नर्मदा यात्रा के पड़ाव में वो हादसा...
बापी यानि वेगड़ जी का बेहद अपनत्व भरा बुलावा था वो..कानपुर हिंदुस्तान के साथी बृजेन्द्र ने राजस्थान में अलवर से जब बात करायी तो वेगड़ जी की आवाज़ सुन खुशी के मारे दिल भर आया..जबलपुर छोड़ने के डेढ़ साल बाद उनकी आवाज़ सुन रहा था..धृष्टता देखिये कि चलते समय उनसे मिला भी नहीं..
फोन पर वेगड़ जी का आग्रह उनकी अंतिम बार की नर्मदा यात्रा में शामिल होने का था..तुरंत हामी भर दी.. कानपुर में ही इस यात्रा के सारे इंतज़ाम संपादकीय साथियों ने कर दिए..और वहां सबने यह सोच कर विदा किया कि नर्मदा परिक्रमा के बाद वहीँ लौटूंगा लेकिन किस्मत भी तो खेल खेलती है न..
जबलपुर जाने से दो दिन पहले पता चला कि हिंदुस्तान के ताजातरीन प्रधान संपादक ने अपन को अपना आदमी न मान इस्तीफा मांग लिया है..ज़बरदस्त झटका लगा कि 31 दिसंबर के बाद संपादक नहीं रहूँगा...खैर, इस्तीफे की चार लाइन लिख, भविष्य की चिंता झाड़ जबलपुर की तैयारी में लग गया..घर में किसी को नौकरी जाने की बात नहीं बताई और माहौल को सुखद बना कर निकल लिया..नवम्बर शुरू हो चुका था..
जबलपुर में एक रात गुजार अगले दिन सब सहयात्रियों के साथ ट्रेन से नरसिंहपुर पहुंचा.. इस बार वेगड़ जी का काफ़िला बड़ा था, संख्या इसलिए भी ज़्यादा थी कि दमे की बीमारी के चलते नर्मदा के लाडले 85 वर्षीय अमृतलाल वेगड़ अब आगे नर्मदा के किनारे मीलों चलने की स्थिति में नहीं थे..इस यात्रा में बापी के साथ मां यानि उनकी सहचरणी और उनका बेटा नीरज भी थे..
बापी की इस यात्रा के लिए उनके आत्मीयजनों ने काफी अच्छा इंतज़ाम किया था..सड़क के रास्ते ज़रूरी सामान लादे कार भी..बरमानघाट के रेस्टहाउस में ठहराव..उस शाम दीपदान के लिए पीछे के झाड़ झंकाड़ वाले रास्ते से होते हुए जब नर्मदा का वो बेहद मासूम रूप देखा तो देखता ही रह गया..मां ने पत्ते के छोटे दोने में दिया जला कर हाथ में थमाया और आदेश दिया जाओ तुम भी दीपदान करो..मां अक्सर मुझे झाड़ पिलातीं क्योंकि मैं उनसे यह पूछने की गुस्ताख़ी जो करता था कि आपने बापी को पसंद किया था या बापी ने आपको..बापी ने अपने विवाह का अद्भुत वर्णन किया है...और मां से भी लिखवा लिया..
अगले दिन सुबह ही निकल नर्मदा का किनारा पकड़ छोटे छोटे पेड़ों पर लदे शरीफों का भोग लगाते हुए दोपहर होते होते केरपानी पहुँच गए..रास्ते में एक और गायक बिलासपुर के कांतिलाल पटेल के साथ चलते हुए अपनी खूब जुगलबंदी चली..यहाँ तक कि वेगड़ जी भी एक टीले पर पसर गए कि सुनाओ कुछ..फिर तो उनका संगीतप्रेम पूरी तरह जागृत हो गया..
केरपानी में वेगड़ जी के शिष्य ने हम सबको धर्मशाला से उठा कर अपने यहाँ ठहराया..
वेगड़ जी शाम चार बजे हम सबको बीस हज़ार साल पुरानी प्रागैतिहासिक चित्रकारी दिखाने पुतली खोह ले जा रहे थे...तभी वो हादसा हो गया..बेहद ऊबड़खाबड़ रास्ते पर अपनी एड़ी इस बुरी तरह मुड़ी कि होश फाख्ता हो गए..अभी रुकिये जी..बहुत संभल कर चलने के बावजूद वही पैर दोबारा मुड़ गया..अब तो असहनीय दर्द.. लेकिन सारा दर्द घोट कर पीना ज़रूरी था वरना पुतली खोह न देख पाता..फिर उस सूखी धारा पर पहुंचे, जहाँ से गुफा और झरना पांच किलोमीटर दूर थे..अब एक लंगड़े को वो काफ़िला ढो रहा था..गोल पत्थर पर रेंगते हुए पुतली खोह तक पहुंचा..नीचे की गुफाओं में तो वो अविस्मरणीय चित्रकारी देखी..लेकिन चट्टानों के ऊपर बनी गुफा तक जाना संभव नहीं था, तो मेरे साथ माँ और बापी और इंदौर की मीनल ताई रुक गए.. बाकि सब कूदफांद कर ऊपर चढ़ गए..
गहराती शाम में उस सूखे नाले से सड़क तक लौटना जी का जंजाल बन गया..बाकयदा बैसाखी तैयार की गयीं..लेकिन उन गोल पत्थरों पर यह उपाय बेकार गया..फिर प्रदीप और नीरज ने अपने कंधे का सहारा दिया और अपन ने एक पैर से वो रास्ता पार किया..किसी तरह पड़ाव तक पहुंचना हुआ..
सुबह पांच बजे निकलना था, इसलिए पेट भर सब पसर गए..तब तक एक के बाद एक लगी मोच अपना रंग दिखा चुकी थी..एड़ी और पंजा दोनों सूज कर फूल गए..तब बहुत ही सेवाभाव और बहुत मीठे गले की कुमुद से तुरंत शहद, सरसो तेल, चूना और हल्दी का लेप बनाने की गुजारिश की..उन्होंने जैसे तैसे इंतज़ाम कर लेप बनाया और लगा कर वहां कपड़ा बांध दिया..तब तक बुखार भी आ धमका..उसी क्षण आस्तिक बन नर्मदा से तुरंत ठीक करने को दुआ मांगनी शुरू कर दी..क्योंकि उस हालत में मुझे जबलपुर भिजवा दिया जाता, जो मेरे लिए बहुत कठोर सज़ा होती..
नींद में भी नर्मदा से अपनी विनती चलती रही..सुबह चार बजे कड़कड़ाती ठण्ड में जब उठाया गया तो सबसे पहले चल के देखा..वेगड़ जी ने पूछा कि चल पाओगे हमारे साथ!! मैंने बेझिझक जोर से नर्मदे हर्र कहा और कुछ देर बाद आराम से मां और बापी के साथ नर्मदा किनारे परिक्रमावासी बना हुआ था..
लेकिन एक बहुत बड़ा दुःख कि बापी तो अपनी पूरी उम्र में गोलोकवासी हुए लेकिन वो युवती कुमुद की लद्दाख में जीप खाई में गिर जाने से मृत्यु हो गयी..परिक्रमा के बाद एक रात उनके यहाँ रुकने का था..लेकिन मैं अपने नईदुनिया के साथियों के साथ मस्ती करता रहा..कुमुद इंतज़ार करती रहीं और फिर फोन पर शिकायत दर्ज करायी..और वहां आने का वादा लिया जहाँ उनके पति का तबादला हो गया था..
(देश के नामचीन पत्रकार व हिंदुस्तान के संपादक रह चुके राजीव मित्तल ने रोमिंग जर्नलिस्ट संग पत्रकारिता से जुड़ी इन पुरानी यादो ंको शेयर किया है)
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