर लो..कितना मना किया था कि ज़्यादा मत पियो तुम्हारे साथ कुछ घटने वाला है..
पवन बोला-सर सिर्फ आपका ही आसरा है..उदयन जी वगैरह सब सीनियर्स ने हाथ खड़े कर दिए हैं कि हम कुछ नहीं कर सकते..सहारा मैनेजमेंट ने मुझे ऑफिस आने से मना कर दिया है..
अपन ने बस इतना ही कहा-तुम एक काम करो पवन.. सुब्रत राय को सब कुछ लिख कर भेजो कि कल रात क्या हुआ..और यह भी कि पिछले संस्थान में क्या घटा..
उसने ऐसा ही किया..उन दिनों सहारा में जहाँगीरी घंटा बंधा था जिसकी डोर टीएन शेषन के हाथ में थी..उनकी समिति ने पूरी जाँच पड़ताल कर पवन को निर्दोष करार दिया और उस रात उस साजिश में जो जो शामिल थे उनकी जाँच शुरू हो गयी..
मार्च की एक सुबह पवन का फोन आया-सर मैं गेट पे खड़ा हूँ..आप बाहर आइये आपके साथ ऑफिस में आऊंगा..मेरे लिए तो बेहद ख़ुशी का दिन था उस पर लगा कलंक हट गया...पवन को निर्दोष साबित कराने में साथ के ही अरविन्द झा का बहुत बड़ा योगदान था..
उसे लेकर अंदर जा रहा तो सामने से आ रहे हमारे सीनियर और वर्तमान में ABVP के CEO उदय शंकर का चेहरा काला पड़ गया..क्योंके बन्दे ने एलान किया था कि अगर पवन इस ऑफिस में दोबारा घुसा तो वो सहारा की नौकरी छोड़ देंगे..और वो आजतक में चले गए.. इन्हीं उदय शंकर ने पवन को बचा कर दोबारा सहारा में लाने का बदला लिया और मुझे आजतक के इंटरव्यू में ही निपटा दिया.. (देश के नामचीन पत्रकार व हिंदुस्तान के संपादक रह चुके राजीव मित्तल ने रोमिंग जर्नलिस्ट संग पत्रकारिता से जुड़ी इन पुरानी यादो ंको शेयर किया है)
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/